05 Best Horror Stories in Hindi 2021 | 05 लोकप्रिय डरावनी कहानियाँ हिंदी में

 05 Best Horror Stories in Hindi 2021



इस Blog में आपको 05 best horror stories hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही डरावनी है। भूतों और प्रेतों के किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे। हमने भी इस ब्लॉग में 05 best horror stories hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा आनंद मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ 05 best Horror Stories In Hindi 2021 दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको 05 best horror stories hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।


05 Best Horror Stories in Hindi 2020
05 Best Horror Stories in Hindi 2021



1) डरावनी रात


एक रोज़ की बात है, मैं और मेरा मित्र दोनों अपने गाँव के एक वीरान खेत से गुज़र रहे थे, तभी एकाएक आसमान काला पड़ गया और तेज़ बरसात होने लगी। हम दोनों खुद को बचाने के लिए एक पीपल के वृक्ष के सामने जाकर खड़े हो गए। बिल्कुल उससे चिपककर ताकि हम खुद का बचाव कर सके। तभी ऐसी अप्रिय घटना घटित हुए जिसे सोच कर आज भी मैं सहम सा जाता हूं ! हमारे सामने बिजली की एक तेज़ चमक के साथ ही जोड़ की आवाज़ आई। और मानो हमारे आँखों के सामने अंधेरा छा गया हो ।


थोड़ी देर बाद जैसे ही आँख ने थोड़ा धुँधला सा देखना शुरु किया तभी मेरी नजर सबसे पहले अपने मित्र पर पड़ी। उसके भौएँ चढ़ी हुई थी और आँखों में अजीब सा सनक एवं हाथों की दोनों मुट्ठियाँ कसके बंधी हुई थी। वह मुझे ऐसी नज़रों से देख रहा था मानो मैंने कभी उसकी लुगाई को हड़प लिया हो ।


वह मेरी तरफ देखकर हँसा जा रहा था और मैं खुद को 18 वीं सदी में पहुंचा पाया मनुष्य की तरह हो गया था मानो घटाएं सदियों पुरानी हो ! बारिश भी कुछ डरावनी सी और वो पीपल का वृक्ष जवान सा प्रतीत हो रहा था ! मानो ऐसा अनुभूति हो रहा था की सारी घटनाएँ किसी डरावनी सी समय के गुफा में बिल्कुल एकांत में मुझे ढकेल रहे हो !!


मेरे मित्र द्वारा मेरी ओर खींची नज़रों से देख कर बोला गया - "मेरे खेत की मकई आज नहीं काट पाओगे आज पुराना हिसाब तो बराबर करूँगा ही। तुमने मेरी ज़मीन हड़प कर सामने वाली पोखर में मुझे दफ़ना दिया था न आज मैं तुझे भी वैसे ही मौत दूँगा।"


उसकी बातों को सुनकर मैं सन्न रह गया मैं सोचा भला क्या हो गया इसे । यह ऐसा अजीब व्यवहार क्यों कर रहा है । मैंने उसका नाम सोमराजन कहकर पुकारा और बोला थोड़ा हिम्मत करते हुए ! - "पगला गए हो क्या ? क्या बोले जा रहे हो।"


उसका उत्तर था - "आज ही तो होश में आया हूं नटराजन तुम्हारा मौत मेरे ही हाथों की शोभा बढ़ाएगी।"


उसकी बातों को सुनकर मेरे शरीर के सारे अंग स्थिर हो गए एवं सभी बाल खड़े हो गए मुझे अब पूर्ण विश्वास हो गया था की यह मेरा मित्र सोमराजन के बोल नहीं है क्योंकि मेरा नाम खिलावन लाल था !


लेकिन उसकी बातों को सुनकर मुझे इतना तो पता चल गया था कि अगर मैं अपना वास्तविक नाम बता भी दूँ तो भी इसको विश्वास नहीं होने वाला।


तो मैंने भी उसके युग में ही जाकर उसके अतीत को जानने का ठान लिया।


मैंने उससे कहा "भला मैंने तुम्हारे खेत से मकई कब काटी थी। कुछ भी बोले जा रहे हो, मुझे कहां फुर्सत अपनी खेती - बारी से जो तुम्हारा ज़मीन हड़प जाऊँ वैसे भी मुकदमे की सौ रुपये देने की कहाँ औकात मुझे और वैसे भी कचहरी से दूर ही रहता हूं मैं! भूमिहीन किसान थोड़े हूं मेरे पास भी दो सवा दो बीघा ज़मीन है। जिससे मैं काम चलाऊ जीविकोपार्जन आराम से कर लेता हूँ।"


मैंने बस अंदाजे लकड़ी मारी यह देखने के लिए की शायद वह वास्तविक आंकड़े एवं वास्तविक घटनाएँ से मुझे अवगत करा देगा ...


मेरी इस प्रकार से बोलने के बाद मानो उसके सर पर खून सवार हो गया ।


वह भन्नाते हुए बोला - "आखिर बईमान का बेटा बेईमान ही न होगा, जानबूझकर गलत आंकड़े पेश करो पंचायत में, लेकिन कोर्ट में कागज़ सब बता देगा पैसे के दम पर तुम बाप बेटे पंचायत ख़रीद सकते हो पर कचहरी नहीं।"


मैंने हिम्मत के साथ थोड़ी अक्ल लगायी और बोला - "आखिर मेरा बाप बेईमान कैसे ?"


तुरंत उसके द्वारा प्रतिक्रिया आई - "पन्ना लाल की जो ईख की मील एक कोस दूर गाँव से थी वह मेरे परिवार का पुश्तैनी कारोबार था जिसे तुम्हारे बाबूजी ने दबंगई से जबरन हमारे निर्बल बाबूजी से अंगूठा लगवा कर पन्ना लाल के बाबूजी को कुछ पैसे खा कर बेचवा दिया। तो तुम्हारा बाप हुआ न बेईमान।" वैसे इतने भोले भी मत बनो तुम्हारे बाबूजी के क्रियाकलाप पूरा जमात जानता है !


जब तुमने जबरन मेरे खेत को हथिया कर मकई का फसल काट लिया तब भी मैंने खून का घूंट पी लिया था, कुछ नहीं कहा, क्योंकि तुम्हारा बापू जमींदार का पिल्ला बन गया था। पैसे में अंधे थे तुम लोग हम जैसे न जाने कितने किसानों का संपत्ति लूटना तुम लोगों की खानदानी फितरत में हैं।


इतनी बातें बोल कर थोड़ा रुका । और फिर जोर -जोर से चिल्लाने लगा, थोड़ा रोते हुए बोला "मेरी लुगाई ने क्या बिगाड़ा था तुम्हारा जो तुमने पूरे गाँव के सामने उसे गोली मार दी थी ! उसने तो बस ज़मीन छीनने का विरोध किया था, वहीं ज़मीन से उपजाए फ़सल हमारे परिवार की पेट की आग बुझाती थी! तुमने हमारी ज़मीन तो छीन ही ली साथ में दो बच्चों की माँ और मेरे बुढ़ापे का सहारा मेरी लुगाई। "


इतना बोलते वह ग़ुस्से से तमतमाए मेरे तरफ झपटता मारा और मेरे पूरे बदन पर खरोंचे मार दी। वह मेरे मित्र के शरीर में था और मैं उसपर आक्रमण भी नहीं कर सकता था इस डर से की कहीं मेरे मित्र को क्षति न पहुंचे।


मैं कैसे भी अपनी जान बचाने का प्रयत्न करने लगा उसी क्रम में कुश्ती का दो चार दाँव भी हम दोनों के बीच में प्रारंभ हो गया कभी वह मेरे ऊपर तो कभी मैं उसके ऊपर,उठापटक का दौर ऐसे ही चलता रहा और मैं कैसे भी उसे पास के देवी माँ के मंदिर में ले जाने का प्रयास कर रहा था ताकि श्री भगवान मिश्र पंडित जी का शरण ले सकूं। जिससे वह आगे का उपाय करें वैसे भी मेरी धड़कन काफी तेज़ चल रही थी । हर एक पल ऐसा लग रहा था कि अब मैं इस दुनिया से विदा ही लेने वाला हूं और मेरे मित्र की शक्ति मुझसे चार गुना बढ़ गई थी।


बारिश उतने ही उफान पर था जहां सूखी ज़मीन पर चार कदम भाग पाता इस बारिश के चलते एक कदम ही जैसे - तैसे भाग पा रहा था। और मेरा पूरा शरीर कीचड़ से सना हुआ तथा खरोचों से भरा हुआ था। उसके प्रहार प्राण घातक थे। बस ईश्वर का स्मरण कर और खुद ढाढस बांधे मैं इस उम्मीद के साथ भाग रहा था की यह मेरी मिल्खा सिंह की जैसी आखिरी रेस हो।


मैं जैसे - तैसे ईश्वर की दया से मंदिर के करीब पहुंचा प्रायः मिश्रा बाबा मंदिर के बरामदे में ही पूजा-पाठ किया करते थे। मिश्रा बाबा से हमारा अतिरिक्त लगाव भी था क्योंकि वह हमारे संस्कृत के प्रारंभिक गुरूदेव भी रहे थे मुझे कुछ ठीक से याद तो नहीं परंतु इतना अवश्य याद है कि इतनी तेज़ बारिश में वह प्रकृति से शांत होने का निवेदन कर रहे थे।


मंदिर से अभी लगभग हम तीन सौ मीटर दूरी पर थे बारिश की गर्जन में मेरा आवाज़ कहीं गौण हो गया था, मैं चिल्लाये जा रहा था लेकिन कहीं से कोई आशा का उम्मीद नजर नहीं आ रहा था और मेरे दोस्त जोकि अभी कोई और था वह किसी कसाई की तरह मेरे प्राणों के पीछे पड़ा था।


मैं चिल्लाते - चिल्लाते अधमरा सा हो गया था, मेरे आँखों के पास अंधेरा छा गया और उसका खूनी चेहरा और अजीब सी डरावनी आँखों को देखते मैं खुद को मौत के दरवाज़े पर बेहोशी की हालत में चला गया।


जब मेरी आँखें खुली तो मैं अपने घर के बिस्तर पर माँ की गोद मैं खुद को पाया और मेरे सामने पंडित जी और मेरा मित्र था अपने मित्र को देखकर मैं कस के चीखा और अपनी माँ में लिपट गया।


माँ के थोड़े देर तक संतावना देने के बाद मैं शांत हुआ। लेकिन हृदय में वह भयानक शाम, जीवन भर के लिए , कुछ प्रश्न, कुछ डर, कुछ अप्रिय चीज मेरे मन में हमेशा के लिए स्थापित हो गए।


मैं थोड़ा हिम्मत से रोते हुए पंडित जी से बोला - "मैं बच कैसे गया ?"


उनका उत्तर था - "बला टल गई तुम्हारा मित्र अब ठीक है, माँ काली ने तुम्हारी रक्षा की!!"


मेरा मित्र मेरी ओर बढ़ा और बोला - "दोस्त जान बचाने के लिए शुक्रिया ! मुझे नहीं पता , मुझे क्या हुआ था। लेकिन, यह जीवन तुम्हारा कृतज्ञ रहेगा !" और वह मुझ में लिपट कर पूरे आनंदित मुद्रा में भावनाओं में बह गया ....... और मैंने भी पूरे प्रेम के साथ मित्र से गले मिला।


लेकिन बहुत से प्रश्न के साथ !


आखिर वह कौन था ?



2) डायन का मोह


सुबह के 9:00 बज गए थे और आदित्य बहुत जल्दी कर रहा था अपने कॉलेज जाने की क्योंकि आज उसे एडमिशन लेना था l आदित्य का कॉलेज मनाली से लगभग 30 या 35 किलोमीटर दूर था , मनाली की सुंदर हरी-भरी वादियों और हरे जंगलों के बीच था कॉलेज l आज वहां बहुत भीड़ थी , लाइन पर लाइन लगी हुई थी पर आदित्य बड़ी चैन की सांस लेते हुए बाहर आया क्योंकि उसका एडमिशन हो गया था फिर उसने सारा कॉलेज घुमा l सब कुछ आदित्य को बड़ा अच्छा लग रहा था सिवाय एक चीज के, कॉलेज के पीछे एक विशालकाय अजीबो गरीब पेड़ के फिर उसने इसे अनदेखा किया और घर चला गया l एक हफ्ते बाद से उसकी बी एस सी की क्लास शुरू होने वाली थी, आदित्य मनाली में अकेला रहता था, वो कुछ सामान अनपैक कर ही रहा था कि डोर बेल बजी, "जी आप कौन? " 


आदित्य ने दरवाजा खोलते हुए कहा, "मेरा नाम हिम है और ये आशी है हम तुम्हारे क्लास मे ही पढ़ते हैं, इधर से गुज़र रहे थे तो सोचा तुमसे मिलते चलें " तीनों ने काफी सारी बातें की तो आदित्य ने दोनों से उस पेड़ के बारे मे पूछा , पेड़ का नाम सुनते ही हिम और आशी एक दूसरे को देखने लगे और उनके चेहरे पे डर ऊभर आया वो आदित्य को घबराते हुए समझाने लगे कि वो कभी भी उसके पास ना जाए वो एक शापित पेड़ है l 


धीरे धीरे वो दोनों आदित्य के काफी अच्छे दोस्त बन चुके थे l आदित्य रोज अपनी क्लास मे बैठता और ध्यान से उस पेड़ को देखता पर पास जाने की हिम्मत नहीं होती क्योंकि वह बड़ा विचित्र और भयावह लगता था और वैसे भी हिम और गाँव वालों से वो काफी बातें सुन चुका था कि इस पर किसी औरत की आत्मा रहती है, आदित्य वैसे तो बहुत मॉडर्न था पर भूत प्रेत में उसका यकीन था l वो जानना चाहता था कि आखिर इसमें राज़ क्या है l 


कुछ दिनों बाद एक शाम वह उस पेड़ के पास गया और उसके चारों ओर देखने लगा, कुछ देर तक जब वहां कोई नहीं दिखाई तो उसने वहां कई आवाजें लगाई, "कौन यहां रहता है?, इस पेड़ पर अगर कोई रहता है तो वह सामने क्यों नहीं आता" फिर वह चुप हो गया और बोला, "अरे कोई नहीं है सब ऐसे ही कहानियां बनाई गईं हैं", ये कहकर वो पेड़ के पास बैठ गया, बैठे-बैठे न जाने कब उसकी आंख लग गई, उसे ऐसा लग रहा था जैसे कोई उसके पास आ रहा हो, धीरे-धीरे बहुत धीरे और फिर अचानक एक औरत सामने आ गई उसे देख कर ऐसा लग रहा था जैसे कोई आदिवासी हो और उसकी वो खौफनाक और प्यासी आँखे ऐसी थीं जैसे सदियों से किसी की राह देख रही हो l 


आदित्य उसे देखकर बिल्कुल पत्थर की तरह हो गया जिसकी सारी शारीरिक क्रियाएं बंद हो गई थी, वो चाह कर भी आंखें नहीं खोल पा रहा था l 


उस औरत ने आदित्य का हाथ पकड़ा और पेड़ के अंदर चली गई, आदित्य को कुछ समझ आता इस से पहले उसने देखा कि चारों तरफ उसी तरह के खौफनाक पेड़ थे और उन सभी पर कंकाल लटक रहे थे, तेज तेज से रोने की आवाजें आ रही थीं और दूर तक कोई नहीं था, वह बहुत तेज चिल्लाया और यहां वहां भागने लगा, पर वो कितना भी भागता वापिस उसी जगह आजाता जहां से भागना शुरू करता, वो जोर जोर से चिल्लाने लगा बचाओ, बचाओ, बचाओ तभी आदित्य की आँख खुल गई तो उसने देखा वो अभी उसी पेड़ के नीचे लेटा है, उसने एक पल भी बिना गंवाए वो वहां से तेज़ी से भागता हुआ सीधा घर आ गया l 


तभी हिम और आशी उसके यहाँ आते हैं और बताते हैं, कॉलेज में दिवाली फंक्शन है रात मे l आदित्य को परेशान देख दोनों उसका कारण पूछते हैं पर आदित्य टाल जाता है l रात मे सब मिलकर पार्टी में देर रात तक डांस करते रहे और पार्टी खत्म हुई रात के 1:00 बजे, सब चले गए तीनो घर जा ही थे कि तभी आदित्य ने अचानक वही पेड़ कुछ दूर पर देखा जिसके पास वह औरत भी खड़ी थी आदित्य चौंका और घबरा कर बोला, "अरे ये पेड़ तो वहां था, ये यहां क्या कर रहा है? यह कैसे?", फिर वह बोल ना सका l हिम और आशी घबरा गए और बोले, "क्या हुआ? कहाँ है पेड़, कौन सा पेड़?" आदित्य ने फिर उधर देखा तो भौंचक्का रह गया वह बोला, "अरे वो पेड़ कहां गया? आदित्य का सिर चकरा गया और बेहोश हो गया l होश आने पे देखा तो रात के 3 बज चुके थे और हिम उसी के पास सो रहा था।


अकबर-बीरबल की कहानियाँ


आदित्य ने हिम को उठाया और सारी बात बताई l हिम ने उसे समझाया कि यार वह पेड़ बहुत खतरनाक है उसके बारे में मत सोच और सो जा, मैंने गांव वालों से बहुत डरावनी कहानियां सुनी है, उसके बारे में, चल मैं यही हूं तेरे पास सो रहा हूं फिर दोनों सो गए, लेकिन सपने में तो फिर वही.. आदित्य पेड़ के पास पहुंच गया जहां वह औरत गहनों से लदी हुई खुशी से नाच रही थी उसके चारो ओर खून ही खून था जिसे वो बार बार अपने जिस्‍म पे लगाती l जैसे ही वह वहां पहुंचा वो औरत बोली, "चला जा यहां से और जिंदगी से प्यार करता है तो इस पेड़ के पास मत आया कर और इसका राज राज ही रहने दे वरना हा हा हा हा हा हा" और फिर वह गायब हो गई फिर आदित्य की आंख खुल गई उसने देखा कि हिम उसके पास नहीं है तो वह और डरा उसने सब जगह हिम को ढूंढा और आवाज भी दी पर हिम का कोई जवाब नहीं मिला, अब वो समझ गया था वो औरत उसे नहीं छोड़ेगी, वह बहुत डर गया और उसने तेजी से दरवाजा बंद किया तो देखा उसका हाथ किसी के हाथ के ऊपर रखा था उसने पीछे देखा तो हिम सो रहा था, उसने कहा, "तुम कहां चले गए थे ?,


"मैं तो यहीं था, तुम सो जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है" कहकर हिम सो गया पर आदित्य को लग रहा था वो पागल हो जाएगाl 


दो दिन से आदित्य घर मे बंद था उस औरत के डर से जिसे वो जानता ही नहीं लेकिन आज फिर आदित्य कॉलेज गया और छुट्टी के बाद गुस्से से लाल, चला गया उस पेड़ के पास, वो गुस्से मे पेड़ को हाथ और लात मारने लगा कि तभी एक लकड़ी का तख्ता सा खिसका और गड्ढा बन गया, उसने बड़ी आश्चर्य से गड्ढे में देखा तो एक लाल पोटली पड़ी हुई थी उसने तुरंत उठाई बहुत भारी होने के कारण उसे बाहर निकाल नहीं पाया तो वहीं बैठे-बैठे खोलने लगा और जैसे ही पोटली खुली वह बिल्कुल हक्का-बक्का रह गया, उसमें सोने चांदी के बहुत पुराने गहने रखे थे जो आज भी उतने ही चमक रहे थे कि जितने कि मैं होने पर चमकते होंगे उनसे उन गहनों को घर ले जाने के लिए जैसे ही हाथ लगाया तुरंत वह आग की तरह लाल हो गए, आसमान काला हो गया और तेज़ आंधी से आने लगी, वो पेड़ जो बिल्कुल सूखा था उसमे से खून की धारा बहने लगी और फिर वहां पर वही औरत को गहनों से लदी हुई थी आ गई, 


उसने आदित्य से कहा, "मैंने तुझे मना किया था ना पर तू नहीं माना आखिर मुझे वही करना पड़ेगा जो मैंने पहले कई लोगों के साथ किया l तू जानना चाहता है कि मैंने क्या किया है लोगों के साथ, चल मेरे साथ"l औरत ने उसका हाथ पकड़ा और उस गड्ढे में ले गई वहां आदित्य ने देखा कि हर तरह कंकाल खून और मांस के लोथड़े पड़े हैं, इधर-उधर लाशें बिखरी पड़ी हैं जिनके ऊपर सांप कीड़े मकोड़े रेंग रहे थे l 


वो हंसने लगी और बोली," यह सब तेरी तरह थे जो मेरा भेद जानना चाहते थे पर मैंने इन्हे मारा नहीं मैंने इन सबके साथ सुहाग रात मनाई इस से मेरा सौंदर्य निखरता है और फिर बस सबका खून पिया जिस से मै और ताकतवर होती हूँ और फिर मै इनके खून मे नहाती हूँ जिससे मेरे ये गहने और भी चमकदार हो जाते हैं, हाहाहा हाहाहा " l उस औरत की बातें और ये राक्षसी हंसी सुनके आदित्य ठंडा पड़ गया उसे नहीं समझ आ रहा था कि वो क्या करे, उसने यहां से भागने के लिए जैसे ही कदम बढ़ाया तो वो औरत फिर बोल पड़ी," कहाँ जा रहा है? देख मैंने हमारी सुहागरात के लिए कितनी अच्छी सेज़ सजाई है " आदित्य ने उधर देखा तो बदबूदार मांस के लोथड़ों का एक बिस्तर सा लगा हुया था जिसपे जाकर वो औरत कामुक अवस्था मे लेट गई और बोली, "अब तुम्हें भी मैं यही सुला दूंगी पर एक प्यारी चीज दिखाने के बाद, देखना चाहोगे? उधर देखो" आदित्य ने उधर देखा तो वह खड़ा न रह सका और जमीन पर गिर पड़ा क्योंकि दीवार पर आशी की लाश लटकी हुई थी उसे बार-बार आशी का चेहरा और उसकी हंसी याद आ रही थी। 


फिर उस औरत ने उसे एक और चीज दिखाई जो की थी हिम की लाश l उसे तो विश्वास ही नहीं हो रहा था कि यह सब असलियत में हो रहा है या सपने में l आदित्य गुस्से में आकर बोला, "मैं तुम्हें मार डालूंगा, तुमने मेरे दोस्त को मारा, क्यों? बोल तूने ऐसा क्यों किया ?" वो औरत ज़ोर ज़ोर हंसते हुए बोली, "बेचारा इतना भी नहीं जानता कि तेरी आशी और तेरा दोस्त जिंदा कब था, हा हा हा हा अरे बेवकूफ उसे तो मैंने तेरे यहां आने के बीस साल पहले ही मार दिया था पर उनकी आत्माओं को मै मार नहीं पाई क्योंकि उन्होंने शादी कर के सुहागरात भी मना ली थी और मै सिर्फ कुंवारे लड़कों को अपना शिकार बनाती हूँ जो मेरी प्यास बुझाते हैं, तेरे दोस्तों ने इस पेड़ के पास आने के लिए मना किया था ना वो उनकी आत्माएं थीं, लेकिन मै तुझे कैसे जाने देती... हाहाहा "l यह सुनकर आदित्य को याद आता है कि पहले दिन वो दोनों कैसे जाने की मै यही रहता हूँ, उन्हे कैसे पता चला कि मै पेड़ के पास जाना चाहता हूं, जब मै आशी से पेड़ के पास जाने को कहता तो आशी गुस्सा हो जाती थी और उस दिन हिम रात को कहां गायब हो गया था l आदित्य वो सारे पल याद करके फूट फूट कर रोने लगा l उधर वो औरत जोर जोर से नाचने लगी l 


आदित्य की आंखों मे बदले की आग थी उसने चिल्लाकर पूछा, " आखिर तू है कौन? क्या चाहती है? और इन सब को क्यों तूने मारा? बोल बोलती क्यों नहीं ? तब उस औरत ने बताया कि," मेरा नाम शारपी है, यहां दो सौ साल पहले एक घना जंगल था जिसमें हम आदिवासी अपना कबीला बनाकर रहते थे हम बहुत खुश थे हमारी छोटी सी दुनिया थी, 


मैं चाहती थी कि मैं बहुत अमीर बन जाऊं, कबीले के सरदार के बेटे से मेरी शादी हो जाए और मै सारे कबीले की मालकिन बन जाऊं लेकिन एक दिन सरदार की नजर मुझ पर पड़ी और उसकी नियत खराब हो गई उसने मेरे बाबू से कहा तुम मुझे अपनी बेटी दे दो और मैं तुम्हें मालामाल कर दूँगा, लेकिन बाबू ने उनकी बात नहीं मानी और बादल से मेरी उसी दिन शादी करा दी जो मुझे बचपन से प्यार करता था, सब खुश थे सिवाय मेरे क्यूंकि मेरा सपना टूट रहा था, उस रात मै फूलों की सेज़ पे लेटी बादल का इंतज़ार कर रही थी, बादल ने आकर मुझे अपनी बाहों मे भर लिया, मेरे बदन मे बिजली सी कौंधने लगी मैंने अपनी आंखे बंद कर ली, मुझे अजीब सा लगने लगा तो आँखे खोलीं तो चिल्ला पड़ी बादल मेरे ऊपर तो लेटा था मगर बिना सिर के, उसके खून से मेरा जिस्‍म लाल हो चुका था, 


मैंने उसकी लाश को ज़ोर से फेंका और सामने खड़े सरदार से बोली की उसने धोखा क्यूँ दिया शर्त ये थी कि वो बादल को सुहागरात के बाद मरेगा, लेकिन सरदार ने उसे पहले ही मार दिया और बोला तू सिर्फ मेरी है और सबसे पहली सुहागरात तुझसे मै मनाउंगा, मैंने शर्त के अनुसार अपने गहने मांगे तो लेकर सरदार ने गहनों की पोटली बादल के खून मे फेंक दी और जाकर बिस्तर पे लेट गया, 


जैसे ही मैंने गहने देखें मेरी आंखें चमक गई और मुझे लगा कि मेरी जिंदगी मिल गई, मैं खून मे रंगे गहने उठा कर बड़े प्यार से पहेनने लगी और पहनकर राजा की बाहों मे सो गई लेकिन इस बार भी मेरी सुहागरात नहीं हो पाई और मेरा बाबा आकर सरदार को मार देता है, मै वहां से सीधा भाग कर सरदार के बेटे के पास आई और उसको अपनी कामुकता से रिझाने लगा, खून मे डूबे गहनों से लदा मेरा जिस्‍म कुंदन सा चमक रहा था, और सरदार के बेटे ने मेरी मांग भरी और बोला, "आज से तुम मेरी पत्नी और कबीले की मालकिन हो लेकिन तुम ये खून से रंगे गहने तुरंत उतारो और स्नान करो हम अपनी सुहागरात का प्रबंध करते हैं" l मैं सारे गहने उतार कर स्नान कर के वापिस आई तो मेरा पति जंगल के बीचो बीच मुझे लाया, जहां चारों तरफ खुशबू फैली थी, 


उस दिन मै सबसे ज्यादा खुश थी, वो मुझे जंगल के सबसे पुराने और खुशबूदार फूल वाले पेड़ के पास लाया और बोला अंदर चलो, इस विशाल पेड़ मे गुफा है उसी मे मै तुम्हें अपनो रानी बनाऊंगा, और उस रात मेरी प्यास बुझी, मै कबीले की रानी बन गई और उन गहनों की मालकिन लेकिन सुहाग रात गुज़रते ही रात के तीसरे पहर मे वो उठा और जाने लगा, मेरे पूछने पर उसने कहा कि मै जा रहा हूँ लेकिन तुम यहीं रहोगी मै कुछ समझती इस से पहले उसने उस गुफा का रास्ता बंद कर दिया और पेड़ मे आग लगा दी और बोला तू किसी को नहीं हो सकती, 


तूने अपनो को मारा है अब यहीं तड़प तेरी आत्मा इसी पेड़ मे क़ैद और गहनों के मोह मे पड़ी रहेगी, तुझे कभी मुक्ति नहीं मिलेगी l मै जलती रही, चीखती रही लेकिन वो चला गया, पर देख मेरी काली शक्तियों ने मुझे जीवित कर दिया अब मै बहुत शक्ति शाली बन गई हूं, उस दिन के बाद मैंने पूरे गांव को ऐसे ही तड़पा तड़पा के मार डाला, कितना मजा आता है किसी को मारने मे पर तू डर मत तुझे भी बहुत मजा आएगा लेकिन मरने में हा हा हा"l यह कहकर डायन गायब हो गई, आदित्य ने हिम और आशी की लाश को एक साथ रखा और रोने लगा उसके आंसूओं से बदले की आग निकल रही थी, अपने आंसू pochte हुए वो बोला," शुक्रिया मेरे दोस्तों, तुमने तो कोई रिश्ता ना होते हुए भी निभाया मेरा साथ दिया मुझे आगाह किया कि तुम मत जाओ उस पेड़ के पास, मुझे माफ करना मेरे दोस्तों, मुझे माफ करना तुम लोगों की कुर्बानी बेकार नहीं जाने दूंगा मैं उसको मार डालूंगा, अचानक वहां पर तेज रोशनी हुई और आशी और हिम की आत्मा आ गई, आदित्य रोते हुए बोला, "मेरे दोस्त तुम लोग कहां चले गए, मुझे अकेला छोड़ कर l" 


अकबर-बीरबल की कहानियाँ


हिम और आशी ने उससे कहा कि, "ये वक्त रोने का नहीं दिमाग से काम करने का है, हम तो मर चुके हैं पर हम तुमको यहां से बाहर निकालना चाहते हैं, हम तुम्हें रास्ता दिखा देंगे और तुम यहां से निकल जाओ क्योंकि इसे मारना बहुत मुश्किल है फिर उन्होंने उसे रास्ता बता दिया और कहा कि जब तुम्हें हमारी कभी जरूरत हो तो रात के दूसरे पहर मे याद कर लेना हम आ जाएंगे क्यूंकि दूसरा पहर खत्म होते हैं हमारी शक्तियां नष्ट हो जाती हैं, फिर हिम और आशी गायब हो गए आदि तो तुरंत बाहर जाने के लिए भागा पर उस के दिल से पुकार आई जो लोग तुझे जानते भी नहीं वो तुझे बचा रहे हैं और जिन्हें तू जानता है अपना दोस्त मानता है उनकी मौत का बदला लिए बिना तू जा रहा है l 


वह तुरंत चिल्लाने लगा शारपी तू कहां है सामने आ डायन, शारपी तुरंत आगई और उसे जंजीरों से जकड़ दिया, उसे मारने के लिए पहले उसने उस पर कई वार किए फिर कहा कि रात के तीसरे पहर में मैं रानी बन जाती हूं अपने वह गहने पहनकर उसी वक्त तुझसे सुहाग रात मनाएगी और उसको खून चूसकर मार देगी, कुछ पल और इंतजार करले मौत का, हा हा हा... I उसने आदित्य के चारों ओर एक ऐसा मंत्र पढ़कर एक घेरा तैयार कर दिया जिसके अंदर कोई आत्मा प्रवेश नहीं कर सकती थी और अगर वह प्रवेश करेगी तो तुरंत नष्ट हो जाएगी l 


आदित्य ने तुरंत ही हिम और आशी को पुकारा, हिम और आशी तुरंत प्रकट भी हो गए और आदित्य ने उन्हें रोका कि तुम लोग इस घेरे के अंदर मत आना वरना तुम नष्ट हो जाओगे l उसने इन आत्माओं से पूछा की शारपी को कैसे खत्म किया जा सकता है तो हिम ने बताया कि सारी रात के तीसरे पहर में वह एक आम औरत की तरह हो जाती है, उसकी शक्तियां उस समय नष्ट हो जाती है और इसी समय वह अपने सारे गहने पहनती है और सुहागरात मनाती है, अगर उसी समय उसे पेड़ के साथ जला दिया जाए तो शायद उसे मारा जा सकता है पर इसके लिए तुम्हें किसी शक्ति की जरूरत होगी जो सिर्फ आशी तुम्हें दे सकती है क्योंकि वह औरत है पर इसके लिए हमे हमेशा के लिए जाना पड़ेगा l आदित्य ने तुरंत ही दोस्तों को मना कर दिया पर हिम और आशी ने कहा, "जल्दी करो, हमारा वक्त खत्म हो रहा है" l 


तभी वहां शारपी आ जाती है और सब पर वार करना शुरू कर देती हैं, पूरे शहर में शुरू होने में कुछ पल बाकी थे पर, आदित्य उनको मना karta रहा, तीसरा पहर शुरू हो चुका था, हिम और आशी ने जैसे ही दोनों ने घेरे के अंदर कदम रखा हो तो दोनों एक ही में मिल गये और वहां पर इतनी देर रोशनी हुई कि कुछ भी देखना मुश्किल हो गया फिर एक रोशनी की धार जैसी आकर तेजी से आदित्य के शरीर में प्रवेश कर गई और तुरंत आग बुझ गई तभी शारपी बौखला कर आदित्य के पास जाकर उसे मारने लगी, अब शारपी कुछ देर के लिए डायन से एक साधारण स्त्री बन गई उसे पता था 


कि अब वह कमज़ोर पड़ गई उसने जल्दी से गहने पहने और आदित्य को सेज़ पे ले जाने लगी, लेकिन अब आदित्य के अंदर हिम और आशी की शक्तियां थीं, शक्तियों के रूप में समा चुके थे, वह बहुत चिल्लाई और हाथ पैर पटकने लगी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करें तभी आदित्य बोला, "अब तेरा खेल खत्म" कहकर उसने कुछ मंत्र पढ़े और उस पेड़ में आग लग गई, शारपी बहुत चिल्लाई, देखते-देखते सब कुछ जल गया l तभी फिर से हिम और आशी की आत्मा आ गई और धन्‍यवाद कहकर आसमान में कहीं गायब हो गई, 


अब उनकी आत्माएं मुकेट हो चुकी थीं, डायन शारपी और वो भयानक पेड़ दोनों खत्म हो चुके थे l ठीक 1 महीने बाद वहां पर एक मंदिर बनाया गया जिसका नाम था हिमांशी मंदिर जो इस जगह की सुरक्षा करते हैं.



3) भूत का घर


सज्जन कॉलोनी में आज फिर एक बड़ा नुकसान हो गया । ना किसी के घर चोरी हुई और ना किसी के पैसे डूबे । ना बाबू जी का चश्मा फिर टूट था । ना ही दुध वाले अंकल का टायर पंचर हुआ । वर्मा जी की सैलरी भी महीने की पहली तारीख को आ गयी थी । चौहान आँटी का नया मोबाइल भी अब तक सही सलामत था । आज ना ही पिछले महीने के जैसी कोई घटना हुई थी । पिछली वर्मा आँटी का सब्जियों से भरा ठेला भूत बंगले के बाहर से गायब हो गया था । और तो और सरदार कॉलोनी के वो लम्बे लम्बे बच्चे अपनी साइकिल दौड़ाते , ठीक भूत बंगले के बाहर गिर पड़े थे । पंडित जी ने तो कहा उस बच्चे पर अब किसी काले साये का असर है ।


खेर जो हुआ सो हुआ । लेकिन आज का नुकसान पिछले महीने हुई इन सारी घटनाओं से कई जादा बड़ा था। कॉलोनी के सबसे कम उम्र के सदस्य चिंता करते हुए ग्राउंड में लगी बेंच पर बेठ गए । कुछ तो गास में पेर पसार कर बैठे गए ।


यार अब कौन जायगा वहाँ ? राजीव ने धूल से भरे हाथ टि शर्ट पर रगड़ते हुए कहा । उसके माथे पर पसीने की बूंदे साफ दिखाई दे रहि थी । ये सब तेरी गलती है बंटी ! किसने कहा इतना तेज शॉट मारने के लिए । विजु ने आवाज उची कर अपनी बात रखी


यार तो इसे बोले ना .. इसकी बोलिंग कितनी गटीया है। बंटी ने बेंच पर हथेली मारते हुए अफसोस जताया ।


जो भी हो , बोल तो गयी ना अब उस भूत बंगले में । यार पापा मुझे अब कोई बोल नही दिलाने वाले । इस महीने की तीसरी बोल थी ये । चिंटू बोला ।


बात तो उसकी भी सच थी । उसके पापा ठहरे सिंधी । भला वो इतनी बोल कैसे दिला पाते । बंटी के पापा तो उसे महीने में 2 पेंसिल नही लाकर देते थे बोल तो पता नही कब देते । राजीव चार दिन पहले ही नया बैट लाया था । वो भी अब नई बोल नही ला सकता था । और विजु वो तो था ही फर्टिचर ।


बचा ध्रुव लेकिन उसके पापा थे बनिये । साफ साफ कह दिया । विकेट तू ले जा रहा है तो बैट और बोल दुसरो से मंगवाना । टेंशन में बैठे सभी वासुदेव कॉलोनी चैम्पियन्स के बुलन्द हौसलो फुस हो गए । उनके हाथ पैर ढीले पड़ गए जैसे उनकी सारी हवा निकल गयी हो । अब ना वो क्रिकेट खेल पायगे और ना ही अगले महीने की एक तारीख को होने वाला मैच । अब वो फिर सरदार कॉलोनी के बच्चों से मैच हार जायगे ।


में तो कहता हूँ हमे वहाँ जाकर बोल ले आनि चाइये । ध्रुव ने कहा । उसे सभी ने एसे देखा जैसे वो ही उस बहुत बंगले का भूत हो । कोन जायगा तू ? बंटी ने कहा । पागल है ये तो , तुझे पता नही भूत बंगले में कोन रहता है विजु ने कहा ।


भूत वुत में नही मानता .. ये सब तुम बच्चों के किस्से है। ध्रुव ने जवाब दिया । अच्छा तू तो जैसे सुपरमैन बन गया है…बात करता है.. । राजीव ने कहा ।


एक मिनट … ध्रुव ने बेंच से खड़े होते हुए कहा । सुनो… उसने कान पे हाथ लगाते हुए कहा । बंटी , राजीव , विजु खामोश होकर सुनने लगे । क्या..? चिंटू बोला । भुत बंगले से उस बच्चे के रोने की आवाज आ रही है सभी ध्यान से सुनने लगे । उसने देखा धीरे धीरे सारे दोस्त के चेहरे के रंग उड़ गए । भूम्म्म ध्रुव चिल्लाया और वो सब एक से कूद कर नीचे आ गए । ध्रुव जोर जोर से हसने लगा । इतना कि उसकी हसि ही नही रुक रही थी ।


अच्छा बेटा अब इतना होशियार बन रहा है तो जाना तू वहाँ। बंटी की बात में सब हां मिलाने लग गए । ठीक है ठीक है जाता हूँ ! सब फट्टू ही रहोगे तुम । ध्रुव अपने शर्ट की आस्तीन चढाये वहाँ से चल दिया ।


छोटे छोटे बच्चे फिसलपट्टियों पर फिसल रहे थे और कुछ जुला जुल रहे थे । कुछ अंकल आँटी जॉगिंग कर रहे थे । कॉलोनी का पूरा ग्राउंड लोगो से भरा था । वो हरि गास पर चलता हुआ ग्राउंड के बाहर चला गया । सड़क के उस पार था वो भूत बंगला । पीले रंग का मकान मगर अब वो पिला कम काला जादा दिखाई देता था । उसकी दीवारों की हालत इतनी जर्जर थी । प्लास्टर टूट कर लोहे के तारों के सहारे हवा में झूल रहा था । घर के चारो ओर लम्बी लम्बी गास उग गयी थी । बारिश का कीचड़ अब भी जमीन पर भरा रहता था । जंगली बेले खिसकती खिसकती घर की छतों पर पहुच गयी थी ।


उसने सुना था सालो पहले वहाँ एक डॉक्टर रहता था । थोड़ा सनकी । दिन रात उसकी पत्नी और वो झगड़ते रहते थे । एक दिन उनके झगडे के बीच डॉक्टर साब ने शराब पीली और घर मे तोड़ फोड़ करने लगे । काँच का एक जार जब उन्होंने दीवार पर पटका था तो उसका एक टुकड़ा उछल कर सीधा उनके इकलौते बेटे के गर्दन में जा गुसा । डॉक्टर होकर भी वो उसकी जान नही बचा सके ।


डॉक्टर साहब का क्लीनिक ढप पड़ गया । जब उन्होंने हवन करवाया तो पंडित ने उन्हें घर खाली करने को कह दिया । डॉक्टर और उनकी पत्नी घर खाली कर के चले गए और अब वो घर चूहों बिल्लियॉ और मकड़ियों का अड्डा बन गया था । उस दिन से वो बच्चा भूत बन गया और उसकी आत्मा मोहल्ले में आने वाले हर शक्स को परेशान करती थी । उसकी वजह से ही तो इतना लंबा चोडा बंगला आज तक बिका नही था । हर महीने कोई ना कोई घटना उस घर के बाहर होती थी ।


जब ध्रुव सड़क पार कर , बंगले के बाहर लकड़ी की बॉउंड्री तक पहुँचा तो उसने बगले को देखा । उसने गले से थूक उतारा । भूत वुत सब जुठ है उसने खुद से कहा । लकडी से बनी हुई बाउंड्री को पार करने जब उसने अपना पैर उस पर रखा । पीछे से आवाज आई ये क्या कर रहे हो बेटा । उसने पीछे देखा बूढ़े मास्टर जी चश्मे के जरिये उसे देख रहे थे । बोल लेने जा रहा हूँध्रुव ने कहा ।


पागल हो क्या ! वहाँ मत जाओ .. वहाँ … मास्टर जी बोलते बोलते रुक गए । नही भूत नही होता है ध्रुव ने उनकी बात काटी । वो बॉउंड्री से छलांग लगा कर अंदर कूद गया ।


हर तरफ टूटे पेड़ और उनकी सुख चुकी डालिया बिखरी थी । उस मकान के थोड़ा पीछे एक विशाल बरगद का पेड़ था । जिसके पत्ते टूट कर हवा में इधर उधर उड़ रहे थे । उसने कदम आगे बढ़ाया । वहाँ की जमीन अब भी गीली और नरम थी । उसके सफेद स्पोर्ट्स शूज़ पूरी तरह खराब हो गए लेकिन वो आगे बढ़ता गया । पेड़ो के सूखे पत्ते सरसर आवाज करते उड़ रहे थे । एक तेज हवा का झोंका आया और सारे पत्ते उसके चेहरे से आकर टकरा गए ।


अपने बाल से एक पत्ता हटाया तो उसकी नजर उस मकान की एक खिड़की पर पड़ी । उसका काँच फूटा था । शायद वही से बोल गई होगी । वो धीमे कदमो से चलता हुआ घर के दरवाजे तक पहुँचा । दरवाजे के कांच फूटे हुए थे और हैंडल लटक रहा था । उसने गहरी सांस ली और पीछे देखा ।


उसके दोस्त बेंच पर खड़े होकर बतख की तरह गर्दन उठाये उसे देख रहे थे । ध्रुव ने उनकी तरफ एक मुस्कान दि । उसने दूसरा हैंडल कस कर पकड़ा और फट से वो भी टूट कर नीचे लटक गया । ध्रुव लड़खड़ाया मगर ,दरवाजे को पकड़ अपने आप को संभाल लिया । उसने दरवाजे को धक्का दिया । दरवाजा खुला गया ।


बाहर से आती रोशनी अंधेरे गलियारे में जाने लगी । रोशनी की एक किरण सामने की दीवार पर टँगी एक तस्वीर पर पड़ रही थी । ध्रुव ने नजर उठाई । उसमे एक औरत एक आदमी और उनकी गोद मे एक नन्हा सा बच्चा था । ध्रुव को लगा जैसे वो तीनो उसे गुर रहे थे । लेकिन वो बस एक तस्वीर थी ..कोई भूत नही ।


उसने गलियारे के अंदर धीरे से कदम रखा । उसके जुते की आवाज भी सारे घर मे गूंज उठी । उस जगह इतनी खामोशी छाई थी की ध्रुव अपनी साँसे और धड़कने भी खुद सुन सकता था । वो समझ नही पा रहा था । कि भूत कुछ नही होता फिर भी उसके दिल की धड़कने इतनी तेज क्यों चल रही थी ।


दीवारों पर चारो तरफ जाले लटक रहे थे और प्लास्टर निकल चुका था । ऐसा घर उसने सिर्फ भूत की पिक्चरों में देखा था । उसकी नजर बार बार दीवार पर लटकती उस तस्वीर को देख रही थी । उसने महसूस किया । पसिने कि ठंडी बूंदे उसके कान के पीछे से होती हुई गर्दन के सहारे शर्ट के अंदर तक उतर रही थी ।


वो दो कदम आगे बढ़ा और गलियारे में बाई ओर मुड़ा । जिस खिड़की का काँच टूट था वो मकान के बाई ओर ही थी शायद ऊपर वाले फ्लोर पर । उसने देखा गलियारे के बाये हीस्से में सीढिया थी । मुझे ऊपर जाना होगा उसने खुद से कहा ।


जैसे ही वो आगे बढ़ा उसने देखा दो पीली आँखे अंधेरे में उसे गुर रही थी । पीली और भयानक आँखे । ध्रुव के रोंगटे खड़े हो गए और उसने दीवार पर हाथ रख दिया । उसने देखा वो पीली आँखे अंधेरे में कही गायब हो गयी । अगले ही पल जहा सीढियो में खिड़की से रोशनी गिर रही थी । वहां उसे कुछ काली चीज भागति हुई दिखी बिल्ली उसके मुँह से शब्द निकला । उसने अपना जुता जान बूझ कर फर्श पर ठपकारा ताकि काली बिल्ली वहाँ से भाग जाए ।


जब ध्रुव की धड़कने थोड़ी धीमी हुई तो उसने लकड़ी की बनी सीढियो पर कदम रखा । वो दबे पांव ऊपर चढ़ता गया । सीढिया पूरी तरह जालो से भरी हुई थी । उसके बाल , चेहरा और शर्ट जालो से भर गया ।


उसने अपने हाथ से जाले साफ किये तो उसे एहसास हुआ एक छोटी मकड़ी उसके बालो में चल रही थी । उसे अपनी हथेली से झटकते हुए उसे नीचे फेक दिया और खुद उछल कर दूर खड़ा हो गया । वो सीढिया चढ़ते चढ़ते बाई ओर मुड़ा और अचानक कुछ गिरने की आवाज आई । उसकी धड़कन जैसे एक पल के लिये रुक सी गयी । उसने दीवार पर हाथ रख खुद को सीढियो से गिरने से बचाया ।


मुझे यहां से चले जाना चाइये उसने खुद को समझाया । पास ही एक खिड़की से बाहर जाका , उसके दोस्त अब भी ग्राउंड में खड़े थे ।


मुझे बोल लेकर आनी ही होगी उसने खुद से कहा । वो आगे बढ़ा । सीढिया चढ़ ऊपर आया तो उसने देखा वहाँ एक बड़ा बरामदा था । खिड़कियों से आती रोशनी के कारण वहां ऊपर इतना अंधेरा नही था ।


उसने देखा ,बरामदे में सब कुछ बिखरा हुआ था । जगह जगह काँच के टुकड़े थे जो उसके जुतो के नीचे आकर ओर भी टूट रहे थे । हर जगह तस्वीरे थी । कोई जमीन पर बिखरी तो कोई दीवार पर आड़ी तिरछी लटकी । तस्वीरों में एक ही चीज थी । एक बच्चा । जिसके छोटे बाल थे बिल्कुल ध्रुव की तरह । शर्ट और निक्कर पहना था जैसा कि ध्रुव पहनता था । हर तस्वीर में वो बच्चा दिखाई दे रहा था । उसे गुरता हुआ । ऐसी कोई तस्वीर नही थी जिसमे वो हस रहा हो या खुश दिख रहा था । उसकी डरा देने वाली आँखे ध्रुव पर नजर जमाये हुई थी । ध्रुव की धड़कने ओर तेज चलने लगी ।


वो पूरे बरामदे में गुमा मगर वहाँ कही बोल नही मिली । उसने देखा वहां आगे एक कमरा भी था । जिसका दरवाजा खुला था और वहां लटका सफेद पर्दा हवा से लहरा रहे थे । बोल वही गयी होगी उसने खुद से कहा ।


वो कमरे की ओर बढ़ा । उसने अपने काँपते हाथो से पर्दे को हटाया । कमरे में रोशनि बिल्कुल कम थी । वो यकीनन उस डॉक्टर का कमरा था । जगह जगह इंजेक्शन , काँच की बोतले , दवाइयों बिखरी हुई थी । खिड़कियों पर सफेद पर्दे लटक रहे थे । में पूरे घर मे गुम लिया , कोई भूत नही है यहाँ उसने मुस्कुराते हुए खुद से कहा । उसने कमरे के भीतर दम रखा । नील रंग की बोल वहाँ बीचो बीच रखे पलंग पर पड़ी थी । वो रही बोल ध्रुव ने कहा और बोल की ओर लपका ।


पलँग पर पड़े नरम गड्ढे पर बाया हाथ टेक , दूसरे हाथ से बोल को पकड़ा । अपनी मुट्ठी में कस लिया । वो बोल को हाथ मे लिए खड़ा हुआ ही था कि उसकी नजर ऊपर उठी । ठीक उसके सामने सफेद परदों के पीछे कोई बच्चा उसे गुर कर देख रहा था । ध्रुव ने कस कर आँखे बंद कर ली । उसके हाथ से बोल गिर गयी । वो भागना चाहता था पर उसे लगा जैसे उसके पैर वही जाम हो गए । एक के बाद एक माथे से गिरती पसीनो की बूंदों ने जैसे उसे नहला दिया । उसका एक एक रोंगटा खड़ा हो गया । दिल जैसे ट्रैन की तरह दौड रहा था । बन्द आँखो में भी उसे वो गुरती नजरे दिखाई दे रही थी ।


अगले ही पल वो चिल्ला उठा । भूत…..भूत…..भूत….मम्मी ….पापा….. वो बिना सामने देखे पीछे पलटा और पर्दे को हटा बरामदे में दौड़ पड़ा । काँच के टुकड़ो से वो फिसलता फिसलता बचा ।


वो धड़ा धड़ सीढिया उतरा और दौड़ता हुआ सीधा उस भूत बंगले से बाहर निकल गया । उसने देखा उसके दोस्त उस भूत बगले के बाहर ही खड़े थे । वो दौड़ कर उनके पास गया । और लकड़ी की बॉउंड्री पार कर सीधा बंटी पर जा गिरा । बंटी और राजीव ने उसे गिरने से बचाया । क्या हुआ मिली बोल ? चिंटू ने कहा


नही नही ! भूल जा बोल …वहाँ … सच मे उस बच्चे का भूत रहता है ध्रुव को अछि तरह याद था कि उस दिन की घटना के बाद वो पाँच दिनों तक बीमार रहा । 2 इंजेक्शन और कई दवाइयों के बाद उसका बुखार उतरा । बुखार तो उतर गया लेकिन उसके दिमाग से वो भूत फिर कभी नही निकला । उसके साथ हुई इस घटना की जानकारी पूरे मोहल्ले में फेल गयी ।


उस दिन के बाद ध्रुव ने फिर उस मकान की तरफ आँख उठा कर भी नही देखा । ना जाने कितनी बोले उधर गयी और कोई उन्हें वापस लेने नही गया । उस घटना को पूरे पाँच साल बित गए लेकिन वो डर उसके मन से आज तक नही निकल पाया । अब कोई भी उसे कहता भूत वुत जुठ है तो वो उसे खरी खोटी सुना देता ।


रबर की बोल की जगह अब लेदर बोल ने लेली थी । राजीव के पापा ने MRF का नया बेट भी दिलवाया था । वो दोस्तो के साथ हर रोज वही ग्राउंड में क्रिकेट खेलता रहता था । अब तो सरदार कॉलोनी का मोंटी भी उसके मोहल्ले में रहने लगा था । जब फिर स्कूल शुरू हुए तो उसके मोहल्ले में एक लड़की रहने के लिए आई । नेहा उसने सबसे पहले ध्रुव से ही दोस्ती की थी । लेकिन मोंटी इस बात से जलता था ।


एक शाम क्रिकेट खेलते वक़्त ध्रुव ने फिर एक शॉट मारा ।

बोल सीधी भूत बंगले में चली गयी । छोड़ नई बोल लाएंगे चिंटू ने कहा । हां भाई घर चलते है राजीव बोला

मोंटी चल कर उनके पास आया वो मेरी बोल थी और मुझे वो ही चाहिए । ध्रुव ने उसे कुछ कहना चाहा मगर उसने देखा नेहा वही बेंच पर बैठी अपने पैर हिलाती उनकी बातें सुन रही थी । ध्रुव तूने मारा तू बोल लेकर आ मोंटी ने कहा ।


देख मोंटी भूल जा , वो तुझे नई बोल लाकर दे देगा कल विजु ने उसे समझाया मगर वो नही समझा ।

ध्रुव मेरी बोल लाकर दे वो जिद्द पर अड़ गया । ध्रुव ने नेहा की तरफ देखा और फिर मोंटी की ओर भाई नई बोल दे दूंगा तुझे वो बोला और नेहा ही और मुस्कुरा कर आगे चल दिया ।


यू क्यो नही बोलता की तेरी वहाँ जाने से फटती है ..तूने बचपन में वहां भूत देखा था मोंटी पीछे से चिल्लाया और जोर जोर से हसने लगा । ध्रुव पलटा में नही डरता उसने नेहा की ओर देखते हुए कहा । तो जा मेरी बोल लेकर आ मोंटी ने कहा । ठीक है में जा रहा हूँ ध्रुव ने बैट जमीन और पटका और गुस्से में ग्राउंड से बाहर निकल गया । पीछे से आवाज लगाते बंटी , चिंटू , राजीव और विजु कि एक नही सुनी । वो तेज तेज कदम से चलता हुआ भूत बंगले की ओर चल दिया ।


बंगला पहले से ज्यादा जर्जर हालत में था और उसका रंग अब बिल्कुल काला पड़ गया था । लकड़ी की बाउंड्री के बाहर ही उसके कदम रुक गए और पाँच साल पहले देखी वो आँखे और वो तस्वीरों में डिझा चेहरा उसकी नजरो के सामने गुमने लगा । उसने पलट लर देखा । उसके दोस्त और मोंटी उसे देख रहे थे । उनके बाये खड़ी नेहा भी उसे मुस्कुराते हुए देख रही थी । वहाँ मौजूद हर कोई उस घर के आस पास जाने से भी डरता था । लेकिन किसी ने भी वो नही देखा जो उसने देखा था ।


उस लड़के की आत्मा जो अब भी उस घर मे थी । ध्रुव को याद आया कि कैसे पर्दे की आड़ में वो मर चुका बच्चा खड़ा था और हवा से उसका शर्ट हिल रहा था । जब उसकी नजरे ध्रुव पर पड़ी थी तो वो दूसरी बार उससे नजर मिलाने की हिम्मत नही कर सका था ।


ध्रुव बाउंड्री से कूद अंदर गया । वहाँ अब पहले से ज्यादा कीचड़ था और गास ओर भी लम्बी थी । उस गास और कीचड़ के सिवा वह पाँच सालो में कुछ ज्यादा नही बदल था । ना ही वो बरगद का पेड़ और बड़ा हुआ था । उसे लग रहा था जैसे वो कल ही उस घर मे बोल ढूंढने आया था और उसने वो.. वो बच्चा देखा था ।


डरते काँपते कदमो से वो आगे बढ़ा और भूत बंगले के दरवाजे तक पहुँचा । आज भी उसके दोनों हैंडल लटक रहे थे । उसने दरवाजे को छुआ । उसे लगा जैसे वो मरा हुआ बच्चा ठीक दरवाजे के पीछे ही खड़ा उसका इंतजार कर रहा होगा । उसने आँखे बंद की और कंठ से थूक उतारते हुए दरवाजे को धीमी से खोला । वो आगे जुका और गलियारे में जाका । वहां कोई नही था । उसकी नजर पाँच साल पहले देखी उस तस्वीर पर पड़ी । आज भी वो तीनो उसे गुर रहे थे ।


ध्रुव ने हिम्मत कर के आगे कदम बढ़ाए । उसने दाये बाये देखा पूरा गलियारा खाली था । धूल मिट्टी के सिवा वहां कुछ नही था ना ही उनकी बोल । वो बाई तरफ बढा जहा से सीढिया ऊपर की ओर जाती थी । उसे याद थी वो काली बिल्ली की पीली डरावनी आँखे । उसने फिर सीढियो की ओर कदम बढ़ाया । उसके पैरों को छूते हुए कुछ सीढियो पर दौड़ कर भागा । आज वह एक नही बल्कि तीन काली बिल्लियॉ थी । शायद वो उसे वहां आने से रोज रही थी । तीनो बिलकिया दौडती सीढियो के ऊपर भाग गयी ।


ध्रुव ने अपना कदम सीढियो पर रख और जालो से खुद के सिर को बचाते हुए आगे बढ़ा । धीरे -धीरे । जब वो सीढिया चड़ ऊपर पहुच गया तो । उसने देखा आज भी सारी टूटी फूटी तस्वीरे वही बरामदे में पड़ी थी । काँच के टुकड़ो के बीच 2 बोल भी दिखाई दि मगर वो मोंटी की बोल नही थी । वो इधर उधर नजर जाकने लगा कि उसे जल्द से जल्द बोल मिल जाये ।


उसे अचानक लगा जैसे किसी ने उसे पीछे से छुआ , उसकी मुठिया कस गयी । वो झटके से पलटा । वो सिर्फ एक पर्दा था जो खिड़की से आती हवा से उड़ रहा था । उसने गहरी सांस ली लेकिन उसकी धड़कने तेज तेज चल रही थी । उसके रोंगटे खड़े थे । पसीने ने उसके टी शर्ट को भीग दिया था । उसे लग रहा था जैसे वो बच्चा उसके पीछे पीछे चल रहा था । उसने कई बार पलट कर देखा । मगर वहां कोई नही था । पूरे बरामदे में कही भी मोंटी की बोल नही दिखी । शायद उसी कमरे में हो उसने सोचा । नही नही में वापस वहां नही जाऊंगा उसने कहा


उसके सारे दोस्त और वो मोंटी और तो और नेहा सब नीचे खड़े उसका इंतजार कर रहे होंगे । अगर में बोल नही लेकर गया तो वो क्या कहेंगे ? नेहा क्या सोचेगी ? उसने अपने डर भूल कर आगे बढ़ने की कोशिश की उसी कमरे की ओर । उसका दरवाजा आज भी उस के लिए खुला था । शायद वो बच्चा वही बिस्तर पर आराम से बैठा उसका इंतजार कर रहा होगा । या वहां पर्दे के पीछे उसे मारने के लिए तैयार खड़ा हो । ना जाने क्या क्या ख्याल उसके मन मे घर करने लगे पर फिर भी वो आगे बढ़ा । कमरे के सफेद पर्दे को मुट्ठी में कस लिया । गॉड उसने कहा ।


पर्दा झटके से हटाया । दवाइया , काँच की बोतल और इंजेक्शन वही बिखरे थे लेकिन कमरे में ओर कोई नही था । उसने हर कोने में नजर डाली वहां सच मुच् कोई नही था । उसने बिस्तर पर देखा । मोंटी की बोल वही पड़ी थी जहाँ पाँच साल पहले उसे बोल दिखी थी ।


आगे मत जा उसके मन मे आवाज आई और उसके कदम रुक गए । क्या उसी बच्चे ने ये बोल यहाँ रखी । क्या वो भूत मुझे यहाँ तक लेकर आया । वो वही पर्दे के पीछे खड़ा होगा । बोल सामने पड़ी है में लेकर भाग जाऊँगा उसने खुद को समझाया । वो धीमे कदमो से आगे बढा । बाय हाथ बिस्तर पर टेक दूसरे हाथ से बोल पकड़ी । वो ठीक से खड़ा हुआ । लाख कोशिशों के बाद भी उसकी नजर सामने लहराते पर्दे के पीछे पड़ ही गयी । और उसने फिर आँखे कस कर बढ़ कर ली ।


वो भूत । वो बच्चा वही था । पर्दे के पीछे खड़ा उसे देख रहा था । वो शायद अब बड़ा हो गया था । अब उसने हाफ पैंट नही बल्कि जीन्स पहनी थी । वो तो कई साल पहले मर गया था । अब कैसे बड़ा हो सकता है , और जीन्स ? क्या भूत कपड़े बदलते है?


ध्रुव ने फिर आँखे खोली और देखने की हिम्मत की । उसका मुह खुल का खुला रह गया । वो पलँग पर चढ गया और दौड़ कर वहां पहुँच गया । उसने पर्दे को हटाया और दो कदम आगे बढ़ाए । वो हस्ते हुए देखने लगा । वहाँ कोई भूत नही था बल्कि एक आइना था धूल से भरा हुआ था । पाँच साल पहले उसने किसी भूत या किसी बच्चे की आत्मा को नही देखा । बल्कि उसने खुद की एक झलक देखी थी । वो अपनी बेवकूफी पर जोर जोर से हसने लगा ।


जब वो बोल लेकर दोस्तो के पास आया तो बंटी ने कहा । तू इतना खुश क्यो है ? और अंदर इतना हस क्यों रहा था ?


उसने बोल मोंटी के हाथ मे पकड़ाई और कहा । अंदर कोई भूत नही है बेवकूफों… में कहता था ना भूत वुत कुछ नही होता । ध्रुव नेहा की ओर मुस्कुरा कर देखने लगा ।


पांच साल तक उसे लगा कि भूत बंगले के भुत ने सबके मन मे डर पैदा कर दिया था । आज उसे पता चला कि वो सबके और उसके मन का डर ही था जिसने भूत को पैदा किया था।



4) शैतानी रास्ता


वैसे तो इस बात को 10 साल गुजर चुके है। पर आज भी उस भयानक घटना को याद कर मेरी रूह तक कांप जाती है। मेरा नाम मुकेश है। ये बात उस समय की है जब में कॉलेज के पहले साल में पढ़ाई किया करता था। दीवाली से पहले ही हमारे पहले सेमेस्टर की परीक्षा हो गयी थी। इसीलिए हमे उस बीच 25 दिनों का वेकेशन मिला था। दीवाली आने को अभी 3 दिन बाकी थे।


मुझे शांत जगहों पर जाना अच्छा लगता था। पर मेरी पढ़ाई के चलते में व्यस्त रहता था। पर इस बार मैने सोच लिया था कि मैं अपने मामा के गाँव जाऊँगा। मैं 3 साल से वहाँ नहीं गया था। पर इस बार मैने पक्का जाने का मन बना लिया था। पापा काम में व्यस्त होने की वजह से वहां जाने से मना कर रहे थे। तो माँ ने भी जाने से मना कर दिया। अब मुझे अकेले जाना था। पापा ने रेल रिज़र्वेशन टिकट करवा दी थी।



रेल का सफर तब और भी बेहतरीन हो जाता है जब आप अपने गाँव जाने निकलो....शहर के शोर शराबे से दूर अगर हमे कही सुकून चाहिये तो वो गाँव ही हमे देता है। वो मस्त वातावरण में ताज़ी हवाओं और लहराते खेतों का आनंद...वो चारपाई पे बैठ कर नाना से पुराने किस्से सुनना....बड़ा ही आनंद प्राप्त होता है।


रात में यही सब सोचते हुए कब पूरी रात रेल के सफर में गुजर गई पता ही नहीं चला...सुबह के 9.45 पे रंगेर स्टेशन पर में उतरा....रंगेर वहां का बड़ा तालुका था.... मेरे मामा मुझे लेने आये थे। वही स्टेशन के बाहर मस्त चाय समोसे का आनंद उठाकर हम टुकटुक रिक्शा में बैठ हमारे गाँव सुतुर जाने निकले। जो वहां से करीब 30 किलोमीटर दूर था। घने जंगलों के रास्ते होकर हम अपने गाँव पहुँचे।



नाना नानी ने बड़े प्यार से मेरा स्वागत किया। फिर मस्त चूल्हे पे बना स्वादिष्ट व्यंजन का कर मस्त लेट लिया। शाम को गाँव में रहता मेरा दोस्त रंगा जो मेरी ही उम्र का था। वो मुझसे मिलने आया।



रंगा - अरे दोस्त बहुत साल बाद आये यार तुम तो कैसे हो?


मुकेश - ठीक हूं दोस्त तुम सुनाओ...


रंगा - बस कट रही है....सुबह जल्दी उठ कर भैंसिया का दूध निकालो....दोपहर में खेत जोतो और कोई काम बिगड़े तो बापू की गालियां सुनो..बस यही जिंदगी रह गयी हमरी गाँव में।


मुकेश - गाँव तो फिर भी ठीक है भाई....यहाँ सुकून तो है। वरना शहर में जीना मतलब रेस में लगे रहो बस....टेक्नोलॉजी का आदमी पे कंट्रोल हो गया है...आपस मे मिलने से अच्छा उस मोबाइल पे मिलाप कर लेते है....गाड़ियों का तो भंडार लगा हुआ है। प्रदूषण हमे खा रहा है या हम उसे खा रहे है। बस यही लगा पड़ा है।


इसीलिए तो लोग जब शहर से ज्यादा थक जाते है तो उन्हें सुकून पाने के लिए तब गाँव की याद आती है। जैसे हम भी आ गए।



रंगा - हाँ दोस्त यहाँ बड़ा सुकून मिलता है। पर समस्याएं तो यहाँ भी है। बेचारा किसान खेत में मेहनत कर कर के थक जाता है पर बारिश की बूंद तक सही समय पर नहीं गिरती....बिजली तो ऐसे जाती है मानो हमारे लिए तो उसका अस्तित्व ना के बराबर है।


मुकेश - सही है दोस्त बस यही आस है एक ना एक दिन ये सब बदलेगा जरूर।


तभी उनके सामने से लखिया की बेटी मोहिनी अपने घर के तरफ जा रही थी।


रंगा - आय हाय मेरी दुल्हनिया कहाँ जा रही हो


मोहिनी - ( मुँह टेढ़ा करते हुए ) गोबर लेने जा रही हूं तुम खाओगे क्या मकड़े।


फिर वो चली गयी.....


मुकेश - हाहाहाः हाहा तुम को तो कुछ भाव ही नहीं दी।


रंगा - बहुत प्यार करते है हम उनसे कभी तो मानेगी।


दीवाली का दिन आ गया था....शाम के करीब 5 बजे थे। मुझे अपने मामा ने अपने पास बुलाया....



मामा - देखो बेटा मुकेश....मेरी तबियत खराब है और तुम्हारे नाना को भी घुटनों का दर्द है। क्या तुम जाकर किरदी गाँव के पास आयी रमाकांत देरी में दूध दे आओगे। उन्हें दीवाली के लिए अतिरिक्त दूध चाहिये। उन्होने मुझसे बड़ी उम्मीद से कहा है।


मुकेश - हाँ मामा जरूर जाऊँगा.... रंगा को साथ ले के उसके साथ मोटरसाइकिल पे चला जाता हूं।



कुछ देर बाद दोनों दूध के केन लिए मोटरसाइकिल पर बैठ... किरदी गाँव के लिये निकले जो वहां से करीब 20 किलोमीटर दूर था।


रमाकांत डेरी में दूध देने के बाद वो करीब 6.30 बजे हम वापस आने के किये निकले ही थे कि हमारी मोटरसाइकिल खराब हो गयी। उसकी खराबी दूर करते हुए मेकैनिक को 8 बज गए। रात हो गयी थी।


मुकेश - यार इस मोटरसाइकिल की वजह से हमे देर हो गयी दीवाली के रात के आधे मज़े इसने खराब कर दिए...अब वापस जाते हुए भी देर हो जाएगी।


तभी मुकेश ने अपना मोबाइल निकाला और मैप पर जल्दी पहुँचने का दूसरा रास्ता खोजने लगा....तभी वो बोला...


मुकेश - अबे बुड़बक रंगा एक और शॉटकट रास्ता भी तो है तूने बोला क्यों नही?...देख मैने ढूंढ लिया वही से चलते है।


रंगा - नहीं यार वो मुझे भी पता है पर हम उस रास्ते से नहीं जा सकते। वो रास्ता भूतिया है। आज तो अमावस्या भी है।


मुकेश - यार तुम गाँव वाले भी ना कुछ भी अफ़वाये फैलाते हो भूत वूत कुछ नहीं होता....चलो हम सिर्फ आधे से भी कम वक्त में गाँव पहुँच जाएंगे उस रास्ते से....



रंगा ने कई कोशिशें की पर में नहीं माना.... हमने मोटरसाइकिल आगे बढ़ाई आगे जाने पर एक मुड़ा हुआ गहरे जंगल से जाता कच्चा रास्ता दिखाई दिया....वो वही रास्ता था। दीवाली की अमावस्या की रात और अंधेरे का पूरी तरफ फैला साम्राज्य....वो रास्ता ओर भी भयानक लग रहा था।


रंगा ने फिर चेतावनी दी पर मैने तो मोटरसाइकिल आगे बढ़ा दी....अंधेरे को चीरती हुई मोटरसाइकिल की रौशनी से हम आगे बढ़ रहे थे। रात कीड़ों कि भयानक आवाज़े गूंज रही थी....कुत्ते जंगल में कहीं रो रहे थे। हम आगे बढ़ रहे थे कि अचानक हमारी मोटरसाइकिल के आगे से कोई साया तेज़ी से गुजरा और गायब हो गया। हम दोनों बुरी तरह सहम गए।


हमारी धड़कने बढ़ गयी। फिर मैने रंगा से कहा " कुछ नहीं था यार बड़ा हवा का झोंका होगा..डरना मत" हालांकि अब मुझे भी थोड़ा डर लगने लगा था। फिर तभी हम दोनों ने सामने जो देखा हमारी रूह कांप उठी। ठीक रास्ते के बीच कोई खड़ा था। मुँह पर लंबे बाल ढके हुए....सफेद साड़ी पहने हुए। उसे देख हम काफी डर गए थे।



रंगा - ( काफी डरते हुए ) हमें माफ़ कर दो...हम ग़लती से इस रास्ते पर आ गए.... आत्मा माता हमे बख्श दे ....वादा करता हूं लखिया की बेटी को देखूंगा तक नहीं ।


तभी मैं मोटरसाइकिल से उतरा और चलते हुए उसकी तरफ बढ़ा.... रंगा ने मुझे काफी रोका पर अब में उसके पास पहुँच चुका था। तभी में जोर जोर से हँसने लगा....हाहाहाःहाहा।


रंगा - हे आत्मा माता मेरे दोस्त के दिमाग पर हावी मत हो।



मैने कहा " अबे डरपोक ये सिर्फ एक पुतला है जो यहाँ किसी ने लोगो को डराने के लिए रखा हुआ है।" रंगा ने भी आकर देखा तब उसके जान में जान आयी पर पुतले पर कुछ लिखा हुआ था..." ख़तरा " मैने उस पुतले को उठाकर दूर फेंक दिया ओर हम फिर आगे बढ़ गए।



रंगा -सुनो वो लखिया की बेटी वाली बात अब झूठ मान लेना।



मैं जोरों से हँसने लगा....अंधेरे को चीरते हुए हमारी मोटरसाइकिल आगे बढ़ रही थी....तभी जैसे तूफान आया हो वैसे जोरों से हवाये चलने लगी...रात कीड़ों की भयंकर आवाज़े तेज़ हो गयी....हमारी मोटरसाइकिल भी बंद पड़ गयी पर तभी एक तेज़ बिजली कड़की सामने हमने जो देखा...हमारे रौंगटे खड़े हो गए।



एक भयानक शरीर और दो मुँह वाले एक सर चुड़ैल का जिसके लंबे नाखून... मुँह चीरा हुआ खून बहता हुआ....आँखें गुस्से से आग उगलती हुई...लंबे भयानक बाल बिखरे हुए....दूसरा सर प्रेत का...लंबे भयानक नाखून ...बड़ी भयंकर आँखें...लंबे भयानक कान...मुँह से निकलते नुकीले दाँत....दोनो शैतानों के हाथ मे खून से सनी कुल्हाड़ी थी।



उन्हें देख हम दोनों की हालत खराब हो गयी थी। वो दोनो जोरो से चिल्लाये " हमारी जगह आने की तुम दोनों की हिम्मत कैसे हुई...अब तुम दोनों को काट कर तुम्हारे जिस्म का खून पियेंगे....तुम्हारा माँस नोचेंगे हाहाहाःहाहा"। हम दोनों ने पूरी तेज़ी से दौड़ लगाई.... जंगल में भागने लगे। वो भयानक शैतान हमारे पीछे थे भयानक चिल्लाहट करते हुए।



हम एक बड़े पेड़ के पीछे छिप गए। हमने देखा वो हमें बुरी तरह खोज रहे है। हमारा बचना मुश्किल था। फिर उन्होंने हमें फिर देख किया और कुल्हाड़ी हमारी तरफ दे मारी। पर हम बच गए...हम फिर जान बचाकर दौड़े....हमारी सांसे फूल गयी थी....हम कांप गए थे। दौड़ते हुये मेरे दोस्त रंगा का पाँव फिसला और वो लाल बड़े पत्थरों पर जाकर टकराया वो बेहोश हो गया।



मैने उसे जगाने के कोशिशें की पर वो नहीं उठा पर तभी मेरे पीछे वही शैतान खड़े थे। वो मुझे मारने आगे बढ़े.... तभी एक चमकता विस्फोट सा हुआ और मैं भी बेहोश हो गया।


सुबह धीरे से मेरी आँखें खुली.... मैं अपने गाँव के घर था। मेरे मामा, नाना, नानी ओर गाँव के कुछ लोग खड़े थे। मैने रंगा के बारे पूछा तो उन्होने कहा वो भी ठीक है फिर मैने सारी घटना बताई....



नाना - तुम दोनों हमे गाँव के बाहर बेहोश पड़े मिले.... हमे तुम्हें पहले ही उस रास्ते के बारे में बता देना चाहिये था।


मुकेश - पर नानाजी हम तो वहां थे फिर गाँव के बाहर कैसे आये?


नाना -जैसे तुमने बताया रंगा लाल पत्थरों से जाकर टकराया था। बेटा वो एक दैवीय स्थान था जहाँ एक दैवीय साधु नारऋषि की समाधी है। उन्ही की दैवीय आत्मा ने तुम्हें बचाया और सुरक्षित यहाँ पहुँचाया होगा।



मामा - बेटा वहां कई साल पहले एक बड़ा हादसा हुआ था एक पति और पत्नी का एक्सीडेंट हो गया था। वो दोनो मारे गए थे जिस दिन वो मरे वो दिन भी अमावस्या का था। तब से वहां कई सारे मौते होने लगी इसीलिए सबने उस रास्ते से जाना बंद कर दिया।



मुकेश - रंगा ने मुझे कहा था पर मेरी ज़िद ने हमे खतरे में डाल दिया था। नारऋषि जी की जय हो जिन्होंने हमारी जान बचाई वरना हमारा बचना मुश्किल था।


उस दिन के बाद आजतक उस भयानक चेहरों को मैं भूल नहीं पाया....मैं जब भी गाँव जाता हूं उस भयानक रास्ते की तरफ देखता तक नहीं .... कुछ चीज़े ऐसी होती है जिन्हें हम यकीन ना करे पर वो होती है...



5) काली परछाई


जेठ की गर्म दोपहरी में अचानक दरवाज़े पर हुई दस्तक से मैं घबराकर उठ बैठा, सोचा इस तन को चीर देने वाली


लू भारी दोपहरी में कौन है, जिसने मेरे दरवाजे पर दस्तक दी है। थोड़े सहमे कदमो से मैं दरवाजे की तरफ गया और पूछा


कौन है ? कौन है ? पर उस तरफ से कोई जवाब ना पाकर मैं समझ गया कि पड़ोस के शरारती बच्चे होंगे, दरवाजा पीट कर


चले गए होंगे। और फिर मैं कमरे में जाकर अपने ख़्यालों में गुम हो गया। तभी अचानक दरवाजे पर फिर वही दस्तक हुई,


अबकी बार मैं तेजी से दरवाजे की तरफ बढ़ा ये सोचकर कि इस बार इन शरारती बच्चो को पकड़ कर ही रहूंगा। और तुरंत ही मैंने


दरवाजा खोल दिया, दरवाजा खुलते ही मेरी मेरे होश उड़ गए, लगा कि जैसे किसी ने मुझे कुछ क्षण के लिए प्राणहीन कर दिया हो,


क्योकि जो मैंने देखा उसके बाद मेरा बेहोश होना लाजमी था।


 और जब मुझे होश आया तो मैंने देखा मेरे सामने बगल वाले शर्मा जी खड़े है, उन्होंने मुझे पानी पिलाया और पूछा क्या हुआ ?


आलोक भाई आप दरवाजे पर बेहोश पड़े थे, वो तो अच्छा हुआ मेरी नजर पड़ गई आप पर वरना इस दोपहरी में यहां पर कोई घर 


से बाहर कदम भी नही रखता है। क्या आपको मालूम नही आलोक भाई !


मैं आश्चर्यचकित सा शर्मा जी को देखने लगा, और धीमे स्वर में बोला क्या मालूम नही मुझे, और मालूम भी कैसे होगा, मैं तो अभी 5 दिन पहले ही इस शहर में आया हु, अभी अभी बदली हुई है मेरी, सालभर बाद कही और चला जाऊंगा, इसलिए अकेला ही रह रहा हु। शर्मा जी हल्की सी मुस्कुराहट के साथ बोले कुछ नही आलोक भाई, अभी मैं चलता हूं, आप आराम करें और हा चाहे कुछ भी हो जाये आप दोपहर 12 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक दरवाजा ना खोलना, कल मिलता हु आपसे अभी घर पर कुछ काम है मैं चलता हूं अभी। बस इतना समझा कर शर्मा जी अपने घर चले गए। मैं भी खाना खा कर सोने चला गया, पता ही नही चला कब रात हो गई शर्मा जी से बात करते हुए।


रात में बिस्तर पर लेटे लेटे मैं खुद को समझा रहा था कि जो घटना दोपहर में हुई वो बस मेरा वहम था, पर डर से में अभी भी अंदर तक सहमा हुआ था, नींद भी आंखों से ओझल हो चुकी थी, डर था या वहम इसी कशमकश में सहमा सा मैं अपने ही बिस्तर पर सिमटा जा रहा था। सोच रहा था कि किसी को बताऊ या नही की दोपहर को क्या हुआ मेरे साथ जो आंखे बंद करते ही वो मंजर सामने आ जाता है और मैं डर से कांपने लगता हूँ। रह रह कर शर्मा जी की बात भी दिमाग मे घर कर रही थी कि क्यो शर्मा जी ने मुझे हिदायत दी कि दोपहर को दरवाजा नही खोलना है, ऐसा क्या है इस शहर में, क्यो इस शहर के लोग दोपहर को घर से बाहर नही निकलते है। मैं ये सोच ही रहा था कि मेरे दाएं कान में कुछ फुसफुसाहट सी हुई मैं सहम सा गया और फिर वही हलचल बाएं कान में महसूस की और उसके बाद सामने की दीवार पर नजर गई, मेरे होश उड़ गए। देखते ही देखते मेरी अपनी परछाई एक भयानक विकराल काली परछाई में बदलने लगी, चेहरा इतना डरावना की आदमी दिन के उजाले में देख ले तो भी बेहोश हो जाये।


ये तो काली अंधियारी अमावस की रात थी, वो एक भयानक काली परछाई ही थी और कुछ नही, ना कोई भूत-प्रेत, ना जिन्न चुड़ैल


देखते ही देखते मंजर बदल गया मेरी अपनी परछाई अब मेरी नही रही, वो मुझसे जुदा हो चुकी थी और मैं ये सब देखते देखते बेहोश हो चुका था।


सुबह सुबह दरवाजे की दस्तक़ से मेरी बेहोशी टूटी और मैं घबराकर उठा सबसे पहले मेरी नज़र मेरी परछाई पर गयी देख कर दिल को तसल्ली सी हुई परछाई मेरे साथ ही है, रात की बात को मैं एक भयानक सपना समझ कर भूलना चाह रहा था, परंतु वो मंजर इतना भयानक था कि उसको ज़िन्दगी भर भुला पाना नामुमकिन था। खैर मैं दरवाजे की तरफ गया, जैसे ही दरवाजा खोलने वाला था मेरे दिमाग मे शर्मा जी की बात घूमने लगी और मेरी नज़र घड़ी पर गई, मैंने समय देखा और राहत की सांस ली घड़ी में सुबह के 10 बजे थे। और फिर तभी बाहर से आवाज आई आलोक भाई दरवाजा खोलो मैं हु तुम्हारा पड़ोसी शर्मा जी। फिर मैंने भी बिना देरी किये तुरंत दरवाजा खोल दिया।


शर्मा जी ने पूछा सब ठीक तो है ना सुबह के 10 बज रहे है अभी तक आपका अख़बार और दूध गेट पर ही है, तबियत तो ठीक है। मैंने थोड़ा मुस्कुराते हुए कहा सब ठीक है वो मैं रात को देर तक जाग रहा था इसलिए नींद देर से खुली। मैं शर्मा जी को कल की घटना बताना चाहता था पर कैसे बताऊ मुझ पर यकीन भी करेंगे यही सोच कर कुछ बोल नही पा रहा था। शर्मा जी मेरे साथ कुछ देर बैठे फिर हम बाते करने लगे डेढ़ घन्टा कैसे बीत गया पता ही नही चला, मेरे मन मे शर्मा जी की कही एक बात चल रही थी जो उन्होंने कल बताई थी कि दोपहर में दरवाजा नही खोलना है मैं पूछ ही रहा था तभी शर्मा जी बोल पड़े आलोक भाई चाय नही पिलाओगे, मैंने कहा क्यो नही अभी लो शर्मा जी, कहकर में किचन में चला गया। शर्मा जी वही बैठे बैठे मुझसे बाते करते रहे। बातो बातो में पूछने लगे शादी हो गई आपकी ? मैंने जवाब दिया जी 3 साल हो गए शादी को एक बिटिया भी है, शर्मा जी बोले फिर है कहाँ, साथ क्यो नही लाये ? 


मैंने बताया कि थोड़े समय के लिए आया हु इस शहर में जल्दी बदली करवाकर वापस चला जाऊंगा, इसलिए अकेला ही आ गया। शर्मा जी ने पूछा कि ऑफिस नही जाते क्या ? क्या टाइमिंग है ऑफिस का? मैंने जवाब दिया कि 10 बजे का है जी कल से जॉइन करना है और मैं चाय और नमकीन की ट्रे लेकर किचन से बाहर आ गया और शर्मा जी को चाय का कप पकड़ाया शर्मा जी चाय की चुस्की लेते हुए बोले कि आप भाभी जी को ले ही आओ, मैंने कहा क्यो क्या हुआ चाय सही नही बनी क्या ? शर्मा जी बोले अरे नही नही वो बात नही है, चाय तो बहुत अच्छी बनी है, पर इस शहर में कोई भी पुरुष अकेला नही रहता है, मैंने तुरंत पूछा ऐसा क्यों ? वो बोले बात ऐसी है कि, उनके इतना बोलते ही घड़ी ने दोपहर 12 बजे का घन्टा बजाना शुरू कर दिया, शर्मा जी ने घड़ी की तरफ देखा और बोले 12 बज चुके है मैं चलता हूं बाद में बताता हूं सब बात, और हड़बड़ी में उठकर दरवाजे की और चल दिये। 


मैंने भी दरवाजा बंद करने के लिए जैसे ही उठने का प्रयास किया मैं उठ नही पाया, जैसे किसी ने मुझे जकड़ लिया हो , तभी मेरी नजर अपनी परछाई पर गई, और मैंने देखा कि मेरी परछाई को उसी भयानक काली परछाई ने अपने हाथों से जकड़ा हुआ है जिस वजह से में हिल भी नही पा रहा हु, और वो काली परछाई मेरी परछाई पर हावी हो रही है उसको खुद में समेट रही है। मैंने डर कर अपनी आंखें बंद कर ली और हनुमान चालीसा का पाठ करने लगा। कुछ देर बाद आंखे खोली तो मेरी परछाई काली परछाई की कैद से आज़ाद थी, मैंने तुरंत उठकर दरवाजा बंद किया और राहत की सांस ली।


अब मैंने सोचा कि ये क्या बला है क्या राज है और शर्मा जी की बातों का इनसे कही कोई लिंक तो नही है। ये सोचकर मैंने शर्मा जी के उस नंबर पर फोन लगाया जो उन्होंने मुझे तब दिया था जब वो पहली बार यहाँ आये थे और अपना नम्बर देते हुए कह गए थे कि कोई भी काम हो तो इस नम्बर पर कॉल करके बुला लेना, मैंने फ़ोन लगाया पर फ़ोन लगा नही मैंने कई बार कोशिश की परंतु हर बार एक ही जवाब मिलता की जिस नम्बर पर आप संपर्क करना चाहते है वो अभी नेटवर्क कवरेज क्षेत्र से बाहर है, आखिर में मैंने सोचा चलो बाद में बात कर लूंगा और अपने कमरे में जाकर सो गया।


शाम को फिर दरवाजे पर दस्तक होती है, क्योकि अब शाम के 6 बज चुके थे तो मैंने बेझिझक दरवाजा खोल दिया और सामने शर्मा जी को पाकर खुश हो गया और सोचा आज नही जाने दूंगा सारे राज़ जानकर ही रहूंगा। शर्मा जी अंदर आये और हम दोनों सोफे पर बैठकर बाते करने लगे। मैंने पूछ लिया शर्मा जी आपका नम्बर बहुत मिलाया पर लगा नही उन्होंने कहा कि नेटवर्क प्रॉब्लम बहुत है यहाँ पर इसलिए अक्सर ऐसा होता है। फिर मैंने कहा खैर छोड़िये ये बताये की 2 दिन से आप मुझे जो सलाह दे रहे है कि दोपहर में दरवाजा मत खोलना अकेले मत रहना इन सब के पीछे क्या राज़ है !


शर्मा जी बोले बताता हूं, सुनो ये शहर शापित है, कोई यहाँ रहना नही चाहता है क्योंकि इस शहर पर एक भयानक काली परछाई का साया है, इस कारण से कोई शहर छोड़कर जा नही सकता। जो शहर छोड़ेगा उसको अपना शरीर छोड़ना पड़ेगा ऐसा श्राप है। मैंने पूछा ये काली परछाई है क्या चीज़ और ये श्राप क्यो है। शर्मा जी बोले कि कई सालों पहले शहर बहुत सुंदर था इस पर कोई श्राप नही था, परंतु कुछ ऐसा हुआ कि शहर शापित हो गया।


मैंने पूछा ऐसा क्या हुआ ! क्या राज़ है खुलकर बताएं।


शर्मा जी बोले – शहर में एक विधवा महिला थी, वो लोगो के घरों में काम करके अपना गुजारा करती थी, उस पर कई बार घरों में चोरी करने के इल्जाम भी लगे पर कुछ साबित नही हो पाया, फिर उस पर इल्जाम लगा कि ये पुरुषों को वश में करने के लिए तंत्र मंत्र भी करती है ये डायन है, शहर के लोगो ने बाहर से एक बड़े तांत्रिक को बुलाया उसने उस औरत की परछाई को एक आईने में कैद कर दिया, बताते है कि ऐसा करने से उसकी शक्ति कम हो गयी और फिर उस औरत को चौराहे पर बांधकर डायन करार देकर जला दिया।


मरते समय उसने शहर को श्राप दिया कि मेरी काली परछाई सदा इस शहर पर मंडराती रहेगी और जो भी पुरुष अकेला होगा वो ही मेरा शिकार होगा, ये सारी घटना जेठ की दोपहरी में हुई थी इसलिए ये समय सबसे खतरनाक माना जाता है, आइना शहर से बाहर ले जाते समय गिरकर टूट गया जिससे उसकी काली परछाई आज़ाद हो गयी। ये काली परछाई जेठ की दोपहरी में मुख्यद्वार से प्रवेश करती है और अमावस की रात को पुरुष की परछाई को जकड़ा शुरू कर देती है और हर दिन पुरुष की परछाई का आयाम घटने लगता है और चौहदवे दिन पुरुष की पूरी परछाई गायब हो जाती है हमेशा हमेशा के लिए और पंद्रहवे दिन यानी कि पूर्णिमा की रात को उसकी मृत्यु निश्चित है। जब ये 101 परछाईयो को अपने कबजे में ले लेगी तो उन सबकी आत्मा भी इसमें मिल जाएगी और फिर ये बहुत शक्तिशाली हो जाएगी, कहते है कि फिर वो डायन फिर से जिंदा हो जाएगी।


मैंने पूछा इस काली परछाई से बचने का इसको खत्म करने का कोई उपाय नही है, शर्मा जी बोले उपाय है, बचाव के लिए अपने साथ सरसो के दाने रखो उसकी महक ये काली परछाई सहन नही कर सकती है क्योंकि तांत्रिक ने इसको जब आईने में कैद किया था तब आईने को सरसों के दानों से ही ढका था। और अगर इस परछाई पर पूर्णिमा के चांद की रोशनी पड़ जाए तो ये काली परछाई भस्म हो जाएगी, और अगर मृत्यु हो जाये तो जीवन पाने का एक उपाय और भी है मैंने पूछा वो क्या, शर्मा जी बोले अगर तुम्हारी मृत्यु हो जाती है तो मृत्यु के बाद तुम खुद इस शहर और काली परछाई की कहानी के सारे राज़ बिल्कुल सही सही बिना कुछ छुपाये किसी ऐसे व्यक्ति को सुना दो जिस पर काली परछाई का साया हो, वो भी अमावस के दूसरे दिन, फिर तुम्हे जीवन और तुम्हारी परछाई वापस मिल जाएगा, ऐसा सुना है मैंने, इतना कहकर शर्मा जी बोले अब में चलता हूं। और वो उठकर चल दिये मैंने भी दरवाजा लगाया और तुरंत किचन से मुट्ठी भर सरसो के दाने लेकर लेट गया और अब सब कुछ साफ हो चुका था, उस अमावस की दोपहर को दरवाजे पर वही काली परछाई दिखी थी ये सोचते सोचते मेरी नज़र परछाई पर गयी और क्या देखता हूं मेरी परछाई का आयाम घटकर आधा रह गया है, मैं घबरा गया अब क्या होगा आज तो दूसरा दिन है, उन्होंने आज ही सब कहानी क्यो बताई, आज क्यो आये वो पहले दिन ही सब कुछ क्यो नही बताया? ये सोच ही रहा था तभी याद आया कि मैंने आजतक शर्मा जी की परछाई तो देखी ही नही, अब मेरा डर सातवे आसमसन पर था। डरते डरते मैंने हनुमान चालीसा का मनन किया और कब आंख लगी पता ही नही चला।


ऐसे ही डर के साये में चौहदवा दिन भी आ गया , मैं रोज अपनी परछाई के आयाम को घटता हुआ देख रहा था। शर्मा जी उस दिन के बाद दुबारा दिखे नही, अपनी परछाई पर नज़र डाली तो उसका आयाम अब शून्य हो चुका था, मैं घबरा गया कल पूर्णिमा की रात है और कल मेरी मृत्यु निश्चित है, मैंने हिम्मत बांधी और सोचा चलो शर्मा जी से उनके घर पर ही मिलकर आता हूं वो ही अब कुछ उपाय बता सकते है, मैंने उनके घर का दरवाजा खटखटाया एक महिला ने दरवाजा खोला,मैंने उनसे पूछा शर्मा जी है घर पर वो बोली शहर में नए आये हो ,आखिरी बार कब मिले थे शर्मा जी से। मैंने कहा यही 12 दिन पहले, वो रोते हुए बोली क्यो मजाक करते हो उनको तो साल भर पहले ही काली परछाई अपने साथ ले गयी काश की उस समय मैं शर्मा जी को अकेला छोड़कर अपने पीहर ना जाती तो वो आज हमारे साथ होते।


मैंने कहा नही मैं सच बोल रहा हु, आप अपने शर्मा जी की तस्वीर दिखाए कौनसे शर्मा जी है आपके। फिर में अंदर गया सामने शर्मा जी की तस्वीर थी उस पर उनके मृत्यु की तारीख लिखी थी और फूलों की माला पड़ी थी , वो बोली कल इनकी बरसी है, और उनकी तस्वीर की परछाई की और इशारा करते हुए कहा शायद कल ये वापस आ जाये, मैंने तस्वीर की परछाई को देखा वो परछाई पूरी हो चुकी थी पूरी शर्मा जी जैसे दिख रही थी और मुझको कुटिल हँसी वाले चेहरे से घूर रही थी, महिला बोली जाओ आलोक भाई कल की तैयारी करो काली परछाई तुम्हे लेकर मेरे शर्मा जी वापस कर देगी। अच्छा हुआ जो उस दिन दोपहर को मैं तुम्हारा दरवाजा खटखटाकर वहा से चली गयी और तुम्हारे दरवाजा खोलते ही वो काली परछाई तुम्हारे घर मे प्रवेश कर गई। 


 मैं डरा सहमा मायूस सा घर वापस आ गया, और अपनी मृत्यु की घड़ियां गिनने लगा। तभी मेरी नज़र अखबार पर पड़ी, उसमे कल होने वाले चन्द्रग्रहण की खबर पढ़कर मैंने सारी योजना बना ली। और अगले दिन का इन्तेजार करने लगा ।


आज पूर्णिमा की रात थी काली परछाई ने अपना खेल दिखाना शुरू कर दिया था, मेरी परछाई तो अब उसके कब्जे में थी, अब उसे मेरी आत्मा चाहिए थी, उसने मुझ पर हमला शुरू कर दिया वो बहुत विकराल हो चुकी थी, में उससे छुपते हुए बचते हुए चन्द्रग्रहण का इन्तेजार कर रहा था, किचन से सरसो के दाने साथ रखे थे मैंने जिससे वो मेरे नजदीक नही आ पा रही थी , पर उसके प्रहार जारी थे, मेरी नज़रे घड़ी पर थी कब चन्द्रग्रहण का समय होगा और कब में अपने पीछे उसको छत पर ले जाऊंगा क्योकि पूर्णिमा के चांद की रोशनी में वो कभी मेरे पीछे नही आएगी, और इतने में वो समय आ गया मैं तेज़ी से छत की और भागा हड़बड़ाहट में सरसों के दाने मेरे हाथ से गिर गए, मैं जैसे तैसे छत पर पहुँचा चन्द्रग्रहण हो चुका था वो भी मेरे पीछे छत पर थी। क्योकि अब मेरे पास बचाव के लिए सरसो के दाने नही थे तो वो मुझ पर हावी होने लगी और मेरी आत्मा को मुझसे अलग करने लगी, उसी क्षण चन्द्रग्रहण पूर्ण हुआ और चंद्र की पहली किरण से वो जलने लगी और कुछ ही पल में वो भस्म हो गयी।


इस तरह मेरी जान भी बची और शहर भी श्राप मुक्त हो गया। 


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