10 Best Akbar Birbal Stories Of 2021 In Hindi

इस Blog में आपको 10 best akbar birbal stories hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही ज्ञानवर्धक है। अकबर और बीरबल के किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे। हमने भी इस ब्लॉग में 10 best akbar birbal stories hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा ज्ञान मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ 10 best Akbar Birbal Stories In Hindi 2021 दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको 10 best akbar birbal stories hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।


10 Best Akbar Birbal Stories Of 2021 In Hindi
10 Best Akbar Birbal Stories Of 2021 In Hindi


बीरबल ने पहचानी अज़नबी की मातृभाषा

Best Akbar Birbal Stories In Hindi


एक बार एक अजनबी व्यक्ति बादशाह अकबर के दरबार में आया और बादशाह के सम्मान में झुककर उसने कहा, ”जहांपनाह! मैं बहुत सारी भाषाओं में बात कर लेता हूं। मैं आपकी बहुत अच्छी सेवा कर सकता हूं, यदि आप मुझे अपने दरबार में मंत्रियों में शामिल कर लें।“

बदशाह ने उस व्यक्ति की परीक्षा लेने का निश्चय किया। उसने अपने मंत्रियों को उस आदमी से विभिन्न भाषाओं में बात करने को कहा। अकबर के दरबार में अलग-अलग राज्यों के लोग रहते थे। हर किसी ने उससे अलग-अलग भाषा में बात की। प्रत्येक मंत्री जो आगे आकर उससे अपनी भाषा में बात करता, वह व्यक्ति उसी भाषा में उत्तर देता था। सारे दरबारी उस व्यक्ति की भाषा कौशल की तारीफ करने लगे।

अकबर उससे बहुत प्रभावित हुआ। उसने उसे अपना मंत्री बनने की पेशकश की। किन्तु व्यक्ति ने कहा, ”मेरे मालिक! मैंने आज कई भाषाओं में बात की। क्या आपके दरबार में कोई है, जो मेरी मातृभाषा बता सके।“

कई मंत्रियों ने उसकी मातृभाषा बताने की कोशिश की, परंतु असफल रहे। वह व्यक्ति मंत्रियों पर हंसने लगा। उसने कहा, ”मैंने यहां के बारे में सुना है कि इस राज्य में बुद्धिमान मंत्री रहते हैं। किंतु मुझे लगता है कि मैंने गलत सुना है।“ अकबर को बहुत शर्मिदंगी हुई। वह बीरबल की ओर सहायता के लिए देखने लगा। उसने बीरबल से कहा, ”कृप्या मुझे इस अपमान से बचाने के लिए कुछ करो।“

बीरबल ने उस व्यक्ति से कहा, ”मेरे दोस्त! आप थके लग रहे हैं। आपने निश्चय ही यहां दरबार तक आने में बहुत लंबा रास्ता तय किया है। कृप्या आज आप आराम करें। मैं कल सुबह आपके प्रश्न का जवाब दे दूंगा।“ वास्तव में व्यक्ति बहुत थका हुआ था। उसने बादशाह से जाने की आज्ञा ली और चल दिया। उसने स्वादिष्ट खाना खाया और शाही अतिथि कक्ष में आराम करने चला गया।

सभी मंत्रियों के जाने के बाद अकबर ने बीरबल से कहा, ”तुम इस व्यक्ति के प्रश्न का उत्तर कैसे दोगे?“ बीरबल ने कहा, ”जहांपनाह! चिंता नहीं करें। मेरे पास एक योजना है।“

उस रात जब महल में हर कोई गहरी नींद में सो रहा था, तब बीरबल ने काला कम्बल अपने चारों ओर लपेटा और चुपके से अजनबी व्यक्ति के कक्ष में गया। बीरबल ने घास की टहनी से व्यक्ति के कान में गुदगुदी की। व्यक्ति तुरंत उठ गया। किंतु जब उसने अंधेरे में काले शरीर वाला देखा तो उसने सोचा कि वह भूत है। उसने उडि़या भाषा में चिल्लाना शुरू कर दिया, ”हे भगवान जगन्नाथ, मुझे बचाओ! मुझ पर भूत ने हमला कर दिया है।“

अचानक बादशाह ने अपने मंत्रियों सहित कक्ष में प्रवेश किया। बीरबल ने कम्बल को फ़र्श पर फेंक दिया और कमरे में प्रकाश कर दिया। उसने व्यक्ति से कहा, ”तो तुम उड़ीसा निवासी हो और तुम्हारी मातृभाषा उडि़या है। मैं सही कह रहा हूं ना,“ व्यक्ति ने बीरबल से कहा कि वह सही है।

अकबर ने कहा, ”एक आदमी चाहे कितनी भी भाषाएं बोल ले, लेकिन वह जब डरता है तो अपनी मातृभाषा में ही चिल्लाता है।“ बीरबल ने पहेली को हल कर दिया। अकबर ने उसकी चतुराई के लिए उसकी प्रशंसा की।


तीन सवाल

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एक बार सभी दरबारी, बीरबल एवं राजा अकबर दरबार मे बैठे थे | सभी लोग दरबार के अलग अलग पदो एवं मंत्री पदो के बारे मे विचार विमर्श कर रहे थे | उनमें से एक मंत्री, जो महामंत्री का पद पाना चाहता था। उसने मन ही मन एक योजना बनाई। उसे मालूम था कि बीरबल उससे ज्यादा बुद्धिमान था, लेकिन फिर भी वह मुख्य सलाहकार का पद पाना चाहता था। 

एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की बहुत तारीफ की। यह सब सुनकर उस मंत्री को बहुत गुस्सा आया। उसने महाराज से कहा कि यदि बीरबल मेरे तीन सवालों का उत्तर सही-सही दे देता है तो मैं उसकी बुद्धिमता को स्वीकार कर लूंगा। यदि नहीं तो इससे यह सिद्ध होता है कि वह आपका चापलूस है। अकबर को मालूम था कि बीरबल उसके सवालों का जवाब जरूर दे देगा इसलिए उन्होंने उस मंत्री की बात मान ली।

उस मंत्री के तीन सवाल थे –

1. आकाश में कितने तारे हैं?

2. धरती का केन्द्र कहां है?

3. सारे संसार में कितने स्त्री और कितने पुरूष हैं?

अकबर ने बीरबल पर भरोसा जताते हुए। उसे इन सवालों के जवाब देने के लिए कहा और साथ ही यह शर्त रखी कि यदि वह इनका उत्तर नहीं जानता है तो मुख्य सलाहकार का पद छोड़ने के लिए तैयार रहे।

बीरबल ने कहा- बादशाह सलामत मैं इन प्रश्नों के उत्तर जानता हूं, सुनिए।

पहले सवाल का जवाब- बीरबल ने एक भेड़ मंगवाई और कहा जितने बाल इस भेड़ के शरीर पर हैं। आकाश में उतने ही तारे हैं। उन्होंने उस मंत्री की ओर देख कर कहा आप गिनकर तसल्ली कर लो।

दूसरा सवाल का जवाब – बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लकीरें खिंची और कुछ हिसाब लगाया। फिर एक लोहे की छड़ मंगवाई। उसे एक जगह गाड़ दिया और बीरबल ने बादशाह से कहा – बादशाह बिल्कुल इसी जगह धरती का केन्द्र है, चाहें तो आप खुद जांच लें। बादशाह बोले ठीक है अब तीसरे सवाल के बारे में कहो।

तीसरे सवाल का जवाब- बीरबल ने कहा अब जहांपनाह तीसरे सवाल का जवाब बड़ा मुश्किल है, क्योंकि इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो ना तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं, ना ही पुरुषों की श्रेणी में। उनमें से कुछ लोग तो हमारे दरबार में भी हैं, जैसे कि ये मंत्री जी। महाराज यदि आप इनको मौत के घाट उतरवा दें तो मैं स्त्री-पुरूष की सही-सही संख्या बता सकता हूं।

अब मंत्रीजी सवालों का जवाब छोड़कर थर-थर कांपने लगे और महाराज से बोले,”महाराज बस-बस मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया। मैं बीरबल की बुद्धिमानी को मान गया हूं। महाराज हमेशा की तरह बीरबल की तरफ पीठ करके हंसने लगे और इसी बीच वह मंत्री दरबार से भाग गया।

सीख: कभी किसी परीक्षा से घबराएं नहीं, जो सवाल जितने अजीब होते हैं, उनके जवाब भी उसी तरह दिए जा सकते हैं। अगर दिमाग को शांत और सक्रिय रखा जाए तो हम किसी भी सवाल का जवाब दे सकते हैं। 


बीरबल की तीरंदाजी

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एक बार अकबर का दरबार सजा हुआ था | अकबर बीरबल की तारीफ कर रहे थे | बीरबल की तारीफ़ सुनकर सारे दरबारी उनसे ईर्ष्या करते थे | एक दरबारी ने बीरबल पर हस्ते हुए कहा -“बीरबल, तुम सिर्फ बातो के तीरंदाज हो, अगर तीर कमान पकड़ कर तीरंदाज करने पड़े तो हाथ पाँव फूल जायेंगे | 

यह बात सुनकर अकबर ने बीरबल से कहा – ‘बीरबल तुम दरबारीयो को अपने अचूक तीरंदाजी का कमाल दिखाओ |’

सबने सोचा – आज तो बीरबल फस गया है | पर बीरबल कहाँ हार मानने वाला था | बीरबल ने कहा – ‘हुजूर, मै साबित कर दूंगा मै बातो की साथ साथ अच्छा तीरंदाज भी हूँ |

सभी दरबारी, अकबर एवं बीरबल मैदान मे जा पहुंचे | बीरबल के हाथो मे तीर कमान दिया गया और दूरी पर एक लक्ष्य रखकर निशाना साधने को कहा गया | 

बीरबल ने पहला तीर चलाया तो निशाना चूक गया| वह तुरंत बोला – ‘यह थी बादशाह के सालेजी की तीरंदाजी|’ बीरबल का दूसरा तीर भी चूक गया | इस पर बीरबल बोला -‘यह है राजा टोडरमल की तीरंदाजी |’ सयोंग से तीसरा तीर सीधा निशाने पर लगा | 

बीरबल गर्व से बोला – ‘और इसे कहते है बीरबल की तीरंदाजी |’ अकबर खिलखिलाकर हंस पड़े | वे समझ गए कि बीरबल ने यहाँ भी बातो कि तीरंदाजी से सब को हरा दिया |


बीरबल और 100 कौड़े

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जब महेश दास बड़े हुए तो उन्होंने कुछ मेहरे जो उन्होंने बचा कर रखी थी, उसके साथ राजकीय अंगूठी ली तथा अपनी मां से विदा लेकर बादशाह की राजधानी फतेहपुर सीकरी की तरफ चल दिए। 

राजधानी में पहुंचकर महेश दास आश्चर्य चकित रह गए। बाजारों की चकाचोंध वह रौनक जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी। बाजारों में बिकते रंग-बिरंगे वस्त्र गहने ऊन से बनी टोपियां देखकर उनकी आंखें खुली की खुली रह गयी। बड़े-बड़े ऊंट, पानी बेचने वालों की आवाजें, जादूगरों द्वारा जुटाई गई भीड़ मंदिरों से आती आवाज़े, सब उसे आकर्षित कर रही थी। 

लेकिन महेश अपनी यात्रा के मकसद को बिना भूले महल की तरफ चल दिया। महल के द्वार पर की गई सुंदर नक्काशी को देखकर महेश को लगा कि यह बादशाह के महल का प्रवेश द्वार है लेकिन वह तो शाही दरबार का बाहरी छोर था। महेश जब महल के द्वार पर पहुंचा तो द्वारपाल ने उसका रास्ता रोकते हुए पूछा” कहां जा रहे हो?”

“मैं बादशाह सलामत से मिलने आया हूं।” महेश ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया।

द्वारपाल ने कहा ” मूर्ख, तुम क्या सोचते हो कि बादशाह अकबर को केवल यही कार्य रह गया है की वो हर किसी के साथ मुलाकात करते रहें।” उसने महेश को वहां से लौट जाने के लिए कहा। लेकिन जैसे ही महेश ने अकबर की दी हुई शाही अंगूठी निकाली, सैनिक चुप हो गया और दूसरे सैनिक ने राजसी मोहर को पहचान लिया।

यह देख कर उसने महेश को अंदर जाने की आज्ञा दी पर वह उसे ऐसे ही नहीं छोड़ना चाहता था। उसने तब महेश से कहा कि तुम एक शर्त पर अंदर जा सकते हो। “तुम्हें बादशाह से जो भी मिलेगा तुम मुझे उसका आधा दोगे।”

महेश ने मुस्कुराते हुए कहा,” ठीक है, और वहां से चला गया। महेश उस सैनिक को सबक सिखाना चाहता था ताकि वह फिर भ्रष्ट कार्य ना करे।

महेश राजकीय बगीचों से होता हुआ, जहां ठंडे पानी के फव्वारे थे, पूरी हवा में गुलाब की महक थी, ठंडी हवा बह रही थी, एक आलीशान भवन तक पहुंचा जहां पर सभी दरबारी महंगे वस्त्र पहने हुए थे। उन सब को देख कर महेश दंग रह गया।

अंत में उसकी नजर एक व्यक्ति पर पड़ी, जो एक ऊंचे आसन पर बैठा था जो कि सोने से बना हुआ था और उस पर हीरे मोती जड़े थे, उसे देखकर महेश को समझते देर नहीं लगी कि यही अकबर हैं। 

दरबारियों को पीछे धकेलता हुआ बादशाह के तख्त तक जा पहुंचा और बोला- “हे बादशाह आप की शान में कभी कोई कमी ना आए” अकबर मुस्कुराए और बोले, “बताओ तुम्हें क्या चाहिए? महेश, बोला, “मैं यहां आपके बुलाने पर आया हूं और यह कहते हुए उसने वह अंगूठी बादशाह को वापस कर दी जो कुछ साल पहले बादशाह ने उसे दी थी। 

अकबर ने हंसते हुए महेश का स्वागत किया और पूछा, “मैं तुम्हारे लिए क्या कर सकता हूं तुम्हें क्या दे सकता हूं?” दरबारी उस अजीब से दिखने वाले व्यक्ति को देखकर हैरान थे आखिर यह कौन है जिसे बादशाह इतना सम्मान दे रहे हैं। महेश ने कुछ पल सोचा और कहा “आप मुझे 100 कौड़े मारने की सजा दीजिए।”

यह सुनकर दरबार में सन्नाटा छा गया। बादशाह अचरज से बोले, “क्या कहते हो?” तुमने तो कुछ गलत नहीं किया जिसके लिए तुम्हें सौ कोड़े दिए जाएं।”

“क्या बादशाह सलामत मेरी दिली इच्छा को पूरा करने के वायदे से पीछे हट रहे हैं?”

“नहीं, एक राजा कभी अपने शब्दों से पीछे नहीं हटता।”

अकबर ने बड़े हिचकिचाते हुए सैनिक को आदेश दिया कि महेश को सौ कोड़े लगाए जाएं।” महेश ने अपनी पीठ पर हर कोड़े का बार बिना किसी आवाज के सहन किया।

है जैसे ही पचासवां कोडा महेश की पीठ पर पड़ा वह एकदम अलग कूद कर चिल्लाया- “रुको”। 

तब अकबर भी हैरान होते हुए बोले “अब तुम्हें समझ आया कि तुम कितने पागल हो?” नहीं जहांपना मैं जब महल में आपको देखने आना चाहता था तब मुझे महल के अंदर आने की आज्ञा इसी शर्त पर मिली थी कि मुझे आपसे जो भी कुछ मिलेगा उसका आधा उस सेवक को दिया जाएगा इसलिए कृपा करके बाकी कोड़े उसे लगाए जाएं।

पूरा दरबार हंसी के ठहाकों से गूंज उठा, जिसमें अकबर की हंसी सबसे ऊंची थी। इसी के साथ, उस सैनिक को दरबार में आकर अपनी घूस लेने की आज्ञा दी गयी।

अकबर ने महेश से कहा, ” तुम अब भी इतने ही बहादुर हो जितने पहले थे लेकिन तुम पहले से भी चालाक हो गये हो। मैं इतने प्रयत्नों के बावजूद भी अपने दरबार से भ्रष्टाचार नहीं हटा सका, लेकिन तुम्हारी छोटी-सी चालाकी से लालची दरबारियों को सबक मिल गया। इसलिए आज से मैं तुम्हें “बीरबल” के नाम से पुकारूंगा और तुम दरबार में मेरे साथ बैठोगे और हर बात में मुझे सलाह दोगे।”

Moral of the Story शिक्षा: नीतिशास्त्र ही प्रभावी प्रबंधन का आधार है। इसका स्थान कोई नहीं ले सकता। अपने द्वारा बनाई गई नीतियों का स्तर बनाकर रखना चाहिए ताकि सार्वभौमिक स्वीकृति मिलती रहे।


अकबर का सपना

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एक बार बादशाह अकबर को सपना आया की उनके एक दाँत को छोड़ कर सभी दाँत टूट गये। अगली सुबह उन्होने राज्ये के सभी ज्योतिषियों को सपने का अर्थ जानने के लिए सभा मे बुलाया। 

एक लंबे विचार विमर्श के बाद ज्योतिषियों ने बताया कि बादशाह के सभी रिश्तेदार उनसे पहले मर जाएंगे। इस बात को सुनकर अकबर बहुत परेशान हुए और उन्होने बिना किसी इनाम के वापिस भेज दिया। थोड़ी देर बाद, बीरबल सभा मे आए तो अकबर ने उनहे अपना सपना सुनाया और उसका अर्थ बताने को कहा। 

बीरबल ने काफी सोच विचार के बाद बादशाह अकबर को जवाब दिया कि बादशाह अकबर अपने रिशतेदारों से बेहतर जीवन जीएंगे। 

अकबर इस उत्तर से खुश हुए और बीरबल को इनाम दिया। 

Story Moral शिक्षा: इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि सच को कहने के एक से अधिक तरीके हो सकते हैं। भविष्य मे आने वाली कठिनाइयों को किसी को परेशान किए बिना भी बताया जा सकता है। अगर यह जरूरी है कि आपको किसी को कोई कड़वी बात बाटनी है तो आप उसे इस ढंग से कहें कि उसकी कटुता कम लगे।


सही और गलत का अंतर

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एक दिन बादशाह अकबर ने सोचा, हम रोज़ रोज़ न्याय करते हैं। उसके लिय हमे सही और गलत का पता लगाना पड़ता है। लकिन सही और गलत के बीच आखिर अंतर क्या होता है?

दूसरे दिन बादशाह अकबर ने दरबारियों से पूछा। दरबारी इस प्रश्न का क्या जवाब देते। वे एक दूसरे कि शक्ल देखने लगे। बादशाह समझ गए कि किसी के पास इस सवाल का जवाब नहीं है। इसलिय उन्होने बीरबल से पूछा “तुम्ही बताओ, सही और गलत मे कितना अंतर है?”

बीरबल तपाक से बोले- “चार उंगल का, जहाँपनाह।”

बादशाह चौके। वह तो समझे थे कि इस सवाल का कोई जवाब नहीं हो सकता। इसलिए बीरबल का जवाब सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ। उन्होने कहा, “बीरबल। खुलकर बताओ।”

“जहाँपनाह! आँख और कान के बीच चार उंगल का अंतर है। यही सही-गलत के बीच कि दूरी है। आप जिसे अपनी आँखों से देखते है, वह सही है। जिसे अपने कानो से सुनते हैं वह गलत भी हो सकता है। इसलिए सही और गलत के बीच चार उंगल का अंतर माना जायेगा।”

यह सुनकर बादशाह अकबर बोले- “वाह! बीरबल वाह! तुम्हारी बुद्धि और चतुराई का कोई जवाब नहीं।”

शिक्षा : सत्य जो कि अवलोकन और सुनी हुई बातों द्वारा प्राप्त होता है उसमे अंतर करना आवश्यक है। लकिन हम सोचते हैं कि जो भी देखा गया है वह सच है और विश्वसनीय है।


भगवान एक है

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अकबर बीरबल से बोले, “हम मुसलमानो के अल्लाह हैं, इसाइयों के यीशु, बौद्धों के बुद्ध। लेकिन तुम हिन्दू बहुत से भगवनों की पूजा करते हो। ऐसा क्यू?”

बीरबल : “ईश्वर तो एक है बस उसके नाम अलग अलग हैं।”

अकबर : “यह कैसे संभव है? ईश्वर इतने रूप कैसे ले सकता है और फिर भी एक है”। 

बीरबल ने एक नौकर को बुलवाया जिसने पगड़ी पाहनी थी। उसने उसकी तरफ इशारा करते हुए पूछा, “यह क्या है?”

नौकर : “एक पगड़ी।”

बीरबल : “इसे खोलो और अपनी कमर पर बांधो।”

जब उसने ऐसा किया तो बीरबल ने पूछा अब यह क्या है? नौकर ने कहा : “कमरबंध” | बीरबल: अब इसे खोलो और कमर से नीचे बांधो। अब यह क्या है? नौकर : “धोती”

अब बीरबल अकबर की तरफ मुड़े और बोले, “जब एक कपड़ा अलग अलग तरीके से प्रयोग किया जाता है तो उसका नाम बदल जाता है। इसी तरह पानी जब आकाश मे होता है तो बादल कहलाता है, जब धरती पर गिरता है तो बारिश, जब बहता है तब नदी, जब जम जाता है तो बर्फ। इसी तरह ईश्वर एक है जिसे अनेक व्यक्तियों द्वारा अलग अलग नामों से बुलाया जाता है। 

Story Moral शिक्षा : हम वस्तुओं को अपनी समझ के अनुसार नाम देते हैं। हमे इस बात का ध्यान रखना है की हमने वस्तु को जो नाम दिया है वह जरूरी नहीं है कि वस्तु वही हो। कई बार वस्तु के नये उपयोग ढूंढने के लिय हमें उसके नाम से अलग हटकर सोचना पड़ता है।


भगवान का ज्ञान

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एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा- “तुम्हारे धर्म ग्रन्थों में यह लिखा है कि हाथी कि गुहार सुनकर श्री कृष्णजी पैदल दौड़े थे। न तो उन्होने किसी सेवक को साथ लिया न ही किसी सवारी पर गये। इसकी वजह समझ मे नहीं आती। क्या उनके सेवक नहीं थे?” 

बीरबल बोले- “इसका उत्तर आपको समय आने पर ही दिया जा सकेगा जहाँपनाह।”

कुछ दिन बीतने पर एक दिन बीरबल ने एक नौकर को जो शहज़ादे को इधर-उधर टहलाता था, एक मोम कि बनी मूर्ति दी जिसकी शक्ल बादशाह के पोते से मिलती थी।

मूर्ति अच्छी तरह गहने-कपड़ों से सुसज्जित होने के कारण दूर से देखने मे बिल्कुल शहज़ादा मालूम होती थी। बीरबल ने नौकर को अच्छी तरह समझा दिया कि उसे क्या करना है।

“जिस तरह तुम रोज़ बादशाह के पोते को लेकर उनके सम्मुख जाते हो, ठीक उसी तरह आज मूर्ति को लेकर जाना और बाग मे जलाशय के पास फिसल जाने का बहाना कर गिर पड़ना। तुम सावधानी से ज़मीन पर गिरना, लकीन मूर्ति पानी मे अवश्य गिरनी चाहिए। यदि तुम्हें इस कार्य में सफलता मिली तो तुम्हें इनाम दिया जायेगा।”

एक दिन बादशाह बाग में बैठे थे। वहीं एक जलाशय था।

नौकर शहज़ादे को खिला रहा था कि अचानक उसका पाँव फिसला और उसके हाथ से शहज़ादा छूटकर पानी में जा गिरा। बादशाह यह देखकर बुरी तरह घबरा गये और उठकर जलाशय की तरफ लपके।

कुछ देर बाद मोम की मूर्ति को लिए पानी से बाहर निकले।

बीरबल भी उसस वक़्त वहाँ थे वे बोले- “जहांपनाह, आपके पास सेवकों और कनीज़ों की फौज है, फिर आप स्वयं और वह भी नंगे पांव अपने पोते के लिय क्यू दौड़ पड़े? आखिर सेवक सेविकाएं किस काम आयेंगे?”

बादशाह बीरबल का चेहरा देखने लगे। वे समझ नहीं पा रहे थे कि बीरबल क्या कहना चाहते हैं? बीरबल ने कुछ देर रुककर फिर कहा- “अब भी आपकी आंखे नहीं खुलीं तो सुनिए-जैसे आपको अपना पोता प्यारा है उसी तरह श्रीकृष्णजी को अपने भक्त प्यारे हैं। इसलिए उनकी पुकार पर वे दौड़े चले गये थे।”


धर्म एवं बुद्धि का सम्बंध

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बीरबल एक ब्राह्मण थे और बहुत बुद्धिमान थे तो बादशाह अकबर ने भी ब्राह्मण बनने की सोची। बीरबल ने काफी समझाने की कोशिश की कि एक अच्छा आदमी होना काफी है लकिन अकबर नहीं माने और एक संस्कार कार्य कि मांग की।

बीरबल बादशाह को यह कह कर एक नदी किनारे ले गये की वंहा पर एक व्यक्ति मुगल बादशाह को हिन्दू ब्राह्मण बना सकता है। वह व्यक्ति वहाँ पर एक गधे को रगड़ रहा था। 

उस आदमी ने बताया, “मैं अपने गधे को घोड़े मे बदल रहा हूँ। एक साधु ने मुझे बताया कि यदि मैं नदी किनारे खड़े होकर अपने गधे को रगड़ूँगा तो वह घोडा बन जायेगा।”

अकबर उस पर ज़ोर से हंसे। यह कभी नहीं हो सकता, यह कैसे हो सकता है?” जब बीरबल हंसे, तो अकबर को उनकी चल समझ आ गयी।

Story Moral शिक्षा : आपकी बुद्धि का रंग, जाती, धर्म से कोई संबंध नहीं है।


सबसे बड़ा पत् -राखपत् और रखापत् 

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एक बार दिल्ली दरबार में बैठे हुए बादशाह अकबर ने अपने नवरत्नों से पूछा – ” भाई, यह बताओ सबसे बड़ा पत् यानी शहर कौन सा है|” पहले नवरत्न ने कहा – ” सोनीपत|” दूसरा नवरत्न बोला – “हुजूर, पानीपत सबसे बड़ा पत् है|” 

तीसरे नवरत्न ने लंबी हांकी – ” नहीं, जनाब से बड़ा और कोई दूसरा नहीं है |” चौथे नवरत्न अपना राग अलापने लगा – ” सबसे बड़ा पत् तो दिल्ली पत् यानी दिल्ली शहर है |” 

बीरबल चुपचाप बैठे हुए सारी बातें सुन रहे थे | अकबर ने बीरबल से कहा – “तुम भी कुछ बोलो, “

बीरबल ने कहा ” सबसे बड़ा पत् है राखपत् और दूसरा बड़ा पत् है रखापत् |” अकबर ने पूछा – “बीरबल हमने सोनीपत, पानीपत, दलपत और दिल्ली पत् सब सुने हैं | पर राखपत् और रखापत् किस शहर का नाम है| ” 

बीरबल बोले – ” हुजूर राखपत् का मतलब है मैं आपकी बात रखूं और आप मेरी बात रखो | यह मेल जोल और प्रेम भाव जिस पत् में नहीं है उस पत् का क्या मतलब | प्रेम भाव है तो जंगल में भी मंगल और प्रेम भाव नहीं है तो नगर भी नरक का द्वार है |”अकबर बीरबल की बात सुनकर बहुत खुश हुए।

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