10 Best Moral Stories In Hindi | एक बार जरूर पढ़ें

10 Best Moral Stories In Hindi


इस Blog में आपको 10 best moral stories hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही प्रेरक है। ऐसे  किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे पर ये किस्से कुछ अलग हौ। हमने भी इस ब्लॉग में 10 best moral stories hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा आनंद मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ 10 best Moral Stories In Hindi 2021 दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको 10 best moral stories hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।

10 best moral stories hindi
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1) बदलाव


ज़िन्दगी में बहुत सारे ऐसे अवसर आते है जब हम बुरे हालात का सामना कर रहे होते है और सोचते है कि क्या ही किया जा सकता है क्योंकि इतनी जल्दी सबकुछ बदलना सम्भव तो है नही और क्या पता मेरा यह छोटा सा बदलाव कोई क्रांति लाएगा भी या नही पर मैं आपको यह बता दूं कि हर क्रांति की शुरुवात एक छोटे से बदलाव और प्रयास से होती है। कई बार तो सफलता सिर्फ हमसे कुछ ही कदम की दूरी पर होती है पर हम हार मान लेते है जबकि अपनी क्षमताओं पर भरोसा रखकर किया जाने वाला कोई भी बदलाव छोटा नही होता और वो हमारी ज़िंदगी मे एक नींव का पत्थर शाबित होता है। चलिए एक कहानी पढ़ते है जिसकी मदद से यह जानने में आसानी होगी कि कैसे एक छोटा सा बदलाव हमारी ज़िंदगी मे एक नींव का पत्थर साबित हो सकता है।

एक लड़का सुबह सुबह दौड़ने को जाया करता था। आते जाते वह एक बूढ़ी महिला को देखता था जो कि तालाब के किनारे बैठ कर कछुओं की पीठ साफ किया करती थी। एक दिन उसने इसके पीछे का कारण जानने की सोची।

वो लड़का उस महिला के पास गया और उनका अभिवादन करते हुए बोला- नमस्ते आंटी!, मैं हमेशा आपको देखता हूँ कि आप यहाँ बैठकर कछुओं की पीठ साफ किया करती है, आप ऐसा क्यों करती है आंटी जी। महिला ने उस मासूम से लड़के की ओर देखा और बोला- मैं हर रविवार को यहाँ आती हूँ और इन कछुओं की पीठ साफ करती हूँ और ये करने पर मुझको बहुत ही ज्यादा सुख की अनुभूति होती है। क्योंकि इनकी पीठ पर जो कवच होता है उसपर कचरा जमा हो जाने की वजह से इनकी गर्मी पैदा की क्षमता कम हो जाती है इसी की वजह से कछुओं को तैरने में बहुत ही मुश्किल का सामना करना पड़ता है। अगर कुछ समय तक ऐसा ही रहता है तो इनके कवच भी कमजोर हो जाते है और टूट जाते है इसीलिए कवच को साफ करती हूं।


यह सोचकर लड़का बहुत परेशान था उसने उस महिला से कहा बेशक आप बहुत अच्छा काम कर रही है परंतु इस तालाब में बहुत से कछुए रहते है और इस संसार मे कितने कछुए होंगे जो इनसे भी बुरी हालात में होंगे। आप अकेली उन सबके लिए कुछ न कर सकती है तो आंटी जी आपके ये करने से क्या फायदा है।

महिला ने बहुत ही छोटा परन्तु असरदार जवाब दिया- हाँ बेटे! तुमने बिल्कुल सही कहा मैं सारे कछुओं के लिए कुछ न कर सकती है परंतु तुम सोचो मैं जिन कछुओं के लिए ये कर देती हूँ उनका जीवन तो बहुत ही अच्छे से निकल जाता होगा। मेरे छोटे से प्रयास से उस कछुए की ज़िंदगी मे तो बहुत बड़ा बदलाव आयेगा न।


2) अपना अपना नज़रिया


एक बार एक संत अपने शिष्यों के साथ नदी में स्नान कर रहे थे। तभी वहाँ से एक राहगीर गुज़रा और महात्मा से कुछ पूछने के लिए रुक गया। महात्मन एक बात बताइये यहाँ के लोग कैसे है क्योंकि मैं यहाँ पर नया हूँ और मुझे इस जगह के बारे में कुछ भी नही पता है।

इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा- मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब बाद में दूँगा पहले तुम ये बताओ तुम जिस जगह से आये हो वहाँ के लोग कैसे थे। इसपर उस आदमी ने कहा - उनके बारे में क्या ही कहूँ स्वामी वहाँ तो एक से एक कपटी लोग बसे थे इसीलिए तो मैं उन्हें छोड़कर यहाँ बसेरा करने आया हूँ। महात्मा ने जवाब दिया- बन्धु, तुम्हे इस गाँव मे भी वैसे ही लोग मिलेंगे। वह आदमी आगे बढ़ गया।

थोड़ी देर बाद एक और राहगीर वहाँ से गुजरता है और महात्मा को प्रणाम करने के बाद उनसे पूछता है - महात्मा जी मैं इस गाँव मे नया हूँ और परदेश से आया हूँ और इस गाँव मे बसने की इच्छा रखता हूँ, नए होने की वजह से मुझे कुछ जानकारी नही है इस गाँव के बारे में इसलिए आप मुझे बता सकते है कि यह जगह कैसी है और यहाँ के लोग कैसे है।

इस पर महात्मा ने उस व्यक्ति से कहा- मैं तुम्हारे इस सवाल का जवाब बाद में दूँगा पहले तुम ये बताओ तुम जिस जगह से आये हो वहाँ के लोग कैसे थे। इसपर उस आदमी ने कहा - महात्मा जहाँ से मैं आया हूँ वहाँ के लोग बहुत ही सभ्य और सुलझे हुए थे मेरा तो यहां आने का मन भी न हो रहा था परंतु काम के सिलसिले में यहाँ आने पड़ा। इस बात पर महात्मा ने बोला - चिंता न करो वत्स तुम्हे यह भी अच्छे और नेकदिल लोग ही मिलेंगे।


शिष्य ने राहगीर के जाते ही गुरुजी से पूछा- गुरुजी आपने दो अलग-अलग राहगीरों को अलग-अलग जवाब क्यों दिया? इसपर गुरुजी बोल उठे - पुत्र सब नज़रिये का खेल है। अगर हम अच्छाई खोजेंगे तो हमे अच्छाई मिलेगी और बुराई खोजेंगे तो बुराई मिलेगी।

यही जीवन का सार है।


3) सोच समझकर बोले


एक व्यक्ति ने एक पादरी के सामने अपने पड़ोसी की खूब निंदा कि. बाद में जब उसे अपनी गलती का अहसास हुआ, तो वह पुनः पादरी के पास पहुंचा और उस गलती के लिए क्षमा याचना करने लगा. पादरी ने उससे कहा कि वह पंखो से भरा एक थैला शहर के बीचोबीच बिखेर दे. उस व्यक्ति ने पादरी कि बात सुनकर ऐसा ही किया और फिर पादरी के पास पहुँच गया.

उस व्यक्ति की बात सुनकर पादरी ने उससे कहा कि जाओ और उन सभी पंखो को फिर से थैले में भरकर वापस ले आओ. वह व्यक्ति थोड़ा हिचका पर पादरी का आदेश मानते हुए उसने ऐसा करने की कोशिश की. काफी प्रयत्न करने के बाद भी वह सभी पंखो जमा नहीं कर सका. जब आधा भरा थैला लेकर वह पादरी के सामने पहुंचा तो पादरी ने उससे कहा की यही बात हमारे जीवन में भी लागू होती है.
जिस तरह तुम पंख वापस नहीं ला सकते, उसी तरह तुम्हारे कटु वचन को भी वापस नहीं किया जा सकता. उस व्यक्ति का जो नुकसान हुआ है, अब उसकी भरपाई संभव नहीं है. आलोचना का मतलब नकारात्मक बातें करना और शिकायत करना ही नहीं होता बल्कि आलोचना सकारात्मक भी हो सकती है. आपकी कोशिश यह होनी चहिये की आपकी आलोचना से, आपके द्वारा सुझाये विचारो से उसकी सहायता हो जाएँ.

शिक्षा/Moral:- दोस्तों कई बार देखा गया है कि माँ – बाप के द्वारा बच्चो से की गई बातचीत का ढंग उनके भविष्य कि रूपरेखा भी तय कर देता है. इसलिए घर से लेकर बाहर दोस्तों के साथ कुछ भी कहने में सावधानी बरतें. इसलिए अगर आप समझ कर बोलेंगे तो हमेशा फायदे में रहेंगे.



4) ऋषि और एक चूहा


एक वन में एक ऋषि रहते थे. उनके डेरे पर बहुत दिनों से एक चूहा भी रहता आ रहा था. यह चूहा ऋषि से बहुत प्यार करता था. जब वे तपस्या में मग्न होते तो वह बड़े आनंद से उनके पास बैठा भजन सुनता रहता. यहाँ तक कि वह स्वयं भी ईश्वर की उपासना करने लगा था. लेकिन कुत्ते – बिल्ली और चील – कौवे आदि से वह सदा डरा – डरा और सहमा हुआ सा रहता.

एक बार ऋषि के मन में उस चूहे के प्रति बहुत दया आ गयी. वे सोचने लगे कि यह बेचारा चूहा हर समय डरा – सा रहता है, क्यों न इसे शेर बना दिया जाए. ताकि इस बेचारे का डर समाप्त हो जाए और यह बेधड़क होकर हर स्थान पर घूम सके. ऋषि बहुत बड़ी दैवीय शक्ति के स्वामी थे. उन्होंने अपनी शक्ति के बल पर उस चूहे को शेर बना दिया और सोचने लगे की अब यह चूहा किसी भी जानवर से न डरेगा और निर्भय होकर पूरे जंगल में घूम सकेगा.

लेकिन चूहे से शेर बनते ही चूहे की सारी सोच बदल गई. वह सारे वन में बेधड़क घूमता. उससे अब सारे जानवर डरने लगे और प्रणाम करने लगे. उसकी जय – जयकार होने लगी. किन्तु ऋषि यह बात जानते थे कि यह मात्र एक चूहा है. वास्तव में शेर नहीं है.

अतः ऋषि उससे चूहा समझकर ही व्यवहार करते. यह बात चूहे को पसंद नहीं आई की कोई भी उसे चूहा समझ कर ही व्यवहार करे. वह सोचने लगा की ऐसे में तो दूसरे जानवरों पर भी बुरा असर पड़ेगा. लोग उसका जितना मान करते है, उससे अधिक घृणा और अनादर करना आरम्भ कर देंगे.

अतः चूहे ने सोचा कि क्यों न मैं इस ऋषि को ही मार डालूं. फिर न रहेगा बाँस, न बजेगी बांसुरी. यही सोचकर वह ऋषि को मारने के लिए चल पड़ा. ऋषि ने जैसे ही क्रोध से भरे शेर को अपनी ओर आते देखा तो वे उसके मन की बात समझ गये. उनको शेर पर बड़ा क्रोध आ गया.

अतः उसका घमंड तोड़ने के लिए  ऋषि ने अपनी दैवीय शक्ति से उसे एक बार फिर चूहा बना दिया.

शिक्षा/Moral:- दोस्तों! हमें कभी भी अपने हितैषी का अहित नहीं करना चाहिए, चाहे हम कितने ही बलशाली क्यों न हो जाए. हमें उन लोगो को हमेशा याद रखना चाहिए जिन्होंने हमारे बुरे वक्त में हमारा साथ दिया होता है. इसके अलावा हमें अपने बीते वक्त को भी नहीं भूलना चाहिए. चूहा यदि अपनी असलियत याद रखता तो उसे फिर से चूहा नहीं बनना पड़ता. बीता हुआ समय हमें घमंड से बाहर निकालता है.



5) गलती को स्वीकार करो


महात्मा गाँधी और खान अब्दुल गफ्फार खान एक ही जेल में कैद थे. यद्यपि देशी-विदेशी जेलर गाँधी जी का बहुत सम्मान करते थे, किन्तु गाँधी जी भी जेल के नियमो और अनुशासन का सख्ती से पालन करते थे. जेलर के आने पर गाँधी जी उनके सम्मान में उठकर खड़े हो जाते थे.

खान अब्दुल गफ्फार खान, जिन्हें सीमान्त गाँधी कहा जाता था, को गाँधी जी का यह तौर-तरीका नापसंद था. उनका कहना था की जो सरकार इस देश पर गलत ढंग से हुकूमत कर रही है, हम भला उसे और उसके संस्थाओ को मान्यता क्यों दे.

गाँधी जी का कहना था की हम जहाँ भी हो हमें वहां के अनुशासन का पालन करना चाहिए. एक दिन सीमान्त गाँधी ने महात्मा गाँधी पर सीधे आरोप लगाते हुए कहा की ‘आप जेलर’ का सम्मान इसलिए करते है क्योंकि वह आपको नियम से अधिक सुविधाएँ देता है. उदाहरण के लिए हम लोगो को तो हिन्दी या अंग्रेजी का अख़बार मिलता है, लेकिन आपको गुजराती पत्र-पत्रिकाएँ भी मिलती है. आप इसलिए जेलर के अहसानमंद हो गये है. दुसरे दिन से गाँधी जी ने केवल एक ही अख़बार लिया और शेष साहित्य लेने से इंकार कर दिया.

एक महीना बीत गया. गाँधी जी जेलर के प्रति वही सम्मान प्रदर्शित करते रहे जो वे पहले किया करते थे. यह तौर-तरीका भला सीमांत गाँधी की नजर से कैसे चूक सकता था. उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ, वे गाँधी जी के पास जाकर माफ़ी मांगने लगे. गाँधी जी ने हंसकर उन्हें गले लगा लिया. दुसरे दिन से सीमांत गाँधी के तेवर भी बदल गये और वे भी जेलर के आगमन पर उसके सम्मान में उठकर खड़े होने लगे.

शिक्षा/Story:- दोस्तों यह कहानी हमें यह बताती है कि व्यक्ति को अपनी गलती स्वीकार करने में कभी भी नहीं हिचकिचाना चाहिए और हर किसी का सम्मान करना चाहिए. हमें महात्मा गाँधी जी के जीवन से यह जरुर सीख लेनी चाहिए की हमें हर व्यक्ति का सम्मान करना चाहिए भले वह इंसान हमारा सम्बन्धी हो या नहीं.



6) आलस्य का त्याग करें


एक बड़े शहर में एक घर में तीन भाई रहते थे. यूँ तो तीनो साथ रहते थे, लेकिन तीनो को एक – दूसरे के सुख-दुःख से कोई लेना-देना नहीं था. तीनो अपनी ही दुनिया में खोये रहते थे, उन्हें किसी और की परवाह नहीं थी. अचानक एक दिन आधी रात को छोटे भाई का बच्चा जग गया और जोर-जोर से रोने लगा. उसने सिर में बहुत तेज दर्द होने की शिकायत की.

रात काफी हो जाने के कारण दवा की सारी दुकाने बंद हो चुकी थी. घर में भी कोई दवा नहीं थी. उस बच्चे के माता-पिता दोनों ने अपने तरीके से उसे खूब बहलाने और चुप कराने का प्रयास किया पर उनका यह सारा प्रयास बेकार गया. वह अभी भी रोने में लगा था. सभी भाई बच्चे की आवाज सुनकर उठ गये लेकिन कोई भी उसकी मदद के लिए आगे नहीं आया.

तीनो भाइयो के घर के सामने एक झोपड़ी थी. उसमे एक अधेड़ उम्र की महिला थकी – मंदी सो रही थी. अचानक उसे बच्चे की रोने की आवाज सुनाई दी. परन्तु उसे भी आँखे खोलनी की इच्छा नहीं हो रही थी, लेकिन उसने सोचा अगर बच्चे को दर्द से राहत मिल जाती है तो सभी लोग चैन से सो सकेंगे. उसने तुरंत आलस्य त्याग कर बच्चे की माँ को आवाज लगाई – ठण्ड लगने के कारण बच्चा रो रहा है. यह ले जाओ काढ़ा. इसे पीते ही उसे सिर दर्द से आराम मिल जायेगा.

बुढ़िया की आवाज सुनकर बच्चे की माँ उस बुढ़िया के पास गई और झिझकते हुए वहां से काढ़ा ले गई और अपने बच्चे को पिला दिया. काढ़ा पीने के कुछ ही पलों बाद बच्चे को दर्द से राहत मिल गई और बच्चे के साथ – साथ सभी लोग चैन से सो गये.

शिक्षा/Moral:- इस कहानी से यह शिक्षा मिलती है कि आलस्य त्यागकर ही किसी दूसरे की मदद की जा सकती है. यह ज़िन्दगी बहुत छोटी है हमें इसे आलस्य में नहीं गुजारना चाहिए बल्कि इस जीवन का सदुपयोग करना चाहिए साथ ही हमें परोपकार के गुण को भूलना नहीं चाहिए जब कभी भी परोपकार करने का मौका मिले तो हमें खुद से जो भी सहायता हो सके वह करनी चाहिए.



7) खुशी का राज़


एक शहर में विजय नाम का एक अमीर व्यापारी रहता था. उस व्यक्ति के पास बहुत अधिक धन था. एक दिन उसने अपनी पत्नी अंजू को करोडो रूपये का एक नेकलेस गिफ्ट किया जिस कारण उसकी पत्नी अंजू को उस नेकलेस से काफी लगाव था.

एक बार वे दोनों एक धर्मयात्रा पर निकले. धर्मयात्रा में चलते – चलते वे एक धर्मस्थल में पहुंचे जहाँ अचानक एक नटखट बन्दर अंजू के नेकलेस को झपटकर ले गया और उस बन्दर ने उसे एक ऊँचे पेड़ की टहनी में टांग दिया.

अंजू ने उस नेकलेस को निकालने की कोशिश की पर वह नाकाम हुई और उसे देखकर वहां और लोग भी उस नेकलेस को निकालने में जुट गये. लेकिन वे लोग भी उस नेकलेस को निकालने में असमर्थ रहे.

अचानक लोगो को लगा की बन्दर ने उस नेकलेस को नीचे बहते गंदे नाले में गिरा दिया. कुछ लोगो ने उस नेकलेस को निकालने के लिए नाले में छलांग लगा दी. तभी उधर से गुजर रहे एक गुरूजी को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ.

उन्होंने गौर से देखा तो पाया की जिस नेकलेस को पाने के लिए लोग नाले में कूदे है, वह नेकलेस तो अभी भी पेड़ में लटक रहा है.

उन्होंने उन लोगो से कहा की आप जिस चीज को एक नाले में पाने की कोशिश कर रहे हो, वह तो सिर्फ उसकी परछाई है. असली चीज तो अभी भी पेड़ से लटक रही है. यह सब देखकर वे लोग हताश हो गये.

शिक्षा/Moral:- इस कहानी की शिक्षा यह है कि हम बाहर की चीजो में खुशियाँ ढूंढते रहते है और उन चीजो से खुद को खुश रखना चाहते है किन्तु इन बाहरी चीजो से हमें क्षणिक भर ख़ुशी तो मिल सकती है लेकिन असली ख़ुशी हमें तब ही मिलती है जब हमारा अंतरमन खुश हो. इसलिए खुशियाँ पाने के लिए बाहरी चीजो के बजाय खुद के अन्दर झांककर देखे.



8) काले कौवे की दुखी कहानी


एक जंगल में एक कौवा रहता था और वह अपनी जिंदगी से बहुत दुखी था.वह जब भी जंगल में घूमता तो दुसरे पक्षियों को भी देखता था और उन्हें देखकर उसे लगता की उसका रंग बहुत काला है और यही उसके दुःख का असली कारण था. अब रोज का यही सिलसिला था तो वह कौवा उदास रहने लग गया था।

एक दिन जब वह जंगल में उड़ रहा था तो उसने एक तालाब में बतख को तैरते देखा तो वह एक पेड़ में बैठ गया और सोचने लगा की यह बतख कितना सफ़ेद है.काश मेरा भी रंग सफ़ेद होता. फिर कुछ देर बाद वह कौवा बतख के पास गया|

बतख के पास जाते ही कौवा उससे बोला- तुम बहुत खुशकिस्मत हो जो तुम्हारा रंग सफ़ेद है. बतख ने कौवे की बात सुनी|

बतख ने कौवे से बोला- हाँ मैं सफ़ेद तो हूँ लेकिन जब मैं हरे रंग के तोते को देखता हूँ तो मुझे अपने इस सफ़ेद रंग से गुस्सा आता है।

बतख की बात सुनकर वह कौवा वहा से चला गया और कुछ समय बाद वह तोते के पास पहुंचा.

कौवा तोते से बोला- तुम्हारा रंग तो बहुत सुन्दर है तुमको यह देखकर बहुत अच्छा लगता होगा।

कौवे की बात सुनकर तोता बोला- हाँ,मुझे लगता तो अच्छा है की मैं इतना सुंदर हूँ लेकिन मैं सिर्फ हरा हूँ और जब कभी भी मैं मोर को देख लेता हूँ तो मुझे बहुत बुरा लगता है क्योंकि मोर बहुत खुबसूरत है और उसके पास बहुत सारे रंग है.

कौवे को लगा यह बात भी सही है क्यों न अब मोर के पास ही चला जाय.

वह कौवा जंगल में मोर को ढूढने लगा किन्तु उसे मोर नहीं मिला फिर वह कुछ दिन बाद एक चिड़ियाघर में जा पहुंचा.

जहा उसे मोर दिख गया लेकिन मोर को देखने के लिए बहुत सारे लोगो की भीड़ जमा हुई थी तो कौवा उन लोगो के जाने का इन्तेजार करने लगा. जब वे सब लोग चले गये तो...

कौवा मोर के पास पहुंचा और मोर से बोला- वाह मोर,तुम तो सच में बहुत खुबसूरत हो तभी सब तुम्हारी इतनी तारीफ करते है. तुमको तो खुद पर बहुत गर्व महसूस होता होगा.

कौवे की बात सुनकर मोर बड़े दुःख के साथ बोला- तुम्हारी बात बिल्कुल ठीक है पर मेरे अलावा इस दुनिया में कोई और दूसरा खुबसूरत पक्षी नहीं है इसलिए मैं यहाँ चिड़ियाघर में कैद हूँ।

यहाँ पर सब मेरी रखवाली करते है जिस कारण में कही भी नहीं जा सकता और अपने मन के मुताबिक कुछ भी नहीं कर सकता है.

मैं भी काश तुम्हारी तरह कौवा होता तो मुझे भी कोई कैद करके नहीं रखता और मैं भी हमेशा तुम्हारी तरह खुले आसमान में जहा चाहो वहा घूमता रहता पर एक मोर के लिए यह सब मुमकिन नहीं.

कौवे ने मोर की सारी बातें सुनी और फिर वहा से चले गया और सारी बात समझ गया. उसे इस बात का अहसास हो गया था कि सिर्फ वो ही नहीं बल्कि हर कोई उसकी तरह दुखी और परेशान है।

इस कहानी की प्रेरणा- कोई आदमी कितना सुखी है वह सिर्फ वो ही आदमी जानता है क्योंकि हर किसी के अपने जीवन में कई परेशानीयाँ होती है अपने दुःख होते है। इसलिए हमें दुसरे के सुख से जलन न करते हुए उससे सीखना चाहिए तथा खुद में जो अच्छी चीजे है उनको देखना चाहिए न की कमजोरी को. अगर कोई कमजोरी होती भी है तो उसे दूर करना चाहिये.



9) चूहा और भगवान


एक बार की बात है.एक चूहा था.एक दिन उसने सोचा की चूहा होना बहुत गलत बात है,क्योंकि हमेशा बिल्लियों से खतरा रहता है और बोलने लगा की काश मैं बिल्ली होता. यह सुनकर भगवान को चूहे पर दया आ गयी और भगवान ने उसे बिल्ली बना दिया. बिल्ली बनने के बाद उसे कुत्तो से डर लगने लगा.

चूहा फिर सोचने लगा- काश मैं कुत्ता होता तो मैं कही भी निर्भीक होकर घूम सकता. भगवान ने उसे कुत्ता बना दिया. कुत्ता बनने के बाद वह दूर-दूर तक खूब घूमा.

एक दिन वह कुत्ता जंगल में चला गया, तो शेर उसके पीछे पड़ गया. वह किसी तरह अपनी जान-बचाकर वहा से निकला और.....

तब वह कुत्ता फिर बोला- काश मैं शेर होता तो मैं बिना किसी डर के जंगल में घूमता रहता.

भगवान ने उसकी कही हुई बात सुनी-उसे शेर भी बना दिया. वह अब जंगल में जाकर रहने लगा. वह पूरा जंगल घूमता रहता और वह बहुत ही खुश था, जब वह यह देखता की जंगल के सारे जानवर उससे डरते है.

एक दिन उस जंगल में एक शिकारी आ गया. वह शिकारी उस शेर को मारने के लिए तीर चलाने लगा. उसे उन तीरों से बचने के लिए गुफा की ओर भागना पड़ा और वहा छुपना पड़ा.

फिर उस शेर ने सोचा- यह भी कोई जिंदगी हुई. काश में मनुष्य होता.

इस बार भगवान को उस पर दया नहीं आई और उन्होंने उसे फिर से चूहा बना दिया और

भगवान उस चूहे से बोले- मैं तुम्हे कुछ भी बना दूँ ,पर तुम रहोगे तो चूहे ही.

शिक्षा/Moral:- दोस्तों, यह कहानी हमें सीख देती है कि जो व्यक्ति अपनी परिस्थितियो से घबरा कर पलायन करता है, उसे चाहे कितनी भी सुख-सुविधाएँ दे दी जाय पर वह हमेशा असंतुष्ट ही रहेगा.

हमें कभी भी अपनी परिस्थितियो से घबरा कर पलायन नहीं करना चाहिए. चाहे दुःख कितना ही बड़ा हो या आपके हालात उस समय आपके पक्ष में न हो. आपको घबराना नहीं चाहिए और उन परिस्थितियो में खुद को मजबूत बना कर उनका सामना करना चाहिए.



10) मुश्किलों से सीखे


एक व्यक्ति अपने गधा को लेकर शहर से लौट रहा था। गलती से वह गधा पैर खिसकने के कारण सीधे एक गहरे गढ़े में गिर गया।

उसे निकलने के लिए उस व्यक्ति ने पूरा कोशिश किया परन्तु वह उस गधे को निकाल नहीं पाया ।

जब उस व्यक्ति को लगा की उसके गधे को उस गढ़े से निकालना अब असंभव हैं तो उसने उसे जिन्दा ही मिटटी से ढक देने का सोचा और वह ऊपर से मिटटी डालने लगा।

बहुत देर तक मिटटी डालने के बाद वह इंसान पास ही अपने घर चले गया ।

पर ढेर सारी मिटटी डालने के कारण वह गधा अपने ऊपर गिरे हुए मिटटी की मदद से धीरे-धीरे उस पर अपना पैर रख-रख कर उस गढ़े के ऊपर जिन्दा चढ़ आया।

अगले दिन जब वह व्यक्ति सुबह उठा तो उसने देखा उसका गधा उसके घर के बहार ही खड़ा था । यह करिश्मा देखकर वह व्यक्ति स्तम्भ रहे गया।

शिक्षा/Moral:- इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी हार नहीं मानना चाहिए और बार-बार कोशिश करते रहना चाहिए।

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