10 Moral Stories In Hindi 2021 | नैतिक कहानियाँ हिंदी में 2021

 10 Moral Stories In Hindi 2021


इस Blog में आपको 10 best moral stories hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही प्रेरक है। ऐसे  किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे पर ये किस्से कुछ अलग हौ। हमने भी इस ब्लॉग में 10 best moral stories hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा आनंद मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ 10 best Moral Stories In Hindi 2021 दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको 10 best moral stories hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।

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1) बादल और राजा Moral Stories In Hindi


बादल अरबी नस्ल का एक शानदार घोड़ा था। वह अभी 1 साल का ही था और रोज अपने पिता – “राजा” के साथ ट्रैक पर जाता था। राजा

घोड़ों की बाधा दौड़ का चैंपियन था और कई सालों से वह अपने मालिक को सर्वश्रेष्ठ घुड़सवार का खिताब दिला रहा था।

एक दिन जब राजा ने बादल को ट्रैक के किनारे उदास खड़े देखा तो बोला, ” क्या हुआ बेटा तुम इस तरह उदास क्यों खड़े हो?”

“कुछ नहीं पिताजी…आज मैंने आपकी तरह उस पहली बाधा को कूदने का प्रयास किया लेकिन मैं मुंह के बल गिर पड़ा…मैं कभी आपकी तरह काबिल नहीं बन पाऊंगा…”

राजा बादल की बात समझ गया। अगले दिन सुबह-सुबह वह बादल को लेकर ट्रैक पर आया और एक लकड़ी के लट्ठ की तरफ इशारा करते हुए बोला- ” चलो बादल, ज़रा उसे लट्ठ के ऊपर से कूद कर तो दिखाओ।”

बादला हंसते हुए बोला, “क्या पिताजी, वो तो ज़मीन पे पड़ा है…उसे कूदने में क्या रखा है…मैं तो उन बाधाओं को कूदना चाहता हूँ जिन्हें आप कूदते हैं।”

“मैं जैसा कहता हूँ करो।”, राजा ने लगभग डपटते हुए कहा।

अगले ही क्षण बादल लकड़ी के लट्ठ की और दौड़ा और उसे कूद कर पार कर गया।

“शाबाश! ऐसे ही बार-बार कूद कर दिखाओ!”, राजा उसका उत्साह बढाता रहा।

अगले दिन बादल उत्साहित था कि शायद आज उसे बड़ी बाधाओं को कूदने का मौका मिले पर राजा ने फिर उसी लट्ठ को कूदने का निर्देश दिया।

करीब 1 हफ्ते ऐसे ही चलता रहा फिर उसके बाद राजा ने बादल से थोड़े और बड़े लट्ठ कूदने की प्रैक्टिस कराई।

इस तरह हर हफ्ते थोड़ा-थोड़ा कर के बादल के कूदने की क्षमता बढती गयी और एक दिन वो भी आ गया जब राजा उसे ट्रैक पर ले गया।

महीनो बाद आज एक बार फिर बादल उसी बाधा के सामने खड़ा था जिस पर पिछली बार वह मुंह के बल गिर पड़ा था… बादल ने दौड़ना शुरू किया… उसके टापों की आवाज़ साफ़ सुनी जा सकती थी… 1…2…3….जम्प….और बादल बाधा के उस पार था।

आज बादल की ख़ुशी का ठिकाना न था…आज उसे अन्दर से विश्वास हो गया कि एक दिन वो भी अपने पिता की तरह चैंपियन घोड़ा बन सकता है और इस विश्वास के बलबूते आगे चल कर बादल भी एक चैंपियन घोड़ा बना।

दोस्तों, बहुत से लोग सिर्फ इसलिए goals achieve नहीं कर पाते क्योंकि वो एक बड़े challenge या obstacle को छोटे-छोटे challenges में divide नहीं कर पाते। इसलिए अगर आप भी अपनी life में एक champion बनना चाहते हैं…एक बड़ा लक्ष्य हासिल करना चाहते हैं तो systematically उसे पाने के लिए आगे बढिए… पहले छोटी-छोटी बाधाओं को पार करिए और ultimately उस बड़े goal को achieve कर अपना जीवन सफल बनाइये।

Moral of the story is:

जल्दी हार मत मानिए, बल्कि छोटे से शुरू करिए और प्रयास जारी रखिये…इस तरह आप उस लक्ष्य को भी प्राप्त कर पायेंगे जो आज असंभव लगता है।


2) कहीं बारिश हो गयी तो! Moral Stories In Hindi


4 साल से किशनगढ़ गाँव में बारिश की एक बूँद तक नहीं गिरी थी। सभी बड़े परेशान थे। हरिया भी अपने बीवी-बच्चों के साथ जैसे-तैसे समय काट रहा था।

एक दिन बहुत परेशान होकर वह बोला, “अरे ओ मुन्नी की माँ, जरा बच्चों को लेकर पूजा घर में तो आओ…”

बच्चों की माँ 6 साल की मुन्नी और 4 साल के राजू को लेकर पूजा घर में पहुंची।

हरिया हाथ जोड़ कर भगवान् के सामने बैठा था, वह रुंधी हुई आवाज़ में अपने आंसू छिपाते हुए बोला, “सुना है भगवान् बच्चों की जल्दी सुनता है…चलो हम सब मिलकर ईश्वर से बारिश के लिए प्रार्थना करते हैं…”

सभी अपनी-अपनी तरह से बारिश के लिए प्रार्थना करने लगे।

मुन्नी मन ही मन बोली-

भगवान् जी मेरे बाबा बहुत परेशान हैं…आप तो सब कुछ कर सकते हैं…हमारे गाँव में भी बारिश कर दीजिये न…

पूजा करने के कुछ देर बाद हरिया उठा और घर से बाहर निकलने लगा।

“आप कहाँ जा रहे हैं बाबा।”, मुन्नी बोली।

“बस ऐसे ही खेत तक जा रहा हूँ बेटा…”, हरिया बाहर निकलते हुए बोला।

“अरे रुको-रुको…अपने साथ ये छाता तो लेते जाओ”, मुन्नी दौड़ कर गयी और खूंटी पर टंगा छाता ले आई।”

छाता देख कर हरिया बोला, “अरे! इसका क्या काम, अब तो शाम होने को है…धूप तो जा चुकी है…”

मुन्नी मासूमियत से बोली, “अरे बाबा अभी थोड़ी देर पहले ही तो हमने प्रार्थना की है….कहीं बारिश हो गयी तो…”

मुन्नी का जवाब सुन हरिया स्तब्ध रह गया।

कभी वो आसमान की तरफ देखता तो कभी अपनी बिटिया के भोले चेहरे की तरफ…

उसी क्षण उसने महसूस किया कि कोई आवाज़ उससे कह रही हो-

प्रार्थना करना अच्छा है। लेकिन उससे भी ज़रूरी है इस बात में यकीन रखना कि तुम्हारी प्रार्थना सुनी जायेगी और फिर उसी के मुताबिक काम करना….

हरिया ने फौरन अपनी बेटी को गोद में उठा लिया, उसके माथे को चूमा और छाता अपने हाथ में घुमाते हुए आगे बढ़ गया।

दोस्तों, हम सभी प्रार्थना करते हैं पर हम सभी अपनी prayers में firmly believe नहीं करते। और ऐसे में हमारी प्रार्थना बस शब्द बन कर रह जाती है…वास्तविकता में नहीं बदलती। सभी धर्मों में विश्वास की शक्ति का उल्लेख है, कहते भी हैं कि “faith can move mountains” यानि दृढ विश्वास हो तो इंसान पहाड़ भी हिला सकता है। And, in fact दशरथ मांझी के रूप में हमारे सामने इसका एक प्रत्यक्ष प्रमाण भी है।

इसलिए अपनी पूजा को सही मायने में सफल होते देखना चाहते हैं तो ईश्वर में विश्वास रखें और ऐसे act करें मानो आपको प्रार्थना सुनी ही जाने वाली हो…और जब आप लगातार ऐसा करेंगे तो भगवान् आपकी ज़रूर सुनेगा!


3) हथौड़ा और चाभी Moral Stories In Hindi


शहर की तंग गलियों के बीच एक पुरानी ताले की दूकान थी। लोग वहां से ताला-चाबी खरीदते और कभी-कभी चाबी खोने पर डुप्लीकेट चाबी बनवाने भी आते। ताले वाले की दुकान में एक भारी-भरकम हथौड़ा भी था जो कभी-कभार ताले तोड़ने के काम आता था।

हथौड़ा अक्सर सोचा करता कि आखिर इन छोटी-छोटी चाबियों में कौन सी खूबी है जो इतने मजबूत तालों को भी चुटकियों में खोल देती हैं जबकि मुझे इसके लिए कितने प्रहार करने पड़ते हैं?

एक दिन उससे रहा नहीं गया, और दूकान बंद होने के बाद उसने एक नन्ही चाबी से पूछा, “बहन ये बताओ कि आखिर तुम्हारे अन्दर ऐसी कौन सी शक्ति है जो तुम इतने जिद्दी तालों को भी बड़ी आसानी से खोल देती हो, जबकि मैं इतना बलशाली होते हुए भी ऐसा नहीं कर पाता?”

चाबी मुस्कुराई और बोली,

दरअसल, तुम तालों को खोलने के लिए बल का प्रयोग करते हो…उनके ऊपर प्रहार करते हो…और ऐसा करने से ताला खुलता नहीं टूट जाता है….जबकि मैं ताले को बिलकुल भी चोट नहीं पहुंचाती….बल्कि मैं तो उसके मन में उतर कर उसके हृदय को स्पर्श करती हूँ और उसके दिल में अपनी जगह बनाती हूँ। इसके बाद जैसे ही मैं उससे खुलने का निवेदन करती हूँ, वह फ़ौरन खुल जाता है।

दोस्तों, मनुष्य जीवन में भी ऐसा ही कुछ होता है। यदि हम किसी को सचमुच जीतना चाहते हैं, अपना बनाना चाहते हैं तो हमें उस व्यक्ति के हृदय में उतरना होगा। जोर-जबरदस्ती या forcibly किसी से कोई काम कराना संभव तो है पर इस तरह से हम ताले को खोलते नहीं बल्कि उसे तोड़ देते हैं ….यानि उस व्यक्ति की उपयोगिता को नष्ट कर देते हैं, जबकि प्रेम पूर्वक किसी का दिल जीत कर हम सदा के लिए उसे अपना मित्र बना लेते हैं और उसकी उपयोगिता को कई गुना बढ़ा देते हैं।

इस बात को हेमशा याद रखिये-

हर एक चीज जो बल से प्राप्त की जा सकती है उसे प्रेम से भी पाया जा सकता है लेकिन हर एक जिसे प्रेम से पाया जा सकता है उसे बल से नहीं प्राप्त किया जा सकता।


4) आरी की कीमत Moral Stories In Hindi


एक बार की बात है एक बढ़ई था। वह दूर किसी शहर में एक सेठ के यहाँ काम करने गया। एक दिन काम करते-करते उसकी आरी टूट गयी। 

बिना आरी के वह काम नहीं कर सकता था, और वापस अपने गाँव लौटना भी मुश्किल था, इसलिए वह शहर से सटे एक गाँव पहुंचा। इधर-उधर पूछने पर उसे लोहार का पता चल गया।

वह लोहार के पास गया और बोला-

भाई मेरी आरी टूट गयी है, तुम मेरे लिए एक अच्छी सी आरी बना दो। 

लोहार बोला, “बना दूंगा, पर इसमें समय लगेगा, तुम कल इसी वक़्त आकर मुझसे आरी ले सकते हो।”

बढ़ई को तो जल्दी थी सो उसने कहा, ” भाई कुछ पैसे अधिक ले लो पर मुझे अभी आरी बना कर दे दो!”

“बात पैसे की नहीं है भाई…अगर मैं इतनी जल्दबाजी में औजार बनाऊंगा तो मुझे खुद उससे संतुष्टि नहीं होगी, मैं औजार बनाने में कभी भी अपनी तरफ से कोई कमी नहीं रखता!”, लोहार ने समझाया।

बढ़ई तैयार हो गया, और अगले दिन आकर अपनी आरी ले गया।

आरी बहुत अच्छी बनी थी। बढ़ई पहले की अपेक्षा आसानी से और पहले से बेहतर काम कर पा रहा था।

बढ़ई ने ख़ुशी से ये बात अपने सेठ को भी बताई और लोहार की खूब प्रसंशा की।

सेठ ने भी आरी को करीब से देखा!

“इसके कितने पैसे लिए उस लोहार ने?”, सेठ ने बढ़ई से पूछा।

“दस रुपये!”

सेठ ने मन ही मन सोचा कि शहर में इतनी अच्छी आरी के तो कोई भी तीस रुपये देने को तैयार हो जाएगा। क्यों न उस लोहार से ऐसी दर्जनों आरियाँ बनवा कर शहर में बेचा जाये!

अगले दिन सेठ लोहार के पास पहुंचा और बोला, “मैं तुमसे ढेर सारी आरियाँ बनवाऊंगा और हर आरी के दस रुपये दूंगा, लेकिन मेरी एक शर्त है… आज के बाद तुम सिर्फ मेरे लिए काम करोगे। किसी और को आरी बनाकर नहीं बेचोगे।”

“मैं आपकी शर्त नहीं मान सकता!” लोहार बोला।

सेठ ने सोचा कि लोहार को और अधिक पैसे चाहिए। वह बोला, “ठीक है मैं तुम्हे हर आरी के पन्द्रह रूपए दूंगा….अब तो मेरी शर्त मंजूर है।”v लोहार ने कहा, “नहीं मैं अभी भी आपकी शर्त नहीं मान सकता। मैं अपनी मेहनत का मूल्य खुद निर्धारित करूँगा। मैं आपके लिए काम नहीं कर सकता। मैं इस दाम से संतुष्ट हूँ इससे ज्यादा दाम मुझे नहीं चाहिए।”

“बड़े अजीब आदमी हो…भला कोई आती हुई लक्ष्मी को मना करता है?”, व्यापारी ने आश्चर्य से बोला।

लोहार बोला, “आप मुझसे आरी लेंगे फिर उसे दुगने दाम में गरीब खरीदारों को बेचेंगे। लेकिन मैं किसी गरीब के शोषण का माध्यम नहीं बन सकता। अगर मैं लालच करूँगा तो उसका भुगतान कई लोगों को करना पड़ेगा, इसलिए आपका ये प्रस्ताव मैं स्वीकार नहीं कर सकता।”

सेठ समझ गया कि एक सच्चे और ईमानदार व्यक्ति को दुनिया की कोई दौलत नहीं खरीद सकती। वह अपने सिद्धांतों पर अडिग रहता है।

अपने हित से ऊपर उठ कर और लोगों के बारे में सोचना एक महान गुण है। लोहार चाहता तो आसानी से अच्छे पैसे कमा सकता था पर वह जानता था कि उसका जरा सा लालच बहुत से ज़रूरतमंद लोगों के लिए नुक्सानदायक साबित होगा और वह सेठ के लालच में नहीं पड़ता।


5) पागल हाथी Moral Stories In Hindi


एक बार की बात है। एक गुरूजी थे। उनके बहुत से शिष्य थे। उन्होंने एक दिन अपने शिष्यों को बुलाया और समझाया-

शिष्यों सभी जीवों में ईश्वर का वास होता है इसलिए हमें सबको नमस्कार करना चाहिए।

कुछ दिनों बाद गुरूजी ने एक विशाल हवन का आयोजन किया और कुछ शिष्यों को लकड़ी लेने के लिए पास के जंगल भेजा। शिष्य लकड़ियाँ चुन रहे थे कि तभी वहाँ एक पागल हाथी आ धमका। सभी शिष्य शोर मचा कर भागने लगे,” भागो….हाथी आया…पागल हाथी आया….”

लेकिन उन सबके बीच एक शिष्य ऐसा भी था जो इस खतरनाक परिस्थिति में भी शांत खड़ा था। उसे ऐसा करते देख उसके साथियों को आश्चर्य हुआ और उनमे से एक बोला, “ये तुम क्या कर रहे हो? देखते नहीं पागल हाथी इधर ही आ रहा है…भागो और अपनी जान बचाओ!”

इस पर शिष्य बोला, ” तुम लोग जाओ, मुझे इस हाथी से कोई भय नहीं है… गुरूजी ने कहा था ना कि हर जीव में नारायण का वास है इसलिए भागने कि कोई जरुरत नहीं।”

और ऐसा कह कर वह वहीं खड़ा रहा और जैसे ही हाथी पास आया वह उसे नमस्कार करने लगा।

लेकिन हाथी कहाँ रुकने वाला था, वह सामने आने वाली हर एक चीज को तबाह करते जा रहा था। और जैसे ही शिष्य उसके सामने आया हाथी ने उसे एक तरफ उठा कर फेंक दिया और आगे बढ़ गया।

शिष्य को बहुत चोट आई, और वह घायल हो कर वहीँ बेहोश हो गया।

जब उसे होश आया तो वह आश्रम में था और गुरूजी उसके सामने खड़े थे।

गुरूजी बोले, “हाथी को आते देखकर भी तुम वहाँ से हटे क्यों नहीं जबकि तुम्हे पता था कि वह तुम्हे चोट पहुंचा सकता है।”

तब शिष्य बोला, “गुरूजी आपने ही तो ये बात कही थी कि सभी जीवों में ईश्वर का वास होता है। इसी वजह से मैं नहीं भागा, मैंने नमस्कार करना उचित समझा।”

तब गुरूजी ने समझाया –

बेटा तुम मेरी आज्ञा मानते हो ये बहुत अच्छी बात है मगर मैंने ये भी तो सिखाया है कि विकट परिस्थितियों में अपना विवेक नहीं खोना चाहिए । पुत्र, हाथी नारायण आ रहे थे ये तो तुमने देखा। हाथी को तुमने नारायण समझा। मगर बाकी शिष्यों ने जब तुम्हे रोका तो तुम्हे उनमे नारायण क्यों नज़र नहीं आये। उन्होंने भो तो तुम्हे मना किया था ना। उनकी बात का तुमने विश्वास क्यों नहीं किया।उनकी बात मान लेते तो तुम्हे इतनी तकलीफ का सामना नहीं करना पड़ता, तुम्हारी ऐसी हालत नहीं होती।जल भी नारायण है पर किसी जल को लोग देवता पर चढ़ाते है और किसी जल से लोग नहाते धोते हैं। हमेशा देश, काल और परिस्थिति को ध्यान में रखकर निर्णय लेना चाहिए।

मित्रों, कई बार ऐसा होता है कि किसी ज्ञानवर्धक बात का असल भाव समझने की बजाये हम उस बात में कहे गए शब्दों को पकड़ कर बैठ जाते हैं। गुरूजी ने शिष्यों को प्रत्येक जीव में नारायण देखने को कहा था जिसका अर्थ था कि हमें सभी का आदर करना चाहिए और किसी को नुक्सान नहीं पहुंचना चाहिए। लेकिन वह शिष्य बस उनके शब्दों को पकड़ कर बैठ गया और उसके जान पर बन आई।

अतः इस कहनी से हमें ये शिक्षा मिलती है कि हमें दूसरों कि बात का अनुसरण तो जरुर करना चाहिए मगर विशेष परिस्थिति में अपने विवेक का प्रयोग करने से नहीं चूकना चाहिए। हमें अपनी परिस्थिति के अनुसार ही निर्णय लेना चाहिए।


6) चिड़िया की परेशानी Moral Stories In Hindi


कैसोवैरी चिड़िया को बचपन से ही बाकी चिड़ियों के बच्चे चिढाते थे।

कोई कहता, ” जब तू उड़ नहीं सकती तो चिड़िया किस काम की।”, तो कोई उसे ऊपर पेड़ की डाल पर बैठ कर चिढाता कि,” अरे कभी सकारात्मक सोच पर कहानी sakaratmak soch ki kahaniहमारे पास भी आ जाया करो…जब देखो जानवरों की तरह नीचे चरती रहती हो…”

और ऐसा बोलकर सब के सब खूब हँसते!

कैसोवैरी चिड़िया शुरू-शुरू में इन बातों का बुरा नहीं मानती थी लेकिन किसी भी चीज की एक सीमा होती है।

बार-बार चिढाये जाने से उसका दिल टूट गया! वह उदास बैठ गयी और आसमान की तरफ देखते हुए बोली,

“हे ईश्वर, तुमने मुझे चिड़िया क्यों बनाया…और बनया तो मुझे उड़ने की काबिलियत क्यों नहीं दी… देखो सब मुझे कितना चिढ़ाते हैं… अब मैं यहाँ एक पल भी नहीं रह सकती, मैं इस जंगल को हमेशा-हमेशा के लिए छोड़ कर जा रही हूँ!”

और ऐसा कहते हुए कैसोवैरी चिड़िया आगे बढ़ गयी।

अभी वो कुछ ही दूर गयी थी कि पीछे से एक भारी-भरकम आवाज़ आई-

रुको कैसोवैरी! तुम कहाँ जा रही हो!

कैसोवैरी ने आश्चर्य से पीछे मुड़ कर देखा, वहां खड़ा जामुन का पेड़ उससे कुछ कह रहा था।

“कृपया तुम यहाँ से मत जाओ! हमें तुम्हारी ज़रुरत है। पूरे जंगल में हम सबसे अधिक तुम्हारी वजह से ही फल-फूल पाते हैं…. वो तुम ही हो जो अपनी मजबूत चोंच से फलों को अन्दर तक खाती हो और हमारे बीजों को पूरे जंगल में बिखेरती हो…हो सकता है बाकी चिड़ियों के लिए तुम मायने ना रखती हो लेकिन हम पेड़ों के लिए तुमसे बढ़कर कोई दूसरी चिड़िया नहीं है…मत जाओ…तुम्हारी जगह कोई और नहीं ले सकता!”

पेड़ की बात सुन कर कैसोवैरी चिड़िया को जीवन में पहली बार एहसास हुआ कि वो इस धरती पर बेकार में मौजूद नहीं है, भगवान् ने उसे एक बेहद ज़रूरी काम के लिए भेजा है और सिर्फ बाकी चिड़ियों की तरह न उड़ पाना कहीं से उसे छोटा नहीं बनाता!

आज एक बार फिर कैसोवैरी चिड़िया बहुत खुश थी, वह ख़ुशी-ख़ुशी जंगल में वापस लौट गयी।

Friends, कैसोवैरी चिड़िया की तरह ही कई बार हम इंसान भी औरों को देखकर low feel करने लगते हैं। हम सोचते हैं कि उसके पास ये है…उसके पास वो है….सब कितनी lucky हैं…and all that!

हमें कभी भी बेकार के comparisons में नहीं पड़ना चाहिए! हर एक इंसान अपने आप में unique है…अलग है। हर किसी के अन्दर कोई न कोई बात है जो उसे ख़ास बनाती है..हाँ हो सकता है कि वो पूरी दुनिया के लिए बस एक इंसान हो लेकिन किसी एक के लिए वो पूरी दुनिया हो सकता है!

इसलिए life की importance को समझिये और अपने इस अमूल्य जीवन को positive thoughts का तोहफा दीजिये….यकीन जानिये सकारात्मक सोच का ये एक तोहफा आपकी पूरी लाइफ को शानदार बना देगा!


7) राजा भोज और व्यापारी Moral Stories In Hindi


एक बार राजा भोज की सभा में एक व्यापारी ने प्रवेश किया। राजा ने उसे देखा तो देखते ही उनके मन में आया कि इस व्यापारी का सबकुछ छीन लिया जाना चाहिए। व्यापारी के जाने के बाद राजा ने सोचा –

मै प्रजा को हमेशा न्याय देता हूं। आज मेेरे मन में यह अन्याय पूर्ण भाव क्यों आ गया कि व्यापारी की संपत्ति छीन ली जाये?

उसने अपने मंत्री से सवाल किया मंत्री ने कहा, “इसका सही जवाब कुछ दिन बाद दे पाउंगा, राजा ने मंत्री की बात स्वीकार कर ली। मंत्री विलक्षण बुद्धि का था वह इधर-उधर के सोच-विचार में सयम न खोकर सीधा व्यापारी से मिलने पहूंचा। व्यापारी से दोस्ती करके उसने व्यापारी से पूछा, “तुम इतने चिंतित और दुखी क्या हो? तुम तो भारी मुनाफे वाला चंदन का व्यापार करते हो।”

व्यापारी बोला, “धारा नगरी सहित मैं कई नगरों में चंदन की गाडीयां भरे फिर रहा हूं, पर चंदन इस बार चन्दन की बिक्री ही नहीं हुई! बहुत सारा धन इसमें फंसा पडा है। अब नुकसान से बच पाने का कोई उपाय नहीं है।

व्यापारी की बातें सुन मंत्री ने पूछा, “क्या अब कोई भी रास्ता नही बचा है?”

व्यापारी हंस कर कहने लगा अगर राजा भोज की मृत्यु हो जाये तो उनके दाह-संस्कार के लिए सारा चंदन बिक सकता है।

मंत्री को राजा का उत्तर देने की सामग्री मिल चुकी थी। अगले दिन मंत्री ने व्यापारी से कहा कि, तुम प्रतिदिन राजा का भोजन पकाने के लिए एक मन (40 kg) चंदन दे दिया करो और नगद पैसे उसी समय ले लिया करो। व्यापारी मंत्री के आदेश को सुनकर बड़ा खुश हुूआ। वह अब मन ही मन राजा की लंबी उम्र होने की कामना करने लगा।

एक दिन राज-सभा चल रही थी। व्यापारी दोबारा राजा को वहां दिखाई दे गया। तो राजा सोचने लगा यह कितना आकर्षक व्यक्ति है इसे क्या पुरस्कार दिया जाये?

राजा ने मंत्री को बुलाया और पूछा, “मंत्रीवर, यह व्यापारी जब पहली बार आया था तब मैंने तुमसे कुछ पूछा था, उसका उत्तर तुमने अभी तक नहीं दिया। खैर, आज जब मैंने इसे देखा तो मेरे मन का भाव बदल गया! पता नहीं आज मैं इसपर खुश क्यों हो रहा हूँ और इसे इनाम देना चाहता हूँ!

मंत्री को तो जैसे इसी क्षण की प्रतीक्षा थी। उसने समझाया-

महाराज! दोनों ही प्रश्नों का उत्तर आज दे रहा हूं। जब यह पहले आया था तब अपनी चन्दन की लकड़ियों का ढेर बेंचने के लिए आपकी मृत्यु के बारे में सोच रहा था। लेकिन अब यह रोज आपके भोजन के लिए एक मन लकड़ियाँ देता है इसलिए अब ये आपके लम्बे जीवन की कामना करता है। यही कारण है कि पहले आप इसे दण्डित करना चाहते थे और अब इनाम देना चाहते हैं।

मित्रों, अपनी जैसी भावना होती है वैसा ही प्रतिबिंब दूसरे के मन पर पड़ने लगता है। जैसे हम होते है वैसे ही परिस्थितियां हमारी ओर आकर्षित होती हैं। हमारी जैसी सोच होगी वैसे ही लोग हमें मिलेंगे। यहीं इस जगत का नियम है – हम जैसा बोते हैं वैसा काटते हैं…हम जैसा दूसरों के लिए मन में भाव रखते हैं वैसा ही भाव दूसरों के मन में हमारे प्रति हो जाता है!

अतः इस कहानी से हमें ये सीख मिलती है कि हमेशा औरों के प्रति सकारात्मक भाव रखें।


8) एक रुपये की कीमत Moral Stories In Hindi


बहुत समय पहले की बात है, सुब्रोतो लगभग 20 साल का एक लड़का था और कलकत्ता की एक कॉलोनी में रहता था।

उसके पिताजी एक भट्टी चलाते थे जिसमे वे दूध को पका-पका कर खोया बनाने का काम करते थे।

सुब्रोतो वैसे तो एक अच्छा लड़का था लेकिन उसमे फिजूलखर्ची की एक बुरी आदत थी। वो अक्सर पिताजी से पैसा माँगा करता और उसे खाने-पीने या सिनेमा देखने में खर्च कर देता।

एक दिन पिताजी ने सुब्रोतो को बुलाया और बोले, “देखो बेटा, अब तुम बड़े हो गए हो और तुम्हे अपनी जिम्मेदारियां समझनी चाहियें। जो आये दिन तुम मुझसे पैसे मांगते रहते हो और उसे इधर-उधर उड़ाते हो ये अच्छी बात नहीं है।”

“क्या पिताजी! कौन सा मैं आपसे हज़ार रुपये ले लेता हूँ… चंद पैसों के लिए आप मुझे इतना बड़ा लेक्चर दे रहे हैं..इतने से पैसे तो मैं जब चाहूँ आपको लौटा सकता हूँ।”, सुब्रोतो नाराज होते हुए बोला।

सुब्रोतो की बात सुनकर पिताजी क्रोधित हो गए, पर वो समझ चुके थे की डांटने-फटकारने से कोई बात नहीं बनेगी। इसलिए उन्होंने कहा, “ ये तो बहुत अच्छी बात है…ऐसा करो कि तुम मुझे ज्यादा नहीं बस एक रूपये रोज लाकर दे दिया करो।”

सुब्रोतो मुस्कुराया और खुद को जीता हुआ महसूस कर वहां से चला गया।

अगले दिन सुब्रोतो जब शाम को पिताजी के पास पहुंचा तो वे उसे देखते ही बोले, “ बेटा, लाओ मेरे 1 रुपये।”

उनकी बात सुनकर सुब्रोतो जरा घबराया और जल्दी से अपनी दादी माँ से एक रुपये लेकर लौटा।

“लीजिये पिताजी ले आया मैं आपके एक रुपये!”, और ऐसा कहते हुए उसने सिक्का पिताजी के हाथ में थमा दिया।

उसे लेते ही पिताजी ने सिक्का भट्टी में फेंक दिया।

“ये क्या, आपने ऐसा क्यों किया?”, सुब्रोतो ने हैरानी से पूछा।

पिताजी बोले-

तुम्हे इससे क्या, तुम्हे तो बस 1 रुपये देने से मतलब होना चाहिए, फिर मैं चाहे उसका जो करूँ।

सुब्रोतो ने भी ज्यादा बहस नहीं की और वहां से चुपचाप चला गया।

अगले दिन जब पिताजी ने उससे 1 रुपया माँगा तो उसने अपनी माँ से पैसा मांग कर दे दिया…कई दिनों तक यही सिलसिला चलता रहा वो रोज किसी दोस्त-यार या सम्बन्धी से पैसे लेकर पिताजी को देता और वो उसे भट्टी में फेंक देते।

फिर एक दिन ऐसा आया, जब हर कोई उसे पैसे देने से मना करने लगा। सुब्रोतो को चिंता होने लगी कि अब वो पिताजी को एक रुपये कहाँ से लाकर देगा।

शाम भी होने वाली थी, उसे कुछ समझ नही आ रहा था कि वो करे क्या! एक रुपया भी ना दे पाने की शर्मिंदगी वो उठाना नहीं चाहता था। तभी उसे एक अधेड़ उम्र का मजदूर दिखा जो किसी मुसाफिर को हाथ से खींचे जाने वाले रिक्शे से लेकर कहीं जा रहा था।

“सुनो भैया, क्या तुम थोड़ी देर मुझे ये रिक्शा खींचने दोगे? उसके बदले में मैं तुमसे बस एक रुपये लूँगा”, सुब्रोतो ने रिक्शे वाले से कहा।

रिक्शा वाला बहुत थक चुका था, वह फ़ौरन तैयार हो गया।

सुब्रोतो रिक्शा खींचने लगा! ये काम उसने जितना सोचा था उससे कहीं कठिन था… थोड़ी दूर जाने में ही उसकी हथेलियों में छाले पड़ गए, पैर भी दुखने लगे! खैर किसी तरह से उसने अपना काम पूरा किया और बदले में ज़िन्दगी में पहली बार खुद से 1 रुपया कमाया।

आज बड़े गर्व के साथ वो पिताजी के पास पहुंचा और उनकी हथेली में 1 रुपये थमा दिए।

रोज की तरह पिताजी ने रूपये लेते ही उसे भट्टी में फेंकने के लिए हाथ बढाया।

“रुकिए पिताजी!”, सुब्रोतो पिताजी का हाथ थामते हुए बोला, “आप इसे नहीं फेंक सकते! ये मेरे मेहनत की कमाई है।”

और सुब्रोतो ने पूरा वाकया कह सुनाया।

पिताजी आगे बढे और अपने बेटे को गले से लगा लिया।

“देखो बेटा! इतने दिनों से मैं सिक्के आग की भट्टी में फेंक रहा था लकिन तुमने मुझे एक बार भी नहीं रोका पर आज जब तुमने अपनी मेहनत की कमाई को आग में जाते देखा तो एकदम से घबरा गए। ठीक इसी तरह जब तुम मेरी मेहनत की कमाई को बेकार की चीजों में उड़ाते हो तो मुझे भी इतना ही दर्द होता है, मैं भी घबरा जाता हूँ…इसलिए पैसे की कीमत को समझो चाहे वो तुम्हारे हों या किसी और के…कभी भी उसे फिजूलखर्ची में बर्वाद मत करो!”

सुब्रोतो पिताजी की बात समझ चुका था, उसने फौरन उनके चरण स्पर्श किये और अपने व्यवहार के लिए क्षमा मांगी। आज वो एक रुपये की कीमत समझ चुका था और उसने मन ही मन संकल्प लिया कि अब वो कभी भी पैसों की बर्बादी नहीं करेगा।


9) पेड़ का रहस्य Moral Stories In Hindi


शहर के बाहरी हिस्से में मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करने वाले एक सेल्स मैनेजर अपनी पत्नी और दो बच्चों के साथ रहते थे। वह रोज सुबह काम पर निकल जाते और देर शाम को घर लौटते।

एक बार कुछ चोरों ने मैनेजर के घर में चोरी करने का मन बनाया। चोरी करने के दो-चार दिन पहले से ही वे उनके घर के आस-पास चक्कर लगाने लगे और उनकी गतिविधियों पर नज़र रखने लगे।

एक दिन चोरों ने एक अजीब सी चीज देखी। मैनेजर साहब जब शाम को लौटे तो वह घर में घुसने से पहले बागीचे में लगे आम के पेड़ के पास जाकर खड़े हो गए। उसके बाद उन्होंने अपने बैग में से एक-एक करके कुछ निकाला और पेड़ में कहीं डाल दिया। चूँकि उनकी पीठ चोरों की तरफ थी इसलिए वे ठीक से देख नहीं पाए कि आखिर मैनेजर ने क्या निकाला और कहाँ डाला।

खैर! इतना देख लेना ही चोरों के लिए काफी था। उनकी आँखें चमक गयीं; उन्होंने सोचा कि ज़रूर मैनेजर ने वहां कोई कीमती चीज या पैसे छुपाये होंगे।

मैनेजर के अन्दर जाते ही चोर थोड़ा और अँधेरा होने का इंतज़ार करने लगे और जब उन्हें तसल्ली हो गयी कि मैनेजर साहब खा-पीकर सो गए हैं तो वे धीरे से बाउंड्री कूद कर उनके घर में दाखिल हुए।

बिना समय गँवाए वे आम के पेड़ के पास गए और मैनेजर साहब की छिपाई चीज ढूँढने लगे। चोर हैरान थे, बहुत खोजने पर भी उन्हें वहां कुछ नज़र नहीं आ रहा था..वे समझ नहीं पा रहे थे कि आखिर मैनेजर ने किस चतुराई से चीजें छिपाई हैं कि इतने शातिर चोरों के खोजने पर भी वे नहीं मिल रही हैं!

अंत में हार मान कर चोर वहां से चले गए। अगले दिन वे फिर छिपकर मैनेजर के ऑफिस से लौटने का इंतज़ार करने लगे।

रोज की तरह मैनेजर साहब देरी से घर लौटे। आज भी वे घर में घुसने से पहले उसी आम के पेड़ के पास गए और अपने बैग से कुछ चीजें निकाल कर उसमे डाल दी।

एक बार फिर चोर सबके सो जाने पर पेड़ के पास गए और जी-जान से खोजबीन करने लगे। पर आज भी उनके हाथ कुछ नहीं लगा।

अब चोरों को कीमती सामान से अधिक ये जानने की जिज्ञासा होने लगी कि आखिर वो मैनेजर किस तरह से चीजों को छिपता है कि लाख ढूँढने पर भी वो नहीं मिलतीं।

अपनी इसी जिज्ञासा को शांत करने के लिए वे सन्डे की सुबह शरीफों की तरह तैयार हो कर मैनेजर साहब से मिलने पहुंचे।

उनका लीडर बोला, “ सर, देखिये बुरा मत मानियेगा…दरअसल हम लोग चोर हैं! हम लोग कई दिन से आपके मकान में चोरी करने का प्लान बना रहे थे..लेकिन जब एक दिन हमने देखा कि आप ऑफिस से लौट कर आम के पेड़ में कुछ छुपा रहे हैं तो हमे लगा कि बस काम हो गया…हम आराम से आपकी छुपायी चीज लेकर गायब हो जायेंगे और चोरी का माल आपस में बाँट लंगे…पर पिछली दो रात हम सोये नहीं और सारी कोशिशें करके देख लीं कि वो चीजें हमें मिल जाएं; पर अब हम हार मान चुके हैं…कृपया आप ही हमें इस पेड़ का रहस्य बता दें!”

उनकी बात सुनकर मैनेजर साहब जोर से हँसे और बोले, “अरे भाई! मैं वहां कुछ नहीं छिपाता!”

“फिर आप रोज शाम को बैग से निकाल कर वहां क्या डालते हैं?”, लीडर ने आश्चर्य से पूछा।

“देखो!”, मैनेजर साहब गंभीर होते हुए बोले, “ मैं एक प्राइवेट जॉब में हूँ…वो भी सेल्स की…मेरे काम में इतना प्रेशर होता है, इतनी स्ट्रेस होती है कि तुम लोग उसका अंदाजा भी नहीं लगा सकते! रोज किसी नाराज़ कस्टमर के ताने सहने पड़ते हैं…रोज सेल्स टारगेट को लेकर बॉस क्लास लगाता है…रोज ऑफिस पॉलिटिक्स के कारण दिमाग खराब होता है…मैं नहीं चाहता कि इन सब निगेटिव बातों का असर मेरे प्यारे बच्चों और परिवार पर पड़े! इसलिए जब मैं शाम को इन तमाम चीजों को लेकर लौटता हूँ तो घर में घुसने से पहले मैं इन्हें एक-एक करके इस आम के पेड़ पर टांग देता हूँ…और कमाल की बात ये है कि जब मैं अगली सुबह इन चीजों को पेड़ से उठाने आता हूँ तो आधी तो पहले ही गायब हो चुकी होती हैं, यानी मैं उन्हें भूल चुका होता हूँ…और जो बचती हैं मैं उन्हें अपने साथ लेता जाता हूँ…”

चोर अब पेड़ का रहस्य समझ चुके थे; वे चोरी में तो कामयाब नहीं हुए लेकिन आज एक बड़ी सीख लेकर घर लौट रहे थे!

दोस्तों, ना जाने क्यों इंसान अपनी life को खुद ही tough बनाता चला जा रहा है। पहले के लोग जहाँ सुख-सुविधाओं के कम होने पर भी खुश रहते थे…tension free रहते थे, आज सब कुछ होने पर भी हम एक stressful life जी रहे हैं। इस condition को रातों-रात बदला तो नहीं जा सकता पर एक काम जो हम तुरंत कर सकते हैं वो है अपनी स्ट्रेस का असर अपने परिवार पे ना पड़ने देना।

आपने कई बार सुना भी होगा…office को office में रहने दो घर मत लाओ! शायद पेड़ का ये रहस्य आपको इस बात को अमल करने में मदद करे! तो चलिए, अपने आप से एक वादा करिए कि आज से आप भी बाहर की tension को घर में enter नहीं करने देंगे और ना ही उसका असर अपने behaviour पर आने देंगे…आज से आप भी अपनी negativity को घर के बाहर कहीं टांग आयेंगे!


10) सच्चा आत्मज्ञानी कौन Moral Stories In Hindi


एक बार काकभुशुण्डि जी के मन में यह जिज्ञासा हुई कि “ क्या कोई ऐसा दीर्घजीवी व्यक्ति भी हो सकता है, जो शास्त्रों का प्रकाण्ड विद्वान हो, लेकिन फिर भी उसे आत्मज्ञान न हुआ हो । अपनी इस जिज्ञासा का समाधान पाने के लिए वह महर्षि वशिष्ठ से आज्ञा लेकर ऐसे व्यक्ति की खोज में निकल पड़े ।

नगर, ग्राम, गिरि, कंदर वन सभी जगह भटके तब जाकर उन्हें एक पंडित मिला, जिसका नाम था – पंडित विद्याधर । पंडित विद्याधर वेदादि शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वान थे तथा उसकी आयु चार कल्प हो चुकी थी । उनके ज्ञान के अनुभव के सामने कोई भी टिक नहीं पाता था । किसी की भी शास्त्रीय समस्याओं का समाधान वह आसानी से कर देते थे ।

पण्डित विद्याधर से मिलकर काकभुशुण्डि बड़े प्रसन्न हुए । किन्तु उन्हें आश्चर्य था कि इतने बड़े विद्वान होने के बाद भी पण्डित विद्याधर को लोग आत्मज्ञानी क्यों नहीं मानते थे ?

आखिर क्या कमी है ? इसकी परीक्षा करने के लिए काकभुशुण्डिजी गुप्त रूप से उनके पीछे – पीछे घुमने लगे ।

एक दिन की बात है, जब पण्डित विद्याधर नीलगिरी की पहाड़ी पर प्रकृति की प्राकृतिक सुषमा का आनंद ले रहे थे । तभी संयोग से उधर से कंवद की राजकन्या गुजारी । नारी के असीम सोंदर्य के सामने विद्याधर की दृष्टि में प्रकृति का सौन्दर्य फीका पड़ गया । पण्डित विद्याधर काम के आवेश से आसक्त होकर मणिहीन सर्प की भांति राजकन्या के पीछे चल पड़े । उस समय उनका शास्त्रीय ज्ञान न जाने कहाँ धूमिल हो गया ।

जब मनुष्य इन्द्रियों के विषयों में आकंठ डूब जाता है तब वह विवेकहीन कहलाता है । विवेक के स्तर के आधार पर ही ज्ञान की महत्ता होती है । विवेक के आधार पर ही व्यक्ति को समझदार कहा जाता है ।

राजकन्या के पीछे पागलों की तरह चलता देख सैनिको ने उन्हें विक्षिप्त समझकर कारागृह में डाल दिया ।

काकभुशुण्डि जी कारागृह में जा पहुँचे और पण्डित विद्याधर से बोले – “ महाशय ! शास्त्रों के प्रकाण्ड विद्वान होकर आपने इतना नहीं जाना कि मन ही मनुष्य के बंधन का कारण है । आसक्ति ही अविद्या की जड़ है ।

यदि आप कामासक्त नहीं हुए होते तो आपकी आज यह दुर्दशा न हो रही होती । विद्यार्जन केवल शास्त्रीय ज्ञान का बोझ ढ़ोने या शास्त्रार्थ करने के लिए नहीं किया जाता है, बल्कि अपने जीवन में धारण करने के लिए किया जाता है ।”

काकभुशुण्डिजी की यह बात सुनकर विद्याधर की आंखे खुल गई । उन्होंने उसी समय अपने ज्ञान को आत्मसात करने का संकल्प लिया और उन्हें उसी समय आत्मज्ञान हो गया ।

सन्दर्भ – अखण्डज्योति पत्रिका

शिक्षा – इस कहानी का विद्याधर हम और आपमें से ही कोई है । जिनके पास दूसरों को देने के लिए शिक्षाओं की कोई कमी नहीं । लेकिन यदि उन्हीं शिक्षाओं का निरक्षण अपने ही जीवन में किया जाये तो स्वयं को एकदम कोरे पाएंगे ।

यदि प्रत्येक व्यक्ति यह संकल्प ले ले कि “मैं तब तक कोई शिक्षा दूसरों को नही दूंगा जब तक कि मैं स्वयं उसे अपने जीवन में पालन न कर लूँ” तो विश्वास रखिये – आपकी शिक्षा किसी ब्रह्मज्ञान से कम नहीं होगी ।

बोलकर व्यक्ति जितना नहीं सिखा सकता, उससे कई गुना अपने आचरण से सिखा देता है । अतः हमें वेदादि शास्त्रों की शिक्षाओं को अपने आचरण में लाना चाहिए न कि केवल उपदेश करना चाहिए ।

अब तब जितने भी महापुरुष हुए है, सबने इसी सिद्धांत को अपने आचरण में लाया है । इसी क्रम में एक दृष्टान्त इस प्रकार है –

  • आत्मज्ञान का रहस्य Moral Stories In Hindi


एक बार एक नवयुवक एक ब्रह्मज्ञानी महात्मा के पास गया और बोला – “ मुनिवर ! मुझे आत्मज्ञान का रहस्य बता दीजिये, जिससे मैं आत्मा के स्वरूप को जानकर कृतार्थ हो सकूं ।” महात्मा चुपचाप बैठे रहे ।
युवक ने सोचा, थोड़ी देर में जवाब देंगे । अतः वह वही बैठा रहा । जब बहुत देर होने पर भी महात्मा कुछ नहीं बोले तो युवक फिर से उनके पास गया और बोला – “ महाराज ! मैं बड़ी आशा लेकर आपके पास आत्मज्ञान का रहस्य जानने आया हूँ, कृपया मुझे निराश न करें ।”

तब महात्मा मुस्कुराये और बोले – “ इतनी देर से मैं तुझे आत्मज्ञान का ही तो रहस्य समझा रहा था । तू समझा कि नहीं ?”

युवक बोला – “ नहीं महाराज ! आपने तो कुछ भी तो नहीं बताया !”

तब महात्मा बोले – “ अच्छा ठीक है, एक बताओ ! क्या तुम अपने ह्रदय की धड़कन सुन सकते हो ?”

युवक बोला – “ हाँ महाराज ! लेकिन उसके लिए तो मौन होना पड़ेगा ।”

महात्मा हँसे और बोले – “ बस ! यही तो है आत्मज्ञान का रहस्य । जिस तरह अपने ह्रदय की धड़कन को सुनने के लिए मौन होने की जरूरत है । उसकी तरह अपनी आत्मा की आवाज को सुनने के लिए भी सारी इन्द्रियों को मौन करने की जरूरत है । जिस दिन तुमने अपनी सभी इन्द्रियों को मौन करना सीख लिया । समझों तुमने आत्मज्ञान का रहस्य जान लिया ।”

शिक्षा – वास्तव मैं मौन होने का मतलब है – ध्यान लगाना । हम जिस किसी पर अपना मन एकाग्र करते है, उसी के अनुरूप हमारी मनःस्थिति बनने लगती है, इसीलिए हमें अक्सर देवी – देवताओं का ध्यान करने की सलाह दी जाती है । ताकि हमारा मन भी उनके अनुरूप ही दिव्यता को प्राप्त करें ।


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