इस Blog में आपको 10 best moral stories hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही प्रेरक है। ऐसे किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे पर ये किस्से कुछ अलग हौ। हमने भी इस ब्लॉग में 10 best moral stories hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा आनंद मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ 10 best Moral Stories In Hindi 2021 दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको 10 best moral stories hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।
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Best Moral Stories In Hindi |
आपस की फूट
Best Moral Stories In Hindi
प्राचीन समय में एक विचित्र पक्षी रहता था। उसका धड़ एक ही था, परन्तु सिर दो थे नाम था उसका भारुंड। एक शरीर होने के बावजूद उसके सिरों में एकता नहीं थी और न ही था तालमेल। वे एक दूसरे से बैर रखते थे। हर जीव सोचने समझने का काम दिमाग से करता हैं और दिमाग होता हैं सिर में दो सिर होने के कारण भारुंड के दिमाग भी दो थे। जिनमें से एक पूरब जाने की सोचता तो दूसरा पश्चिम फल यह होता था कि टांगें एक कदम पूरब की ओर चलती तो अगला कदम पश्चिम की ओर और भारूंड स्वयं को वहीं खड़ा पाता था। भारुंड का जीवन बस दो सिरों के बीच रस्साकसी बनकर रह गया था।
एक दिन भारुंड भोजन की तलाश में नदी तट पर धूम रहा था कि एक सिर को नीचे गिरा एक फल नजर आया। उसने चोंच मारकर उसे चखकर देखा तो जीभ चटकाने लगा “वाह! ऐसा स्वादिष्ट फल तो मैंने आज तक कभी नहीं खाया। भगवान ने दुनिया में क्या-क्या चीजें बनाई हैं।”
“अच्छा! जरा मैं भी चखकर देखूं।” कहकर दूसरे ने अपनी चोंच उस फल की ओर बढ़ाई ही थी कि पहले सिर ने झटककर दूसरे सिर को दूर फेंका और बोला “अपनी गंदी चोंच इस फल से दूर ही रख। यह फल मैंने पाया हैं और इसे मैं ही खाऊंगा।”
“अरे! हम् दोनों एक ही शरीर के भाग हैं। खाने-पीने की चीजें तो हमें बांटकर खानी चाहिए।” दूसरे सिर ने दलील दी। पहला सिर कहने लगा “ठीक! हम एक शरीर के भाग हैं। पेट हमारे एक ही हैं। मैं इस फल को खाऊंगा तो वह पेट में ही तो जाएगा और पेट तेरा भी हैं।”
दूसरा सिर बोला “खाने का मतलब केवल पेट भरना ही नहीं होता भाई। जीभ का स्वाद भी तो कोई चीज हैं। तबीयत को संतुष्टि तो जीभ से ही मिलती हैं। खाने का असली मजा तो मुंह में ही हैं।”
पहला सिर तुनकर चिढाने वाले स्वर में बोला “मैंने तेरी जीभ और खाने के मजे का ठेका थोड़े ही ले रखा हैं। फल खाने के बाद पेट से डकार आएगी। वह डकार तेरे मुंह से भी निकलेगी। उसी से गुजारा चला लेना। अब ज्यादा बकवास न कर और मुझे शांति से फल खाने दे।” ऐसा कहकर पहला सिर चटखारे ले-लेकर फल खाने लगा।
इस घटना के बाद दूसरे सिर ने बदला लेने की ठान ली और मौके की तलाश में रहने लगा। कुछ दिन बाद फिर भारुंड भोजन की तलाश में घूम रहा था कि दूसरे सिर की नजर एक फल पर पड़ी। उसे जिस चीज की तलाश थी, उसे वह मिल गई थी। दूसरा सिर उस फल पर चोंच मारने ही जा रहा था कि कि पहले सिर ने चीखकर चेतावनी दी “अरे, अरे! इस फल को मत खाना। क्या तुझे पता नहीं कि यह विषैला फल हैं? इसे खाने पर मॄत्यु भी हो सकती है।”
दूसरा सिर हंसा “हे हे हे! तु चुपचाप अपना काम देख। तुझे क्या लेना हैं कि मैं क्या खा रहा हूं? भूल गया उस दिन की बात?”
पहले सिर ने समझाने कि कोशिश की “तुने यह फल खा लिया तो हम दोनों मर जाएंगे।”
दूसरा सिर तो बदला लेने पर उतारु था। बोला “मैने तेरे मरने-जीने का ठेका थोड़े ही ले रखा हैं? मैं जो खाना चाहता हूं, वह खाऊंगा चाहे उसका नतीजा कुछ भी हो। अब मुझे शांति से विषैला फल खाने दे।”
दूसरे सिर ने सारा विषैला फल खा लिया और भारुंड तड़प-तड़पकर मर गया।
भेड़ चाल
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एक राजा था। उसका मंत्री बहुत समझदार था। एक दिन राजा ने मंत्री को बुलाकर पूछा “भेड़ चाल का क्या मतलब है?” मंत्री थोड़ी देर तक सोच कर बोला “महाराज मुझे दो दिन का समय दे दीजिए, तभी में इस प्रश्न का उत्तर सही से दे सकूँगा”।
मंत्री अगले दिन उठा, नहा धोकर तिलक लगाया और गाँव के बाहर तालाब के किनारे चला गया। वहाँ पर कई खच्चर घांस चार रहे थे। मंत्री पहले उनमें से एक खच्चर के चारों तरफ तीन बार घूमा, फिर मंत्री ने उस खच्चर का एक बाल नोचकर निकाला और उसके कान पर रख दिया।
तालाब के किनारे कुछ और लोग भी थे जो यह सब देख रहे थे। एक आदमी ने पूछा “मंत्रीजी यह आप क्या कर रहे हैं?” मंत्री ने कहा “यह खच्चर भगवान शिव की तीर्थयात्रा करके आया है और यह पहले जन्म में ज़रूर कोई बहुत बड़ा ऋषि मुनि रहा होगा। देखते नही इसकी आँखों से कितनी भक्ति टपक रही है”।
मंत्री को देखकर सभी लोग एसा ही करने लगे, उस खच्चर के चारों ओर तीन चक्कर लगाते और उसका एक बाल नोचकर उसके कान पर रख देते। बहुत तेज़ी से यह खबर सारे गाँव में फैल गई। सब लोग वही करने लगे जो मंत्री ने किया था। थोड़े ही समय में उस खच्चर के सारे बाल नोच दिए गए। वो बेचारा लहू – लुहान हो गया और तड़पने लगा। कुछ समय के बाद राजा के पास भी यह खबर पहुँची। राजा वहाँ आया। उसने भी खच्चर के चारों ओर तीन चक्कर लगाए और उसका एक बाल नोच लिया। बेचारा खच्चर तो मर ही गया।
खच्चर का मालिक वहाँ पहुँचा और खच्चर को मरा देख कर रोने और हाय तोबा मचाने लगा। वो राजा के पास अपनी शिकायत लेकर पहुँचा। राजा से उसने कहा “महाराज मैं बाल बच्चों वाला आदमी हूँ, बहुत ग़रीब हूँ, मैं किसी तरह इस खच्चर की पीठ पर माल लाद कर उसके किराए के पैसों से अपना पेट पालता और घर का खर्चा चलाता था। खच्चर तो मार गया अब मेरे घर का खर्चा कैसे चलेगा?”
राजा ने मंत्री को बुलाकर सलाह माँगी। मंत्री बोला “महाराज यही तो भेड़ चाल थी। आपने अपनी आँखों से देख लिया, यह सब भेड़ चाल की वजह से हुआ।” अब राजा को भेड़ चाल का मतलब समझ आ गया। राजा ने उस खच्चर वाले को सोने की कुछ अशरफियाँ दीं और जाने को कहा। इस प्रकार राजा ने भेड़ चाल का पूरा मतलब समझ लिया।
राजा और बन्दर
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एक जंगल में सभी जानवर शेर के आतंक से परेशां थे. शेर हर रोज़ एक जानवर को खा जाता था. एक दिन सभी जानवरो ने सभा बुलाई और विचार किया कि शेर के आतंक से कैसे बचा जाए.
इतने में एक खरगोश आगे आया और कहा “मैं इस समस्या का हल ढूंढ लूंगा, मुझे एक मौका दीजिये”
अगले ही दिन खरगोश शेर के पास गया और उसे कहा “महाराज….सभी जानवर आपको इस जंगल का राजा मानते है लेकिन एक समस्या उत्पन्न हो गयी है.
शेर ने पुछा कि क्या हुआ तो खरगोश ने कहा “महाराज…जंगल में एक और शेर आ गया है और वो कहता है कि आपको मार देगा”
शेर गुस्से में लाल हो गया और खरगोश को कहा “मुझे लेकर चलो उस शेर के पास, मैं आज ही उसे मार दूंगा”
खरगोश गुस्से में लाल उस शेर को एक कुएं के पास ले गया और कहा “महाराज…वो शेर इस कुएं में है”
जैसे ही शेर ने कुएं में झाँका उसे उसकी परछाई दिखी. गुस्से में शेर ने दहाड़ लगायी और कुएं में कूद गया और अपनी जान गवा बैठा।
जंगल के सभी जानवरो ने खरगोश का धन्यवाद किया और फिर सभी शांति से रहने लगे.
घमंडी कौवा
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हंसों का एक झुण्ड समुद्र तट के ऊपर से गुज़र रहा था, उसी जगह एक कौवा भी मौज मस्ती कर रहा था। उसने
हंसों को उपेक्षा भरी नज़रों से देखा “तुम लोग कितनी अच्छी उड़ान भर लेते हो !” कौवा मज़ाक के लहजे में बोला, “तुम लोग और कर ही क्या सकते हो बस अपना पंख फड़फड़ा कर उड़ान भर सकते हो !!! क्या तुम मेरी तरह फूर्ती से उड़ सकते हो ??? मेरी तरह हवा में कलाबाजियां दिखा सकते हो ??? नहीं, तुम तो ठीक से जानते भी नहीं कि उड़ना किसे कहते हैं !”
कौवे की बात सुनकर एक वृद्ध हंस बोला,” ये अच्छी बात है कि तुम ये सब कर लेते हो, लेकिन तुम्हे इस बात पर घमंड नहीं करना चाहिए।”
” मैं घमंड – वमंड नहीं जानता, अगर तुम में से कोई भी मेरा मुकाबला कर सकत है तो सामने आये और मुझे हरा कर दिखाए।”
एक युवा नर हंस ने कौवे की चुनौती स्वीकार कर ली। यह तय हुआ कि प्रतियोगिता दो चरणों में होगी, पहले चरण में कौवा अपने करतब दिखायेगा और हंस को भी वही करके दिखाना होगा और दूसरे चरण में कौवे को हंस के करतब दोहराने होंगे।
प्रतियोगिता शुरू हुई, पहले चरण की शुरुआत कौवे ने की और एक से बढ़कर एक कलाबजिया दिखाने लगा, वह कभी गोल-गोल चक्कर खाता तो कभी ज़मीन छूते हुए ऊपर उड़ जाता। वहीँ हंस उसके मुकाबले कुछ ख़ास नहीं कर पाया। कौवा अब और भी बढ़-चढ़ कर बोलने लगा,” मैं तो पहले ही कह रहा था कि तुम लोगों को और कुछ भी नहीं आता…ही ही ही…”
फिर दूसरा चरण शुरू हुआ, हंस ने उड़ान भरी और समुद्र की तरफ उड़ने लगा। कौवा भी उसके पीछे हो लिया,” ये कौन सा कमाल दिखा रहे हो, भला सीधे -सीधे उड़ना भी कोई चुनौती है ??? सच में तुम मूर्ख हो !”, कौवा बोला।
पर हंस ने कोई ज़वाब नही दिया और चुप-चाप उड़ता रहा, धीरे-धीरे वे ज़मीन से बहुत दूर होते गए और कौवे का बडबडाना भी कम होता गया, और कुछ देर में बिलकुल ही बंद हो गया। कौवा अब बुरी तरह थक चुका था, इतना कि अब उसके लिए खुद को हवा में रखना भी मुश्किल हो रहा था और वो बार -बार पानी के करीब पहुच जा रहा था। हंस कौवे की स्थिति समझ रहा था, पर उसने अनजान बनते हुए कहा,” तुम बार-बार पानी क्यों छू रहे हो, क्या ये भी तुम्हारा कोई करतब है ?””नहीं ” कौवा बोला,” मुझे माफ़ कर दो, मैं अब बिलकुल थक चूका हूँ और यदि तुमने मेरी मदद नहीं की तो मैं यहीं दम तोड़ दूंगा…मुझे बचा लो मैं कभी घमंड नहीं दिखाऊंगा….”
हंस को कौवे पर दया आ गयी, उसने सोचा कि चलो कौवा सबक तो सीख ही चुका है, अब उसकी जान बचाना ही ठीक होगा,और वह कौवे को अपने पीठ पर बैठा कर वापस तट की और उड़ चला।
राजकुमारी और चाँद खिलौना
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एक राजा था। उसकी एक छोटी-सी बेटी थी। वह उसे बहुत प्यार करता था। एक बार राजकुमारी बीमार पड़ गई। कई डॉक्टर बुलाए गए लेकिन कोई भी उसका इलाज नहीं कर सका, क्योंकि उसकी बीमारी का ही पता नहीं चल पा रहा था। एक दिन राजा उदास हो कर राजकुमारी से बोला, 'समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं? तुम्हारे इलाज के लिए कुछ भी करने को तैयार हूं।'
यह सुनकर राजकुमारी झट से बोली, 'फिर मेरे लिए चांद मंगवा दीजिए। मैं उससे खेलूंगी तो मेरी तबीयत ठीक हो जाएगी।'
राजा ने खुश होकर कहा, 'ठीक है, मैं तुम्हारे लिए चांद मंगवाने का प्रबंध करता हूं।'
राजा के दरबार में बहुत से योग्य व्यक्ति थे। सबसे पहले उसने अपने प्रधानमंत्री को बुलाया और धीरे से कहा, 'रानी बेटी को खेलने के लिए चांद चाहिए। आज नहीं तो कल रात तक जरूर आ जाना चाहिए।'
'चांद!' प्रधानमंत्री ने आश्चर्य से कहा। उसके माथे पर पर पसीना आ गया। थोड़ी देर बाद वह बोला, 'महाराज, मैं दुनिया के किसी भी कोने से कोई भी चीज मंगा सकता हूं लेकिन चांद लाना मुश्किल है।'
राजा ने प्रधानमंत्री को तुरंत दरबार से जाने का आदेश दिया और कहा, 'प्रधान सेनापति को मेरे पास भेजो।'
प्रधान सेनापति के आने पर राजा ने उससे भी चांद लाने के लिए कहा पर प्रधान सेनापति ने भी अपनी असमर्थता व्यक्त करते हुए कई तर्क दिए और अंत में बोला, 'चांद को कोई भी नहीं ला सकता। वह यहां से डेढ़ लाख मील दूर है।'
राजा ने उसे भी चले जाने के लिए कहा। उसके बाद उसने अपने खजांची को बुलाया। वह भी राजकुमारी की मदद करने में असमर्थ रहा।
'जाओ, यहां से जाओ!' राजा चीखा, 'और दरबारी जोकर को भेजो।'
जोकर ने आते ही झुक कर सलाम किया और पूछा, 'सरकार, आप ने मुझे बुलाया?'
'हां,' राजा रो पड़ा, 'जब तक रानी बेटी को चांद नहीं मिलेगा, तब तक उसकी तबीयत ठीक नहीं होगी। क्या तुम चांद ला सकते हो?'
'हां, क्यों नहीं, लेकिन पहले यह पता लगाना होगा कि राजकुमारी कितना बड़ा चांद चाहती है। कोई बात नहीं, मैं खुद उससे जाकर पूछ लेता हूं,' जोकर बोला और सीधे राजकुमारी के कमरे में जा पहुंचा।
राजकुमारी ने जोकर को देखकर पूछा, 'क्या तुम चांद ले आए?'
'अभी नहीं लेकिन जल्द ही ला दूंगा। पर यह तो बताओ कि चांद कितना बड़ा है?'
राजकुमारी ने कहा, 'मेरे अंगूठे के नाखून के बराबर, क्योंकि जब मैं आंख के सामने अंगूठे का नाखून कर देती हूं तो वह दिखाई नहीं देता।'
'अच्छा, यह और बता दो कि चांद किसी चीज का बना है और कितनी ऊंचाई पर है?'
'चांद सोने का बना है,' राजकुमारी बोली, 'और पेड़ के बराबर ऊंचाई पर है!'
'ठीक है, आज रात को मैं पेड़ पर चढ़कर चांद उतार लाऊंगा,' जोकर ने कहा और खुश होकर राजा के पास लौट आया।
उसने राजा से कहा, 'मैं कल तक राजकुमारी के लिए चांद खिलौना ले आऊंगा।' और उसने अपनी योजना राजा को बता दी। राजा योजना सुनकर बहुत खुश हुआ। अगले दिन दरबारी जोकर सुनार से एक सोने का चांद बनवा कर ले आया। उसने यह चांद राजकुमारी को दे दिया। राजकुमारी बहुत खुश हुई। उसने चांद को जंजीर में डालकर गले में लटका लिया। उसकी तबीयत ठीक हो गई। लेकिन राजा को यह चिंता खाए जा रही थी कि जब राजकुमारी खिड़की से आसमान में चांद देखेगी तो क्या कहेगी?
वह सोचेगी कि उसके पिता ने उससे झूठा वादा किया था।
रात को जब चांद निकला तो राजकुमारी उसे देखने लगी। राजा और जोकर उसके कमरे में खड़े थे। जोकर ने राजकुमारी से पूछा, 'अच्छा राजकुमारी, जरा यह तो बताओ कि जब चांद तुम्हारे गले में लटका है तो फिर आसमान में कैसे निकल आया?'
राजकुमारी हंसकर बोली, 'तुम मूर्ख हो। जब मेरा एक दांत टूट जाता है तो दूसरा निकल आता है। उसी तरह दूसरा चांद निकला है।'
यह सुनकर राजा ने राहत की सांस ली और खुशीखुशी राजकुमारी के साथ उसके खिलौनों से खेलने लगा।
असली इनाम
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सड़क के इस पार 5 कुत्ते के पिल्ले झुंड में एक-दूसरे से सटे हुए बड़ी ही गुमसुम मुखमुद्रा में बैठे थे। आखिर वजह भी तो वैसी ही थी ना! बात यूं थी कि सड़क के उस पार एक बहुत बड़ा विद्यालय था। बड़ा-सा अहाता था, जो ऊंची-ऊंची दीवारों से घिरा हुआ था। पाठशाला के प्रवेश द्वार पर भव्य लोहे का दरवाजा बना हुआ था।
एक चौकीदार बड़ी-बड़ी मूंछों वाला, हट्टा-कट्टा कद्दावर, हाथ में मोटी-सी लाठी लिए दरवाजे पर खड़ा पहरेदारी करता था। कभी जब चौकीदार की नजर बचाकर वे पिल्ले लोहे के दरवाजे में बनी जाली से अहाते के अंदर झांककर देखते तो उनका दिल उछलने लगता था। मैदान में लगे हुए झूले पर बच्चे शोर मचाते हुए झूलते थे, कभी फिसलपट्टी पर किलकारी भरते हुए फिसलते थे, तो कभी गोल वाली चकरी पर बैठकर गोल-गोल घूमते हुए हंस-हंसकर दोहरे हो जाते थे।
बच्चों की ऐसी उधमकूद देखकर वे पिल्ले सोचा करते थे कि काश! ऐसी मस्ती हम भी कर पाते, लेकिन दरवाजे पर खड़ा चौकीदार तो उन्हें पास भी नहीं फटकने देता था। वो ऐसी लाठी घुमाता कि वे 'क्याऔं क्याऔं' करते हुए भाग खड़े होते थे।
एक दिन की बात है। रात के समय पिल्लों ने विद्यालय अहाते में चीं-चीं की आवाजें सुनीं। उन सबने हौले से जाकर दरवाजे की जाली में झांककर देखा और एक अलग ही नजारा पाया। उन्होंने देखा कि छ:-सात बंदरों का झुंड अहाते में घुस आया था। दीवार से सटकर लगे हुए बड़े-बड़े पेड़ों पर से छलांग लगाते हुए वे सब अंदर आ पहुंचे थे। उनमें से कोई झूले पर झूल रहा था, कोई फिसलपट्टी का मजा ले रहा था, कोई चकरी पर घूमते हुए, कुछ सी-सा पर बैठे खुशी के मारे अपने दांत दिखा रहे थे।
यही सब देखकर तो सब पिल्ले मायूस हो गए थे। वे जानते थे कि अहाते की इतनी ऊंची दीवारें लांघना उनके बस की बात नहीं थी। फिर एक दिन पिल्लों को अहाते के अंदर से ठक्-ठक् की आवाजें आती सुनाई दीं। रात का समय था। पूरा मोहल्ला खामोश था, ध्यान से देखा तो पाया कि लोहे के दरवाजे का ताला टूटा हुआ था। चौकीदार को शायद गहरी झपकी लग गई थी। वे सब पिल्ले हिम्मत करके अंदर घुसे। उन्हें तीन-चार नकाबपोश विद्यालय के कार्यालय का ताला तोड़ते दिखाई दिए।
पिल्ले समझ गए कि विद्यालय में चोर घुस आए हैं। उन्होंने एक स्वर में जोर-जोर से भौंकना शुरू कर दिया। कुछ अपने मुंह से सोए हुए चौकीदार की पेंट पकड़कर खींचने लगे। चौकीदार जाग गया। उसने भी विद्यालय के अंदर से आती आवाज सुनी। वो 'चोर-चोर' का शोर मचाता कार्यालय की ओर दौड़ा, उसने जोर-जोर से लाठी बजाई। चोर बाहर की तरफ भागने लगे, लेकिन दरवाजे पर पहरेदारी करते वे सारे पिल्ले डटे हुए थे। तभी चौकीदार ने आकर उन चोरों को धरदबोचा। लाठी से उनकी पिटाई की और पुलिस के हवाले कर दिया।
चौकीदार पूरा घटनाक्रम समझ गया था कि उन पिल्लों की वजह से ही चोर पकड़ में आए हैं और वह ये भी जान गया था कि उसकी नौकरी भी इन्हीं पिल्लों के कारण बच गई थी। उस घटना के बाद से सब पिल्ले विद्यालय के उस चौकीदार के मित्र बन गए।
अब चौकीदार उन्हें लाठी से भगाता नहीं था बल्कि प्यार से सहलाता था और उनके लिए अपने घर से रोटी भी लाता था और पिल्लों के लिए सबसे ज्यादा खुशी की बात तो ये हुई थी कि अब विद्यालय के बच्चों की छुट्टी होने के बाद वे बेखौफ होकर मैदान में लगे झूले, फिसलपट्टी और चकरी का मजा लेते थे।
उन्हें समझ में आ गया था कि चोरी से प्राप्त की हुई चीज की बजाए इनाम में मिली वस्तु का आनंद कहीं अधिक होता है। उन्होंने चौकीदार की मदद की थी और बदले में उनके मन की इच्छा पूरी हो गई थी। यही उनका इनाम था।
नकलची बन्दर
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बहुत पुरानी कहानी है। नदी किनारे एक गांव था। उसकी आबादी बहुत ज्यादा नहीं थी। उस गांव में एक बहुत ही गरीब आदमी सोमू रहता था। उसके परिवार में एक बेटा, उसकी पत्नी तथा उसकी बूढ़ी मां रहती थी।
परिवार का पेट पालने के लिए वह रोजाना गांव-गांव, शहर-शहर जाकर गली-मोहल्ले घूम-घूमकर टोपियां बेचता था और उसमें बचे मुनाफे से अपना जीवनयापन करता था। बड़ी मुश्किल से वह अपनी गृहस्थी का गाड़ी चला रहा था।
एक दिन उसका स्वास्थ्य कुछ ठीक नहीं था। पेट दर्द की वजह से उसे रात को ठीक से नींद नहीं आई थी। फिर भी वह भारी मन से उठा और अपने साथ टोपियों की गठरी और एक छोटी-सी पोटली में खाना लेकर वह शहर की ओर निकल पड़ा।
रोजाना की तरह वह जंगल के रास्ते से होकर शहर की ओर जा रहा था, कि रास्ते में उसे जोरों की भूख लगी। वह एक घनी छायावाले पेड़ के नीचे बैठा। पोटली खोली और खाना खाया। रात भर ठीक से न सो पाने के कारण उसका मन थोड़ी देर सुस्ताने का हुआ। यह विचार मन में आते ही उसने अपना गमचा बिछाया और उसके पास टोपियों की गठरी रखकर वह आराम करने लगा। थोड़ी ही देर में उसे नींद लग गई।
पास ही के एक बरगद के पेड़ पर बंदरों का एक झुंड बैठा हुआ था। उनमें से एक बंदर सोमू को सोया देखकर नीचे उतरा और गठरी पर रखी टोपी उठाकर अपने सिर पर रखकर वापस पेड़ पर जाकर बैठा। उसकी यह हरकत देखकर सभी बंदर एक-एक कर नीचे उतरे और गठरी की टोपियां निकाल कर अपने सिर पर लगाई और पेड़ पर जाकर बैठ गए।
थोड़ी देर बाद सोमू की नींद खुली। उसने देखा कि उसकी सारी टोपियां गायब हो चुकी है। वह घबराकर इधर-उधर देखने लगा। उसे कहीं भी कोई नजर नहीं आया। फिर उसकी नजर पास ही पेड़ पर मस्ती कर रहे बंदरों पर पड़ी। उसने देखा कि सारे बंदर अपने-अपने सिर पर टोपी लगाए हुए थे।
उसे समझते देर न लगी। लेकिन अब करें भी तो क्या! वह यह सोच ही रहा था कि उसे एक युक्ति सूझी। उसने बंदरों की तरफ कुछ इशारा किया और अपने सिर पर हाथ फेरकर अपनी टोपी निकालकर नीचे जमीन पर फेंक दी। बंदर तो थे ही नकलची। उन्होंने भी अपनी-अपनी टोपी सिरे से उतारी और जमीन पर फेंक दी।
सोमू को भी इसी समय का इंतजार था। वह तुरंत उठा और जमीन पर पड़ी सारी टोपियां समेट कर अपनी गठरी में बांधी और बंदर कुछ समझ पाते इससे पहले वहां से गठरी लेकर चलता बना।
भालू और दो दोस्त
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दो दोस्त जंगल के रास्ते से जा रहे थे की अचानक उन्हें दूर से एक भालू अपने पास आता हुआ दिखा तो दोनों दोस्त डर गये पहला दोस्त जो की दुबला पतला था वह तुरंत पास के पेड़ पर चढ़ गया जबकि दूसरा दोस्त जो मोटा था वह पेड़ पर चढ़ नही सकता था तो उसने अपनी बुद्धि से काम लेते हुए वह तुरंत अपनी सांस को रोकते हुए जमीन पर लेट गया और फिर कुछ देर बाद भालू वहा से गुजरा तो उस मोटे दोस्त को सुंघा फिर कुछ समय बाद आगे चला गया इस प्रकार उस मोटे दोस्त की जान बच गयी तो इसके बाद उसका दोस्त उसके पास आकर पूछता है की वह भालू तुम्हारे कान में क्या कह रहा था तो उस दोस्त ने बोला की सच्चा दोस्त वही होता है जो मुसीबत के समय अपनी समय के काम आये।
मीठूराम की परेशानी
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सर्दियों की दोपहर में एक छोटा लड़का नदी के पास नीम के पेड़ के नीचे बैठा था | वह स्कूल से वापिस आया था और उसकी कमर में बड़ा बैग था | वह लड़का बहुत उदास था | वह लड़का पानी को देखता रहा और पानी को देखते देखते उसकी आँखों में से मोटे मोटे आंसू आने लगे | उसके आंसू तालाब में गिरते हुए बुलुबुलो की तरह उछले | पर वहा पर वह थोड़ी देर से बैठा था | उसने देखा कि एक कछुआ तैरता हुआ उसके पास आ रहा था | वह कछुआ बड़ा नही था इसलिए वह धीरे धीरे तैर रहा था |
जब वह कछुआ तालाब के किनारे पहुचा , तब तक छोटे लडके ने रोना बंद कर दिया था | लेकिन वह अब भी उदास था | लडके को पता था कि कछुआ बोल नही सकता और ना ही मनुष्य के भाव को समझ सकता है लेकिन फिर भी वह किसी से बात करना चाहता था और उस समय कछुआ उसके पास अकेला जिन्दा प्राणी था |
हल्की आवाज में लडके ने कहा “कछुआ ,तुम कैसे हो ? आज मेरी अध्यापिका में मुझे मेरी रिपोर्ट कार्ड दी | मैंने अच्छी पढाई नही की और मेरा रिजल्ट भी बहुत गंदा आया है मेरी माँ मेरे रिजल्ट को देखकर बहुत दुखी होगी | मै अपनी माँ से बहुत प्यार करता हु और मै उन्हें उदास नही करना चाहता | लेकिन अब मेरा परिणाम देखकर वह उदास हो जायेगी |शायद वह मुझसे गुस्सा भी हो जायेगी | मेरी माँ चाहती है कि मै स्कूल में अच्छी पढाई करू | मै भी यही चाहता हु लेकिन क्या करू मेरी परीक्षा पर्चे बहुत मुश्किल थे | मुझे पता है कि मुझे पहले पढाई करनी चाहिए थी लेकिन अब मै क्या करू ”
कछुए ने कुछ नही कहा |बस आराम से लडके की बात सुनता रहा | कछुआ लडके की बात ऐसे सुनने लगा जैसे उसे सब कुछ समझ आ रहा हो | “शायद मै अच्छा कर सकता था |मुझे पता है शायद डर के मारे मै अपने नम्बर ना बताऊ तो मेरी माँ उदास नही होगी | हां मै यही करूंगा ” |लड़का अपनी समस्या का हल सोचकर संतुष्ट हुआ और उसके चेहरे पर थोड़ी हंसी आ गयी | वह खड़ा हुआ और घर जाने के लिए तैयार हो गया | तभी उसे किसी की आवाज आयी “जो तुम कर रहे हो ,क्या वह करना ठीक होगा ?”|
लड़का रुक गया और देखने लगा कि उससे कौन बाते कर रहा है | वहा कछुए के अलावा कोई नही था | लडके ने कछुए की तरफ ध्यान से देखा | कछुआ हंसा और हंसने से उसका चेहरा चमकने लगा | फिर कछुए ने कहा “मुझे लगता है कि तुम्हे अपनी माँ को सब सच बताना चाहिए और उनसे कहना चाहिए कि अगली बार तुम मेहनत करके अच्छे नम्बर लाओगे “|
कछुए को बात करता देख लड़का हैरान रह गया | उसे समझ नही आ रहा था कि वह क्या बोले | कछुआ धीरे से लडके के पास गया और हंसते बोला “मुझे पता है कि तुम अगली बार अच्छा करोगे क्योंकि तुम करना चाहते हो ” | वैसे तो कछुए को बोलता देखकर लडके को अजीब लग रहा था लेकिन उसकी बातो पर विश्वास था | उसे यकीन हो गया कि कछुआ उसकी मदद जरुर करेगा क्योंकि जब कछुआ मनुष्य की तरह बोल सकता है सोच सकता है तो वह बहुत अच्छे काम भी कर सकता है |
लड़का कछुए की बातो के बारे में सोचने लगा | अचानक उसके दिमाग में एक विचार आया | उसने कछुए से पूछा “क्या तुम पढ़ सकते हो “| कछुए ने जवाब दिया “नही ! लेकिन इसका मतलब यह नही है कि मै तुम्हारी मदद नही कर सकता | कल स्कूल से वापिस आते समय तुम तालाब के पास रुकना और तुम मुझे अपनी किताब जोर से पढकर सुनाना | अगर तुम्हे कुछ समझ नही आएगा तो मै तुम्हे वह चीज समझा दूंगा उसके बाद तुम अपनी बांसुरी में मेरे लिए गाना बजा देना मुझे बांसुरी सुनना बहुत पसंद है और तुम बहुत अच्छी बांसुरी बजाते हो “|
लडके को फिर हैरानी हुयी कि कछुआ कैसे जानता है कि कि उसे बांसुरी बजानी आती है | कछुए में कुछ ना कुछ जादुई बात थी | कछुए जैसे दोस्त को पाकर लड़का उदास नही था | उसने कछुए को शुक्रिया कहा और उससे वादा किआ कि वह अपनी माँ को सब कुछ सच सच बतायेगा और उन्हें अपनी रिपोर्ट कार्ड भी दिखायेगा और आगे से मेहनत करके अगली बार अच्छे नम्बर जरुर लाएगा | इस तरह कछुए ने लडके को सही रास्ता दिखाया | जैसे ही लड़का अपने घर जाने लगा कछुए ने पीछे से कहा “वैसे मेरा नाम कदम है “| लड़का हंसा और उसने कहा मेरा नाम गणेश है | कछुए ने फिर हसंते हुए कहा कि “मुझे मालुम है"।
बदमाश नेवला
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एक नदी किनारे एक नेवला रेहता था। यह नेवला बहुत शरारती था। नदी के पार जा कर, दूसरे जानवरों को परेशान करने में उसे बहुत मज़ा आता था। जब किसी जानवर को चोट लग जाती तो नेवला, बड़े ही प्यार से उनके पास जाता और बोलता कि ये लो, मरहम लगा लो।
इससे आराम मिलेगा।
चोटिल जानवर उसका धन्यवाद करते और मरहल लगा लेते। लकिन जैसे ही वो मरहम लगाते, उनका दर्द बढ़ जाता और वे दर्द में चीखने लगते।
क्योंकि बदमाश नेवला अपने बनाए मरहम में नींबू, नमक और काली मिर्च डालता था। और जब दूसरे जानवर मरहम लगाने पर चिल्लाते, दौड़ते, भागते तो उसे बड़ा मज़ा आता था।
उसने एक दिन खरगोश के साथ भी ऐसा ही किया। खरगोश ने सोच लिया की इस नेवले को तो सबक सीखना ही पड़ेगा।
एक दिन खरगोश ने दो टोकरियां ली, एक छोटी और एक बड़ी। बड़ी टोकरी के निचे तारकोल लगा दी। खरगोश दोनों टोकरियां ले कर नेवले के पास गया और बोला, चलो वहां पहाड़ पर चलते है। वहां मीठे आम के पेड़ है। आम लेकर आते है। नेवले ने झट से, ज़ायदा आम लाने के लालच में बड़ी टोकरी उठा ली। पहाड़ पर जाकर दोनों ने आमों से अपनी टोकरियां भर ली। नेवले की टोकरी भारी हो गई। उनसे जैसे ही अपनी टोकरी निचे रखी।
तारकोल लगा होने से उसकी टोकरी नीचे ही चिप्पक गई। उसने पूरा ज़ोर लगाया अपनी टोकरी को वापस उठाने के लिए, इससे उसके पंजे छिल गए। तब खरगोश ने नेवले को मरहम लगाने को दिया और कहा इसे लगा लो, आराम मिलेगा। नेवले ने जैसे ही मरहम लगाया तो वो दर्द में बेहाल हो गया। तब नेवले को खरगोश की चाल समझ आ गई। और उसने अब से दूसरों के साथ ऐसी बदमाशी नहीं करने की कसम खा ली। क्योंकि उसे समझ आ गया कि उसकी बदमाशी से दुसरो को भी कितना दर्द होता होगा।
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