इस Blog में आपको Best Moral Stories In Hindi में पढ़ने को मिलेंगी जो आपने अपने दादा दादी से सुनी होंगी। ये hindi stories बहुत ही प्रेरक है। ऐसे किस्से तो आपने अपने बचपन मे बहुत सुने होंगे पर ये किस्से कुछ अलग हौ। हमने भी इस ब्लॉग में Best Moral Stories In Hindi में लिखा है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा आनंद मिलेगा और आपका मनोरंजन भी होगा। इसमे कुछ Best Moral Stories In Hindi दी गयी है। जिसमे आपको नयापन अनुभव होगा। यदि आप पुरानी कहानियाँ पढ़कर बोर हो गए है तो यहाँ पर हम आपको Best Moral Stories In Hindi दे रहे है जिसको पढ़कर आपको बहुत ही ज्यादा मज़ा आने वाला है।
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Best Moral Stories In Hindi |
जादुई छड़ी | Best Moral Stories In Hindi
एक बार की बात है गोलू अपने घर में आराम कर रहा था। अचानक उसके कमरे की खिड़की पर बिजली चमकी। गोलू घबराकर उठ गया। उसने देखा कि खिड़की के पास एक बुढ़िया हवा में उड़ रही थी। बुढ़िया खिड़की के पास आई और बोली गोलू तुम अच्छे लड़के हो। इसलिए मैं तुम्हे कुछ देना चाहती हूं। गोलू यह सुनकर बहुत खुश हुआ।
बुढ़िया ने गोलू को एक छड़ी देते हुए कहा, गोलू ये जादू की छड़ी है। तुम इसे जिस भी चीज की तरफ मोड़कर दो बार घुमाओगे वह चीज गायब हो जाएगी। अगले ही दिन गोलू वह छड़ी अपने स्कूल ले गया। वहां उसने मस्ती करना शुरू किया। गोलू ने स्कूल में भी टीचर की किताब गायब कर दी फिर कई बच्चों की रबर और पेंसिलें भी गायब कर दीं। किसी को भी पता न चला कि यह गोलू की छड़ी की करामात है।
जब वह घर पहुंचा तब भी उसकी शरारतें बंद नहीं हुईं। गोलू को इस खेल में बड़ा मजा आ रहा था। किचन के दरवाजे के सामने एक कुर्सी रखी थी। गोलू ने सोचा, क्यों न मैं इस कुर्सी को गायब कर दूं। जैसे ही उसने छड़ी घुमाई वैसे ही गोलू की मां किचन से बाहर निकलकर कुर्सी के सामने से गुजरी और कुर्सी की जगह गोलू की मां गायब हो गई।
गोलू घबरा गया और रोने लगा। इतने में उसके सामने वह बुढ़िया आ गई। गोलू ने बुढ़िया को सारी बात बताई। बुढ़िया ने गोलू से कहा, मैं तुम्हारी मां को वापस ला सकती हूं, लेकिन उसके बाद मैं तुमसे ये जादू की छड़ी की वापस ले लूंगी।
गोलू रोते हुए बोला, तुम्हें जो भी चाहिए ले लो, लेकिन मुझे मेरी मां वापस ला दो। तब बुढ़िया ने एक जादुई मंत्र पढ़ा और देखते ही देखते गोलू की मां वापस आ गई। गोलू ने मुड़कर बुढ़िया का शुक्रिया कहना चाहा, लेकिन तब तक बुढ़िया बहुत दूर बादलों में जा चुकी थी। गोलू अपनी मां को वापस पाकर बहुत खुश हुआ और दौड़कर गले से लग गया।
बेवकूफ गधे की फनी कहानी | Best Moral Stories In Hindi
पुराने समय की बात है। एक जंगल में एक शेर रहता था। गीदड़ उसका सेवक था। जोड़ी अच्छी थी। शेरों के समाज में तो उस शेर की कोई इज्जत नहीं थी, क्योंकि वह जवानी में सभी दूसरे शेरों से युद्ध हार चुका था, इसलिए वह अलग-थलग रहता था। उसे गीदड़ जैसे चमचे की सख्त जरूरत थी, जो चौबीस घंटे उसकी चमचागिरी करता रहे। गीदड़ को बस खाने का जुगाड़ चाहिए था। पेट भर जाने पर गीदड़ उस शेर की वीरता के ऐसे गुण गाता कि शेर का सीना फूलकर दुगना चौड़ा हो जाता।
एक दिन शेर ने एक बिगड़ैल जंगली सांड का शिकार करने का साहस कर डाला। सांड बहुत शक्तिशाली था। उसने लात मारकर शेर को दूर फेंक दिया, जब वह उठने को हुआ तो सांड ने फां-फां करते हुए शेर को सीगों से एक पेड के साथ रगड़ दिया।
किसी तरह शेर जान बचाकर भागा। शेर सींगों की मार से काफी जख्मी हो गया था। कई दिन बीते, लेकिन शेर के जख्म ठीक होने का नाम नहीं ले रहे थे। ऐसी हालत में वह शिकार नहीं कर सकता था। स्वयं शिकार करना गीदड़ के बस का नहीं था। दोनों के भूखों मरने की नौबत आ गई। शेर को यह भी भय था कि खाने का जुगाड़ समाप्त होने के कारण गीदड़ उसका साथ न छोड़ जाए।
शेर ने एक दिन उसे सुझाया 'देख, जख्मों के कारण मैं दौड़ नहीं सकता। शिकार कैसे करूं? तू जाकर किसी बेवकूफ-से जानवर को बातों में फंसाकर यहां ला। मैं उस झाड़ी में छिपा रहूंगा।'
गीदड़ को भी शेर की बात जंच गई। वह किसी मूर्ख जानवर की तलाश में घूमता-घूमता एक कस्बे के बाहर नदी-घाट पर पहुंचा। वहां उसे एक मरियल-सा गधा घास पर मुंह मारता नजर आया। वह शक्ल से ही बेवकूफ लग रहा था।
गीदड़ गधे के निकट जाकर बोला 'पायं लागूं चाचा। बहुत कमजोर हो गए हो, क्या बात हैं?'
गधे ने अपना दुखड़ा रोया 'क्या बताऊं भाई, जिस धोबी का मैं गधा हूं, वह बहुत क्रूर हैं। दिन भर ढुलाई करवाता हैं और चारा कुछ देता नहीं।'
गीदड़ ने उसे न्यौता दिया 'चाचा, मेरे साथ जंगल चलो न, वहां बहुत हरी-हरी घास हैं। खूब चरना तुम्हारी सेहत बन जाएगी।'
गधे ने कान फड़फड़ाए 'राम राम। मैं जंगल में कैसे रहूंगा? जंगली जानवर मुझे खा जाएंगे।'
'चाचा, तुम्हें शायद पता नहीं कि जंगल में एक बगुला भगतजी का सत्संग हुआ था। उसके बाद सारे जानवर शाकाहारी बन गए हैं। अब कोई किसी को नहीं खाता।' गीदड़ बोला और कान के पास मुंह ले जाकर दाना फेंका 'चाचू, पास के कस्बे से बेचारी गधी भी अपने धोबी मालिक के अत्याचारों से तंग आकर जंगल में आ गई थी। वहां हरी-हरी घास खाकर वह खूब लहरा गई हैं, तुम उसके साथ घर बसा लेना।'
गधे के दिमाग पर हरी-हरी घास और घर बसाने के सुनहरे सपने छाने लगे। वह गीदड़ के साथ जंगल की ओर चल दिया। जंगल में गीदड़ गधे को उसी झाड़ी के पास ले गया, जिसमें शेर छिपा बैठा था। इससे पहले कि शेर पंजा मारता, गधे को झाड़ी में शेर की नीली बत्तियों की तरह चमकती आंखें नजर आ गईं। वह डरकर उछला, गधा भागा और भागता ही गया। शेर बुझे स्वर में गीदड़ से बोला 'भई, इस बार मैं तैयार नहीं था। तुम उसे दोबारा लाओ इस बार गलती नहीं होगी।'
गीदड़ दोबारा उस गधे की तलाश में कस्बे में पहुंचा। उसे देखते ही बोला 'चाचा, तुमने तो मेरी नाक कटवा दी। तुम अपनी दुल्हन से डरकर भाग गए?'
'उस झाड़ी में मुझे दो चमकती आंखें दिखाई दी थी, जैसे शेर की होती हैं। मैं भागता न तो क्या करता?' गधे ने शिकायत की।
गीदड़ नकली माथा पीटकर बोला 'चाचा ओ चाचा! तुम भी नीरे मूर्ख हो। उस झाड़ी में तुम्हारी दुल्हन थी। जाने कितने जन्मों से वह तुम्हारी राह देख रही थी। तुम्हें देखकर उसकी आंखें चमक उठी तो तुमने उसे शेर समझ लिया?'
गधा बहुत लज्जित हुआ, गीदड़ की चाल-भरी बातें ही ऐसी थी। गधा फिर उसके साथ चल पड़ा। जंगल में झाड़ी के पास पहुंचते ही शेर ने नुकीले पंजों से उसे मार गिराया। इस प्रकार शेर व गीदड़ का भोजन जुटा।
शेर की खाल में गधा | Best Moral Stories In Hindi
जंगल में एक बार गधे को शेर की खाल मिल गयी. गधे ने सोचा क्यों ना मैं ये शेर की खाल पहन लू, इससे मुझे कोई तंग नहीं करेगा और सब मुझसे डरेंगे.
गधे ने शेर की खाल पहन ली और जंगल में वह जहा भी जाता सब जानवर उससे डरते. ये देख कर गधे को बड़ा मज़ा आ रहा था. तभी गधे के पास से एक चालाक लोमड़ी गुज़र रही थी, उसे शक हो गया कि शेर की खाल में गधा है जो सभी जानवरो को डरा रहा है.
लोमड़ी ने उसके पास जाकर पुछा “शेर जी…क्या आप मीठे आम खाएंगे?”
गधे ने बोलने के समय जैसे ही मुंह खोला तो ढेंचू ढेंचू की आवाज़ आयी और सभी जानवरो को पता चल गया कि ये शेर की खाल में गधा है. फिर क्या था, सबने मिलकर गधे को अच्छा पाठ पढ़ाया और फिर गधे ने सभी जानवरो से माफ़ी मांगी।
बाज और किसान | Best Moral Stories In Hindi
बहुत समय पहले की बात है , एक राजा को उपहार में किसी ने बाज के दो बच्चे भेंट किये । वे बड़ी ही अच्छी नस्ल के थे , और राजा ने कभी इससे पहले इतने शानदार बाज नहीं देखे थे।
राजा ने उनकी देखभाल के लिए एक अनुभवी आदमी को नियुक्त कर दिया।
जब कुछ महीने बीत गए तो राजा ने बाजों को देखने का मन बनाया , और उस जगह पहुँच गए जहाँ उन्हें पाला जा रहा था। राजा ने देखा कि दोनों बाज काफी बड़े हो चुके थे और अब पहले से भी शानदार लग रहे थे ।
राजा ने बाजों की देखभाल कर रहे आदमी से कहा, ” मैं इनकी उड़ान देखना चाहता हूँ , तुम इन्हे उड़ने का इशारा करो । “
आदमी ने ऐसा ही किया।
इशारा मिलते ही दोनों बाज उड़ान भरने लगे , पर जहाँ एक बाज आसमान की ऊंचाइयों को छू रहा था , वहीँ दूसरा , कुछ ऊपर जाकर वापस उसी डाल पर आकर बैठ गया जिससे वो उड़ा था।
ये देख , राजा को कुछ अजीब लगा.
“क्या बात है जहाँ एक बाज इतनी अच्छी उड़ान भर रहा है वहीँ ये दूसरा बाज उड़ना ही नहीं चाह रहा ?”, राजा ने सवाल किया।
” जी हुजूर , इस बाज के साथ शुरू से यही समस्या है , वो इस डाल को छोड़ता ही नहीं।”
राजा को दोनों ही बाज प्रिय थे , और वो दुसरे बाज को भी उसी तरह उड़ना देखना चाहते थे।
अगले दिन पूरे राज्य में ऐलान करा दिया गया कि जो व्यक्ति इस बाज को ऊँचा उड़ाने में कामयाब होगा उसे ढेरों इनाम दिया जाएगा।
फिर क्या था , एक से एक विद्वान् आये और बाज को उड़ाने का प्रयास करने लगे , पर हफ़्तों बीत जाने के बाद भी बाज का वही हाल था, वो थोडा सा उड़ता और वापस डाल पर आकर बैठ जाता।
फिर एक दिन कुछ अनोखा हुआ , राजा ने देखा कि उसके दोनों बाज आसमान में उड़ रहे हैं। उन्हें अपनी आँखों पर यकीन नहीं हुआ और उन्होंने तुरंत उस व्यक्ति का पता लगाने को कहा जिसने ये कारनामा कर दिखाया था।
वह व्यक्ति एक किसान था।
अगले दिन वह दरबार में हाजिर हुआ। उसे इनाम में स्वर्ण मुद्राएं भेंट करने के बाद राजा ने कहा , ” मैं तुमसे बहुत प्रसन्न हूँ , बस तुम इतना बताओ कि जो काम बड़े-बड़े विद्वान् नहीं कर पाये वो तुमने कैसे कर दिखाया। “
“मालिक ! मैं तो एक साधारण सा किसान हूँ , मैं ज्ञान की ज्यादा बातें नहीं जानता , मैंने तो बस वो डाल काट दी जिसपर बैठने का बाज आदि हो चुका था, और जब वो डाल ही नहीं रही तो वो भी अपने साथी के साथ ऊपर उड़ने लगा।"
बचत का महत्व | Best Moral Stories In Hindi
एक किसान था। इस बार वह फसल कम होने की वजह से चिंतित था। घर में राशन ग्यारह महीने चल सके उतना ही था। बाकी एक महीने का राशन का कहां से इंतजाम होगा। यह चिंता उसे बार-बार सता रही थी। किसान की बहू का ध्यान जब इस ओर गया तो उसने पूछा ?
पिताजी आजकल आप किसी बात को लेकर चिंतित नजर आ रहे हैं। तब किसान ने अपनी चिंता का कारण बहू को बताया। किसान की बात सुनकर बहू ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह किसी बात की चिंता न करें। उस एक महीने के लिए भी अनाज का इंतजाम हो जाएगा।
जब पूरा वर्ष उनका आराम से निकल गया तब किसान ने पूछा कि आखिर ऐसा कैसे हुआ? बहू ने कहा- पिताजी जब से आपने मुझे राशन के बारे में बताया तभी से मैं जब भी रसोई के लिए अनाज निकालती उसी में से एक-दो मुट्ठी हर रोज वापस कोठी में डाल देती। बस उसी की वजह से बारहवें महीने का इंतजाम हो गया।
नीम के पत्ते | Best Moral Stories In Hindi
एक बार की बात है जमूरा नामक गाँव से थोड़ी दूर पर एक महात्मा जी की कुटिया थी उस कुटिया में महात्मा जी के साथ उनका एक शिष्य भी रहता था जो दोनों आँखों से अंधा था। महात्मा जी एक महान विद्वान थेे अपने पास आए हुए हर व्यक्ति की समस्याओं का समाधान वो बहुत ही प्रसन्नता के साथ करते थे चाहे वह समस्या कोई भी हो। महात्मा जी गाँव और शहर में काफी चर्चित है उनसे मिलकर अपनी समस्या का समाधान पाने के लिए बहुत दूर-दूर से व्यक्ति आते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि कहीं दूर शहर से दो हट्टे-कट्टे नौजवान महात्मा जी के पास आए वो बहुत ही परेशान लग रहे थे। महात्मा जी ने आदर के साथ उन्हें अन्दर आने को कहा और चारपाई पर बैठा कर उनकी समस्या पूछी।
पहला नौजवान बोला -” महात्मा जी हमने सुना है आपके पास हर समस्या का समाधान है, जो कोई भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आता है वह खाली हाथ नही जाता। हम भी आपके पास अपनी समस्या ले कर आये है और उम्मीद करते है आप हमे निराश नही करेंगे।”“तुम निश्चिन होकर मुझे अपनी समस्या बताओ” महात्मा जी बहुत ही विनम्रता से बोले।
दूसरा नौजवान बोला -”महात्मा जी हम लोग इस शहर में नए आये हैं, जहाँ हमारा गाँव हैं वहाँ के हालात बहुत ही खराब है। वहाँ आवारा लोगो का बसेरा हैं उन्ही की दहशत हैं सड़को पर गुजरते हुए लोगो से बदतमीज़ी की जाती हैं, आते जाते लोगो को गालियाँ दी जाती हैं कुछ शराबी लोग सड़क पर खड़े होकर आते जाते लोगों को परेशान करते है कुछ बोलने पर वह हाथापाई पर उतर आते हैंं।
पहला नौजवान बोला -” हम बहुत परेशान हो गए हैं भला ऐसे समाज में कौन रहना चाहेगा, आप ही बताइए। महात्मा जी दोनों नौजवानों की बात सुनकर अपनी कुटिया से बड़बड़ाते हुए बाहर की ओर निकले। दोनों नौजवान भी कुटिया से बाहर आये और देखा महात्मा जी शांत खड़े होकर सामने वाली सड़क को देख रहे थे। अगले ही पल महात्मा जी मुड़े और दोनों जवानों से बोले “बेटा मेरा एक काम करोगे” सड़क की ओर इशारा करते हुए कहा “यह सड़क जहां से मुड़ती है वहीं सामने एक नीम का बड़ा है वहां से मेरे लिए कुछ पत्तियां तोड़ लाओ”।
दोनों नौजवानों ने जैसे ही कदम बढ़ाया तुरंत महात्मा जी ने उन्हें रोकतेे हुए बोले “ठहरो बेटा….. जाने से पहले मैं तुम्हे बता दूं रास्ते मेंं कई आवारा कुत्ते मिलेंगे जो बहुत ही ख़ूँख़ार है तुम्हारी जान भी जा सकती है क्या तुम पत्ते ला पाओगे???” दोनों नौजवानों ने एक दूसरे को देखा उनके चेहरे पर एक डर था परंतु वह जाने के लिए तैयार थे। वह सड़क की तरफ जैसे ही बढ़े उन्होंने देखा रास्ते के दोनों तरफ कई आवारा कुत्ते बैठे हुए हैं।
उन दोनों नौजवानों ने आवारा कुत्तों को पार करने की बहुत कोशिश की परंतु उन्हें पार कर पाना आसान नहीं था। जैसे ही वह कुत्तों के करीब जाते, कुत्ते भौकते हुए उन्हें काटने की कोशिश करते हैं। काफी कोशिश करने के बाद वापस आ गया और महात्मा जी से बोले हमें माफ कर दीजिए यह रास्ता बहुत ही ख़तरनाक हैं रास्ते में बहुत ही खतरनाक कुत्ते हैं हम यह काम नहीं कर पाए।
दूसरा नौजवान बोला-”हम दो-चार कुत्तों को किसी तरह पार कर पाए परंतु आगे जाने पर उन्होंने हम पर हमला कर दिया जैसे तैसे करके हम वहां से जान बचाकर आए हैं” महात्मा जी बिना कुछ बोले कुटिया के अंदर चले गए और फिर अपने शिष्य को साथ लेकर निकले उन्होंने सिर्फ उसे नीम का पत्ता तोड़कर लाने के लिए कहा। शिष्य उसी
रास्ते से गया काफी देर बाद जब वह वापस आया तो उसके हाथ नीम के पत्ते से भरे यह देख कर दोनों नौजवान भौचक्के रह गए। महात्मा जी बोले “बेटा यह मेरा शिष्य है हालांकि यह देख नहीं सकता है परंतु इसे कौन सी चीज कहां है इस बात का पूरा ज्ञान हैं यह रोज मुझे नीम के पत्ते ला कर देता और इसे आवारा कुत्ते इसलिए नहीं काटते हैं क्योंकि यह उनकी तरफ बिल्कुल ध्यान ही नहीं देता है सिर्फ अपने काम से काम रखता है”।
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ईमानदार विक्की | Best Moral Stories In Hindi
अपने स्कूल में होने वाले स्वतंत्रता दिवस समारोह को ले कर बहुत उत्साहित था। वह भी परेड़ में हिस्सा ले रहा था। दूसरे दिन वह एकदम सुबह जग गया लेकिन घर में अजीब सी शांति थी। वह दादी के कमरे में गया, लेकिन वह दिखाई नहीं पड़ी। "माँ, दादीजी कहाँ हैं?" उसने पूछा। "रात को वह बहुत बीमार हो गई थीं। तुम्हारे पिताजी उन्हें अस्पताल ले गए थे, वह अभी वहीं हैं उनकी हालत काफी खराब है। विक्की एकाएक उदास हो गया। उसकी माँ ने पूछा, "क्या तुम मेरे साथ दादी जी को देखने चलोगे? चार बजे मैं अस्पताल जा रही हूँ।" विक्की अपनी दादी को बहुत प्यार करता था। उसने तुरंत कहा, "हाँ, मैं आप के साथ चलूँगा।" वह स्कूल और स्वतंत्रता दिवस के समारोह के बारे में सब कुछ भूल गया। स्कूल में स्वतंत्रता दिवस समारोह बहुत अच्छी तरह संपन्न हो गया। लेकिन प्राचार्य खुश नहीं थे। उन्होंने ध्यान दिया कि बहुत से छात्र आज अनुपस्थित हैं। उन्होंने दूसरे दिन सभी अध्यापकों को बुलाया और कहा, "मुझे उन विद्यार्थियों के नामों की सूची चाहिए जो समारोह के दिन अनुपस्थित थे।"
आधे घंटे के अंदर सभी कक्षाओं के विद्यार्थियों की सूची उन की मेज पर थी। कक्षा छे की सूची बहुत लंबी थी। अत: वह पहले उसी तरफ मुड़े। जैसे ही उन्होंने कक्षा छे में कदम रखे, वहाँ चुप्पी सी छा गई। उन्होंने कठोरतापूर्वक कहा, "मैंने परसों क्या कहा था?" "यही कि हम सब को स्वतंत्रता दिवस समारोह में उपस्थित होना चाहिए," गोलमटोल उषा ने जवाब दिया। "तब बहुत सारे बच्चे अनुपस्थित क्यों थे?" उन्होंने नामों की सूची हवा में हिलाते हुए पूछा। फिर उन्होंने अनुपस्थित हुए विद्यार्थियों के नाम पुकारे, उन्हें डाँटा और अपने डंडे से उनकी हथेलियों पर मार लगाई। "अगर तुम लोग राष्ट्रीय समारोह के प्रति इतने लापरवाह हो तो इसका मतलब यही है कि तुम लोगों को अपनी मातृभूमि से प्यार नहीं है। अगली बार अगर ऐसा हुआ तो मैं तुम सबके नाम स्कूल के रजिस्टर से काट दूँगा।" इतना कह कर वह जाने के लिए मुड़े तभी विक्की आ कर उन के सामने खड़ा हो गया। "क्या बात है?" "महोदय, विक्की भयभीत पर दृढ़ था, मैं भी स्वतंत्रता दिवस समारोह में अनुपस्थित था, पर आप ने मेरा नाम नहीं पुकारा।" कहते हुए विक्की ने अपनी हथेलियाँ प्राचार्य महोदय के सामने फैला दी। सारी कक्षा साँस रोक कर उसे देख रही थी। प्राचार्य कई क्षणों तक उसे देखते रहे। उनका कठोर चेहरा नर्म हो गया और उन के स्वर में क्रोध गायब हो गया। "तुम सजा के हकदार नहीं हो, क्योंकि तुम में सच्चाई कहने की हिम्मत है। मैं तुम से कारण नहीं पूछूँगा, लेकिन तुम्हें वचन देना होगा कि अगली बार राष्ट्रीय समारोह को नहीं भूलोगे। अब तुम अपनी सीट पर जाओ। विक्की ने जो कुछ किया, इसकी उसे बहुत खुशी थी।
दो कुत्तो की दोस्ती | Best Moral Stories In Hindi
पहाड़ों में बसे एक गाँव में एक चौधरी साहिब की बड़ी सी हवेली में शेरू और टॉमी नाम के दो कुत्ते रहते थे।
उन दोनों कुत्तों को एक दूसरे से बेहद लगाव था। एक दुसरे को देखे बिना चैन नहीं पड़ता था। कभी आपस में खेलते तो कभी एक दुसरे को चाटते।
सारा दिन इधर उधर भागना, कभी हरी घास पर लोटना तो कभी उड़ते पंक्षियों के साथ रेस लगाना। कभी चौधरी साहिब के पीछे पीछे बाजार चले जाना, तो कभी मन ना हो तो आंखें मूँद कर पड़े रहना। गांव के दुसरे कुत्तो के साथ कभी जंगल की तरफ निकल जाना तो कभी झुण्ड बना कोई खेल खेलना। खाने पीने की चिंता नहीं थी। हवेली से उन्हें भरपेट भोजन मिल जाता था। गांव के स्वस्थ वातावरण के कारण दोनों खूब फल फूल रहे थे। बस मस्ती में दिन बीत रहे थे।
एक दिन चौधरी साहिब के बेटे सुरिंदर ने शहर जाने का फैसला किया। पिता ने उसे अपने साथ शेरू को ले जाने को कहा तो वह मान गया। अगले दिन सुबह जब घर के बाहर खड़ी मोटर गाड़ी में सामान रक्खा जा रहा था तो दोनों शेरू और टॉमी वहां दौड़ कर पहुँच गए। दोनों उसमें सवार हो घूमना चाहते थे। लेकिन चौधरी के बेटे ने उन्हें पीछे हटा दिया। दोनों बहुत मायूस से हो गए। अब तक सामान रक्खा जा चुका था। चौधरी के बेटे सुरिंदर ने पकड़ कर शेरू को गाड़ी में बैठाया और गाड़ी चल पड़ी।
अरे ये क्या हुआ, शेरू तो सैर करने चल पड़ा और मैं पीछे रह गया। यह सोच टॉमी भी गाड़ी के पीछे भोंकते हुए दौड़ने लगा। कुछ दूर दौड़ने के बाद बहुत दुखी मन से वो हवेली लौट आया। सारा दिन, पूरी रात वो शेरू के लौटने का इंतज़ार करता रहा। लेकिन कौन समझाता उसे कि शेरू तो शहर जा चुका था।
अब टॉमी का मन उदास रहने लगा। शेरू बिना उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था। ना खेलने जाता, ना ही और कुत्तों के साथ मस्ती करने। खाना तक बेमन से खाता। उसे शेरू की बहुत याद आती और वो रो पड़ता।
दिन बीतते गए और फिर कुछ महीनों बाद चौधरी साहिब का बेटा शेरू को साथ ले गांव वापिस आया। उसे दकह टॉमी बहुत खुश हुआ। दोनों ने एक दुसरे को गले लगाया और बहुत देर तक खेलते रहे। दोनों बहुत खुश थे। टॉमी बहुत ही उत्सुकता से शहर के बारे में जानना चाहता था कि तभी टॉमी की नज़र शेरू के गले में बंधे एक पट्टे पर गयी। अरे यह क्या है ?
पूछने पर शेरू ने बताया कि शहर में तो मुझे बाँध कर रक्खा जाता है। सिर्फ घर में मैं खुला घूम सकता हूँ। जब भी बहार जाओ तो ये पट्टा मेरे गले में होता है। वहां ना तो दुसरे कुत्तों से दोस्ती होती है ना खुली हवा में दौड़ भाग। बस सारा दिन घर में ही रहो। जब किसी का दिल किया तो मेरा पट्टा पकड़ मुझे बाहर ले जाते हैं। भाई, मैं तो अपने को भग्यशाली समझता था कि मैं शहर आ गया। लेकिन कुछ दिनों बाद धुटन भरी शहर की जिंदगी ने मेरा सारा जीवन ही बर्बाद कर दिया। इतना कह दोनों एक दूसरे के गले लग बहुत देर तक रोते रहे।
अगली सुबह चौधरी साहिब ने शेरू का पट्टा खोल दिया, क्योंकि शहर की भाग दौड़ भरी जिंदगी उनके बेटे को भी पसंद नहीं थी। शेरू अब शहर नहीं जाएगा।
बस फिर क्या था, टॉमी और शेरू को तो मानो जीवन दान मिल गया हो।
शहर क्या और गाँव क्या, अपनों से बिछड़ कर दूर जाना हमेशा ही पीड़ाजनक होता है। हमें हमेशा अपने मित्रों, परिवारजनों के साथ और प्यार की आवश्यकता होती है।
एक बूढ़े घोड़े की दोस्ती | Best Moral Stories In Hindi
एक किसान के पास एक बूढा घोड़ा था. एक दिन गलती से वह किसान के कुएं में गिर पड़ा. किसान स्थिति का मूल्यांकन करने के बाद मन ही मन सोचा – अब तो न इस पुराने कुंए का और न ही इस बूढ़े घोड़े का कोई उपयोग है. अतः बूढ़े घोड़े को बचाने से क्या फायदा.
इसलिए उस किसान ने अपने पड़ोसियों को इकठ्ठा कर पास ही पड़े कूड़े को कुंए में डालना शुरू कर दिया. ताकि कुआं जल्दी से जल्दी भर जाये और वह बूढा घोड़ा भी कूड़े के साथ उसी कुएँ में दफन हो जाये.
बूढा घोड़ा अपने ऊपर इस प्रकार से कूड़ा गिरते देख शुरू में तो पागल हो गया. लेकिन जल्द ही एक उम्मीद भरा विचार उसके दिमाग में आया – जैसे ही गंदगी और कूड़ा उसकी पीठ पर गिरता, वह अपने शरीर और पीठ को ऐसे हिलाता कि सारा कचरा नीचे और वह थोड़ा ऊपर आ जाता.
उस बूढ़े घोड़े ने बार-बार खुद से इन शब्दों को दोहराने लगा : “अपनी पीठ हिलाते रहो और ऊपर उठते रहो”. इस तरह से ऐसे जोखिम और भय के माहौल में वह स्वयं को प्रोत्साहित करते रहा. न ही डरा, न ही विवेक खोया. अपने पीठ को हिलाकर सारे कूड़े को नीचे गिराते रहा और ऊपर उठते रहा। कुछ समय के बाद, घोड़े ने दीवार के बाहर कूदकर अपनी जान बचा ली और विजेता साबित हुआ. हालाँकि वह बहुत थक चुका था लेकिन उसने जान बचा ली. वह हमेशा सकारात्मक रहा, उसने विपरीत परिस्थितियों का सामना करने का फैसला किया और जीता।
दृढ़ इच्छाशक्ति से पाई सफलता | Best Moral Stories In Hindi
चंदन वन आजकल गुलजार है। फिर भालू की पाठशाला के तो क्या कहने? शेर, हाथी, बारहसिंगा, चीता, गेंडा सभी अपने बच्चों के दाखिले के लिए चले आ रहे थे। बच्चे रंग-बिरंगी पोशाकों में बहुत सुन्दर लग रहे थे।
हाथी की छोटी बेबी' अपुनी' ने बंगाली कुर्ती पहनी थी तो गेंडे का बेटा' गिंडु' रशियन जींस पहनकर अपने आपको धरती का राजकुमार समझ रहा था। शेर के छोकरे' शिरुआ' ने बरमूडा पहनकर सबको चकाचौंध कर दिया था। वह सबको अपने मसल्स दिखाकर यह बताना चाहता था कि वह जंगल के राजा का शहजादा है। उधर चीते के बेटे' चित्तू' ने लखनवी कुरता-पायजामा अपने चिकने बदन पर डाल रखा था। उसे अपने भारतीय होने का गर्व था।
चारों ओर बहार छाई थी। हरे-भरे पेड़, पास में कल-कल, झर-झर करते झरने, पास की पहाड़ी पर बर्फ की चादर स्वर्ग का आभास करा रहे थे। पेड़ों पर चिड़िया चहक रही थीं। कहीं-कहीं तोते टें-टें की आवाज करते हुए एक पेड़ से उड़कर दूसरे पेड़ पर आ-जा रहे थे। कोयल की कूक सारे वातावरण को मोहक और मनोरम बना रही थी।
इसी पहाड़ी की तलहटी में भालू की पाठशाला का चमचमाता हुआ शानदार पट्ट' भाग्योदय जानवर पाठशाला' बच्चों के अभिभावकों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा था। अजगर भी अपने 3 बच्चों को लेकर उनके दाखिले के लिए रेंगता चला आ रहा था। सुरक्षा के लिए उसने तीनों को रंगीन रजाई के खोल पहना दिए थे।
सभी जानवर शाला के प्राचार्य से मिलते, अपने बच्चों का साक्षात्कार कराते और कितना अनुदान देना है, इसकी जानकारी लेते और लेखा विभाग में खजांजी के पास जाकर राशि जमा करा देते। बच्चों का दाखिला हो जाता। नर्सरी के लिए 1 लाख, केजी प्रथम के लिए 2 लाख और केजी द्वितीय के लिए 3 लाख रुपए अनुदान सुनिश्चित था। सभी जानवर धनवान थे तथा खुशी-खुशी अनुदान देकर दाखिला करा रहे थे।
कई जानवर अपनी मूंछों पर ताव देकर अपने मित्रों के सामने अपने स्टेटस सिंबल का बखान कर रहे थे। भाग्योदय पाठशाला में दाखिला मिलना सच में गौरव और प्रतिष्ठा की बात थी।
बच्चों का तीक्ष्ण बुद्धि का होना अनियार्य तो था, किंतु थोड़े कम अक्ल लोगों को भी दाखिला मिल जाता था बशर्ते अनुदान की राशि अधिक देने की स्थिति में पालकगण होते तो 2 लाख के बदले 4 लाख देने पर गधे और कमजोर बच्चों के दाखिले पर प्रतिबंध नहीं था, परंतु ये सब बातें बहुत ही गोपनीय रखी जाती थीं।
सुनिश्चित राशि से अतिरिक्त राशि प्राचार्य अपने पास ही रखता था तथा उसके निजी सचिव के अलावा यह बात कोई नहीं जानता था। उसने बच्चों के अभिभावकों को चेतावनी दे रखी थी- 'यदि किसी ने यह बात जाहिर की तो उसके बच्चे को शाला से निकाल दिया जाएगा।'
आम, नीम, पीपल, सागौन और महुए के वृक्षों से ढंकी 2 झरनों के मध्य स्थित यह पाठशाला सच में इन्द्रलोक का आभास कराती थी। इस शाला में दाखिले के लिए जंगल के सभी जानवर लालायित रहते थे किंतु सबको मालूम था कि स्पर्धा बहुत कठिन है। बच्चों के साथ ही उनके मां-बाप से भी कठोर सवाल पूछे जाते थे। > >
कमजोर और निर्धन बच्चे तो शाला का नाम सुनकर ही डर जाते थे। बच्चे कमजोर, ऊपर से गरीब हों, तो उनके लिए तो यह शाला एक सपने की ही तरह थी। उन बेचारों को तो सरकारी स्कूल ही नसीब में थे।' कहां राजा भोज कहां गंगू तेली'/' दूर के अंगूर खट्टे' समझकर बेचारे पास के कूड़े-कचरे से वे संतोष कर लेते थे।
एक गधे का बच्चा' गिद्धू' कई दिनों से भाग्योदय पाठशाला में दाखिले के लिए लालायित था। इसके लिए वह कई दिनों से सपने बुन रहा था। पिछले 2 महीने से दिन-रात परिश्रम कर उसने प्रतिस्पर्धा के लिए तैयारी की थी। उसे पूर्ण विश्वास था कि वह नर्सरी तो क्या, केजी प्रथम और केजी द्वितीय तक की परीक्षा में भी सफल हो सकता है। उसने अपने बापू से कहा था कि मुझे भी भाग्योदय पाठशाला में पढ़ना है। मुझे वहां ले चलो, निश्चित ही मैं प्रतियोगी परीक्षा में सफल हो जाऊंगा।
गधे ने उसे समझाया था-' बेटे वह शाला बुद्धिमान, निपुण और मेधावी लोगों के लिए है, हम ठहरे गधा जाति के प्राणी। हमें वहां कौन पूछेगा? हमें तो वहां की चहारदीवारी में घुसने भी नहीं मिलेगा।'
किंतु बेटा' गिद्धू' तो जिद पर अड़ा था-' पढूंगा तो भाग्योदय में ही पढूंगा अन्यथा नहीं पढूंगा।'
बेचारा निरीह गधा क्या करता? पुत्र-प्रेम में अंधा। बेटे को लेकर वह पहुंच ही गया उस पाठशाला में।
गधे बाप-बेटे को देखकर सभी लोग हंसने लगे। 'लो अब गधे का बेटा भी अपनी शाला में पढ़ेगा।' हाथी की बेबी 'अपुनी' ने तंज कसा- 'अरे कहां से पढ़ेगा'। शेर का बच्चा 'शिरुआ' बोला- 'प्राचार्य इसे यूं ही टरका देगा। इतनी कड़ी स्पर्धा है कि यह गधे का बच्चा एक भी प्रश्न का जवाब सही नहीं दे पाएगा।'
किंतु गधे के बच्चे को अपने ऊपर पूरा विश्वास था। धड़ल्ले से वह प्राचार्य के कमरे में गया और पूछे गए सभी प्रश्नों के सही और सटीक जवाब दे दिए। प्राचार्य अवाक् रह गया। किंतु दाखिले के लिए जब अनुदान देने बात आई तो गधे ने साफ इंकार कर दिया। 1 लाख कहां से देता वह बेचारा गरीब?
प्राचार्य ने तुरंत पलटी मारी- 'तुम्हारा बेटा बहुत कमजोर है, हम उसे दाखिला नहीं दे सकते, गधे कहीं के चले आते दाखिला कराने', ऐसा कहकर प्राचार्य ने उसे कमरे से बाहर भगा दिया। गधा बेचारा निराश हो गया।
परंतु उसका नन्हा-दुलारा हौसले वाला था- 'बोला, बापू कुछ गड़बड़ है। यहां प्राचार्य भालू केवल उन्हीं बच्चों को दाखिला देता है, जो उसे भारी अनुदान देते हैं। परीक्षा, स्पर्धा सब ढकोसला है। देखो बापू, ये सांप और अजगर के बच्चे भी यहां घूम रहे हैं। इनका दाखिला कैसे हो गया? अजगर भी कोई बुद्धिमान होते हैं? खाया-पिया और सो गए आलसी कहीं के। उनके बच्चे तो निरे मूर्ख ही होते होंगे। यही तो इनकी दिनचर्या है।'
उसने आगे कहा- 'मुझे लगता है कि इस शाला में उन्हें ही जगह मिलती है, जो खूब सारा अनुदान देते हैं अथवा जो ताकतवर हैं और अपनी ताकत के दम पर ही बच्चों का दाखिला करा लेते हैं। अजगर और सांप के बच्चों को तो डर के कारण ही भालू ने दाखिला दिया होगा। मैं देखता हूं कि यह प्राचार्य कैसे मुझे भर्ती नहीं करता।'
उसने शाला से बाहर आकर भालू प्राचार्य की मनमानी और तानाशाही की बात सब जानवरों को बताई- 'मैंने सभी प्रश्नों के सही जवाब दिए फिर भी मुझे दाखिला नहीं दिया जबकि अजगर व सांप जैसे गधे बच्चों को दाखिला दिया गया है।'
गधे के बेटे की वेदना सुनकर बंदर, नेवला, सियार, लोमड़ी, गिलहरी सरीखे जानवरों को जोश आ गया।
'कमजोरों पर ऐसा अत्याचार! अब ऐसा नहीं चलेगा' बंदर चिल्लाया। 'हमें इंसाफ चाहिए, अपना हक हम लेकर ही रहेंगे', नेवले ने हुंकार भरी। भालू प्राचार्य की यह हिम्मत! लाखों रुपए लेकर दाखिला देता है और कहता कि हम मेधावी और कुशाग्र बच्चों को ही लेते हैं', लोमड़ी धरती पर अपनी पूंछ पटककर बोली। वह गुस्से के मारे अपनी नाक फुला रही थी- 'इस भालू को तो मैं कुचलकर रख दूंगी। समझता क्या है अपने आपको? यह प्रजातंत्र है।' वह जोरों से चीख रही थी। 'चलो हम अभी भालू की पाठशाला को तहस-नहस कर देते हैं', सियार का भी खून खौल रहा था। 'क्या छोटे जानवरों की कोई इज्जत नहीं है?'
सभी जानवरों ने चिल्ला-चिल्लाकर अपने साथियों को एकत्रित कर लिया और सैकड़ों की तादाद में यह भीड़ नारे लगाती हुई शाला की तरफ कूच कर गई- 'शाला का दोहरा व्यवहार, नहीं चलेगा भ्रष्टाचार', 'शाला को मिटा देंगे, प्राचार्य को हटा देंगे', 'जानवर एकता जिंदाबाद' जैसे नारे सुनकर भालू प्राचार्य घबरा गया। वह कमरे के बाहर आ पाता कि भीड़ दरवाजा ठेलती हुई अंदर घुस गई।
भालू की घिग्गी बांध गई। यह क्या हो गया? इतने कमजोर से जानवर गधे ने मेरी शाला पर हमला करवा दिया। उसने तो सपने में भी यह नहीं सोचा था। वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और सबसे क्षमा मांगने लगा। कोई दूसरा उपाय भी तो नहीं था|
'श्रीमान प्राचार्यजी, आपकी काली करतूतों का हमें पता चल गया है। आप अमीरों के बच्चों को भारी अनुदान लेकर दाखिला देते हैं। मेधावी, होशियार होना यह दिखावा है। हम आपकी शाला तोड़ने और आपको दंड देने आए हैं', बंदर घुड़ककर बोला। नेवले ने तो वहीं गुस्से के मारे 2-3 सांप के बच्चों को काटकर टुकड़े-टुकड़े कर दिए।
'क्षमा कर दो भाई, हम इस गधे के मेधावी पुत्र 'गिद्धू' को अभी दाखिला दे देते हैं।' प्राचार्य हाथ जोड़कर फिर से खड़ा हो गया।
'इतने से ही काम नहीं चलेगा। तुम्हें सियार, लोमड़ी, गिलहरी, गिरगिट, छिपकली इत्यादि सभी जीवों के बच्चों को शाला में भर्ती करना पड़ेगा बिना किसी अनुदान के', गिरगिट धमकीभरे अंदाज में चिल्लाए जा रहा था।
'ठीक है, हमें आप लोगों की सभी शर्तें मंजूर हैं।' भालू को अपनी गलती का अहसास हो गया था।
अब भाग्योदय पाठशाला सभी के लिए खुली है। अनुदान लेना-देना बिलकुल बंद है। लिखित परीक्षा होती है। जो योग्य होता है उसे शाला में प्रवेश मिल जाता है।
शेर और लकड़बग्घे | Best Moral Stories In Hindi
शेरा नाम का एक शेर बहुत परेशान था ।
वो एक नौजवान शेर था जिसने अभी -अभी शिकार करना शुरू किया था । पर अनुभव न होने के कारण वो अभी तक एक भी शिकार नहीं कर पाया था । हर एक असफल प्रयास के बाद वो उदास हो जाता , और ऊपर से आस -पास घूम रहे लकड़बघ्घे भी उसकी खिल्ली उड़ा कर खूब मजे लेते ।
शेरा गुस्से में उनपर दहाड़ता पर वे ढीठ कहाँ डरने वाले थे , ऐसा करने पर वे और जोर -जोर से हँसते ।
शेर और
“उन पर ध्यान मत दो ” , समूह के बाकी शेर सलाह देते ।
“कैसे ध्यान न दूँ ? हर बार जब मैं कसी जानवर का शिकार करने जाता हूँ तो इन लकड़बग्घों की आवाज़ दिमाग में घूमती रहती है “ , शेरा बोला।
शेरा का दिल छोटा होता जा रहा था , वो मन ही मन अपने को एक असफल शिकारी के तौर पर देखने लगा और आगे से शिकार का प्रयास न करने की सोचने लगा।
ये बात शेरा की माँ , जो दल के सबसे सफल शिकारियों में से थी को अच्छी तरह से समझ आ रही थी । एक रात माँ ने शेरा को बुलाया और बोली ,” तुम परेशान मत हो , हम सभी इस दौर से गुजरे हैं , एक समय था जब मैं छोटे से छोटा शिकार भी नहीं कर पाती थी और तब ये लकड़बग्घे मुझपर बहुत हँसते थे । तब मैंने ये सीखा , “ अगर तुम हार मान लेते हो और शिकार करना छोड़ देते हो तो जीत लकड़बग्घों की होती है । लेकिन अगर तुम प्रयास करते रहते हो और खुद में सुधार लाते रहते हो … सीखते रहते हो तो एक दिन तुम महान शिकारी बन जाते हो और फिर ये लकड़बग्घे कभी तुम पर नहीं हंस पाते ।”
समय बीतता गया और कुछ ही महीनो में शेरा एक शानदार शिकारी बन कर उभरा , और एक दिन उन्ही लकड़बग्घों में से एक उसके हाथ लग गया ।
“ म्म्म् मुझे मत मारना … मुझे माफ़ कर दो जाने; मुझे जाने दो ”, लकड़बग्घा गिड़गिड़ाया।
“ मैं तुम्हे नहीं मारूंगा , बस मैं तुम्हे और तुम्हारे जैसे आलोचकों को एक सन्देश देना चाहता हूँ । तुम्हारा खिल्ली उड़ाना मुझे नहीं रोक पाया , उसने बस मुझे और उत्तेजित किया कि मैं एक अच्छा शिकारी बनूँ … खिल्ली उड़ाने से तुम्हे कुछ नहीं मिला पर आज मैं इस जंगल पर राज करता हूँ । जाओ मैं तुम्हारी जान बख्शता हूँ … जाओ बता दो अपने धूर्त साथियों को कि कल वे जिसका मजाक उड़ाते थे आज वही उनका राजा है ।”
चालक गीदड़ | Best Moral Stories In Hindi
किसी वन में एक गीदड़ रहता था। एक दिन भूख के कारण वह जंगल में घूम रहा था लेकिन उसे कुछ नहीं मिला। घूमते घूमते वह शहर पहुँच गया।
जैसे ही वह शहर पहुँचा तो अचानक से बहुत से कुत्तों ने भौंकना शुरु दिया। डर के मारे गीदड़ भागने लगा। भागते-भागते वह एक घर में घुस गया। अंदर अँधेरा था।
अरे ! यह क्या हुआ ? छप्प से किसी के गिरने की आवाज आई। दरवाजे के पास एक टब पड़ा था जिसमें पानी भरा था। गीदड़ उसमें जा गिरा। ओह ! मगर यह नीले रंग का पानी था और वह घर एक धोबी का था जिसने कपड़ों को रंगने के लिए रखा था। गीदड़ को ढूंढ़ रहे कुत्ते उसे ना देखकर वापिस चले गए।
कुत्तों के वापिस जाते ही गीदड़ टब से बाहर निकला तो उसने क्या देखा कि उसका शरीर तो नीले रंग का हो गया है। अब गीदड़ वन की ओर चल पड़ा।
वन में नीले गीदड़ को देख कर सब जानवर डर कर इधर-उधर भागने लगे। उन्हें डरते हुए देख गीदड़ को एक तरकीब सूझी। उसने सब जानवरों को कहा ” अरे ! तुम सब डरो नहीं। मैं तुम्हारा राजा हूँ। मुझे भगवान ने तुम सब की रक्षा के लिए भेजा है। ” इस तरह सब जानवर उसे भगवान का भेजा हुआ राजा समझकर उसकी सेवा करने और खाने-पीने का ध्यान रखने लगे।
कुछ समय बाद एक दिन वहाँ गीदड़ों के एक झुँड आ पहुँचा और अपनी भाषा में बातचीत करने लगा। बहुत दिनों बाद किसी को अपनी भाषा में बोलते सुन गीदर राजा अपने को रोक नहीं पाया और उसके मुँह से निकल पड़ा । “अरे ! यह तो मेरे ही परिवार के लोग हैं। ” यह जान कर खुशी के मारे वह भी उसी आवाज में बोलने लगा।
उसकी आवाज सुनकर सब जानवर हैरान हो गए कि यह तो गीदड़ है। उन्हें पता लग गया कि गीदड़ ने उन्हें कैसे मूर्ख बनाया। बस फिर क्या था, सब ने मिलकर उसे मार दिया और उसे उसके धोखे की सजा दी।
चार मूर्ख | Best Moral Stories In Hindi
यह काशी की प्रसिद्ध लोक कथा है. काशी अर्थात बाबा विश्वनाथ की नगरी! बड़े बड़े राजा कभी कभी ऐसे अटपटे काम कर देते हैं जिनको जानकर बहुत आश्चर्य होता है.
एक बार काशी नरेश ने अपने मंत्रियों को यह आदेश दिया कि जाओ और तीन दिन के भीतर चार मूर्खों को मेरे सामने पेश करो. यदि तुम ऐसा नहीं कर सके तो तुम सबका सिर कलम कर दिया जाएगा.
पहले तो मंत्री जी थोड़े से घबराये लेकिन मरता क्या न करता. राजा का हुक्म जो था. ईश्वर का स्मरण कर मूर्खों की खोज में चल पड़े.
कुछ मील चलने के बाद उसने एक आदमी को देखा. वह आदमी गदहे पर सवार था और सिर पर एक बड़ी सी गठरी उठाये हुए था. मंत्री को पहला मूर्ख मिल चुका था. मंत्री ने चैन की सांस ली.
कुछ और आगे बढ़ने पर दूसरा मूर्ख भी मिल गया. वह लोगों को लड्डू बाँट रहा था. पूछने पर पता चला कि शत्रु के साथ भाग गयी उसकी बीबी ने एक बेटे को जन्म दिया था जिसकी ख़ुशी में वह लड्डू बाँट रहा था.
दोनों मूर्खों को लेकर मंत्री राजा के पास पहुंचा.
राजा ने पूछा – ये तो दो ही हैं? तीसरा मूर्ख कहाँ है?
“महाराज वह मैं हूँ. जो बिना सोचे समझे मूर्खों की खोज में निकल पड़ा. बिना कुछ सोचे समझे आपका हुक्म बजाने चल पड़ा.”
और चौथा मूर्ख ?
“क्षमा करें महाराज? वह आप हैं. जनता की भलाई और राज काज के काम के बदले आप मूर्खों की खोज को इतना जरुरी काम मानते हैं.”
राजा की आँखें खुल गयी और उनसे अपने मंत्री से क्षमा मांगी।
अच्छाई का फल | Best Moral Stories In Hindi
भोलू हाथी के माता-पिता का स्वर्गवास हो गया था। वह हाथियों के झुंड में रहता था, लेकिन कोई भी हाथी उसे पसंद नहीं करता था। कोई भी उस छोटे से भोलू को अपने साथ नहीं रखना चाहता था। फिर भी भोलू यथाशक्ति सबकी सेवा करता। वह सबका कहा मानता और उनके छोटे-मोटे काम भी करता।
एक बार रात के समय सदा की तरह भोलू हाथियों के झुंड में सोया हुआ था, सुबह उठकर उसने देखा तो सब हाथी जा चुके थे। वह अकेला ही रह गया था। उसने अपने साथियों को बहुत खोजा, लेकिन वे नहीं मिले। थक-हारकर भोलू अपनी किस्मत को कोसता रोता हुआ अकेला ही अनजान रास्ते पर चल दिया तभी एक महाजन ने उसको देखा तो वह बहुत खुश हुआ। वह उसको अपने घर ले गया और बड़े ही प्रेम से उसकी देखभाल करने लगा। भोलू भी महाजन की एक आवाज़ पर दौड़ा-दौड़ा आता और उसके लिए अपनी जान तक देने के लिए तैयार रहता। जब राजा को भोलू की विशेषताओं के बारे में पता चला तो, उसने उस महाजन को दरबार में बुलवाया और एक सुझाव उसके सामने रखा।
'महाजन यह सुंदर हाथी अगर तुम हमको दे दो तो हम तुम्हें मालामाल कर देंगे।' महाजन बोला, 'क्षमा कीजिए, मैंने भोलू को अपने पुत्र के समान प्यार किया है, इसलिए अब मैं इससे अलग नहीं रह सकता।' थोड़ी देर बाद सोचकर महाराज बोले, 'तो ऐसा करो कि तुम महल में ही इसके महावत बन जाओ।
तुम्हारे रहने की व्यवस्था भी महल में ही कर देंगे।' 'तब ठीक है महाराज, मैं भी भोलू के साथ यहाँ पहुँच जाऊँगा।' महाजन ने संतुष्ट होते हुए कहा, 'अगले दिन शाम के समय महाजन भोलू को लेकर महल में पहुँच गया। उस दिन से महाजन भोलू के ऊपर सवारी करने लगे। तब भोलू राजा को भी प्रसन्न रखने का प्रयास करता।
एक दिन महाराज भोलू पर बैठकर शिकार करने गये। थोड़ी ही देर बाद उनको हाथियों का एक झुंड दिखाई दिया तब महाराज ने निशाना साधकर तीर चलाया।
निशाना अचूक था। तीर सीधा जाकर एक हाथी के लगा और वह हाथी ज़मीन पर गिर पड़ा, तभी भोलू ने देखा कि यह तो हाथियों का वही झुंड था, जिसने उसको छोड़ दिया था। हाथियों ने जब भोलू को देखा तो वे भी उसे पहचान गये। यह देखकर उन्हें बड़ा आश्चर्य हो रहा था कि उस पर एक राजा बैठा है।
उसे देखकर झुंड के सभी हाथी सोचने लगे कि वास्तव में गुणवान की कद्र सभी जगह होती है। अपनी अच्छाई और गुणों के कारण ही तो भोलू राजा के महल तक पहुँच सका था।
शरारती चूहा | Best Moral Stories In Hindi
गोलू के घर में एक शरारती चूहा आ गया। वह बहुत छोटा सा था मगर सारे घर में भागा चलता था। उसने गोलू की किताब भी कुतर डाली थी। कुछ कपड़े भी कुतर दिए थे। गोलू की मम्मी जो खाना बनाती और बिना ढके रख देती , वह चूहा उसे भी चट कर जाता था। चूहा खा – पीकर बड़ा हो गया था। एक दिन गोलू की मम्मी ने एक बोतल में शरबत बनाकर रखा। शरारती चूहे की नज़र बोतल पर पड़ गयी। चूहा कई तरकीब लगाकर थक गया था , उसने शरबत पीना था।
चूहा बोतल पर चढ़ा किसी तरह से ढक्कन को खोलने में सफल हो जाता है। अब उसमें चूहा मुंह घुसाने की कोशिश करता है। बोतल का मुंह छोटा था मुंह नहीं घुसता। फिर चूहे को आइडिया आया उसने अपनी पूंछ बोतल में डाली। पूंछ शरबत से गीली हो जाती है उसे चाट – चाट कर चूहे का पेट भर गया। अब वह गोलू के तकिए के नीचे बने अपने बिस्तर पर जा कर आराम से करने लगा।
चालक बकरा | Best Moral Stories In Hindi
एक जंगल में एक बकरी और बकरा बड़े प्यार से रहते थे, उसी जंगल में एक सियार भी रहता था। पिछली बार जब बकरी ने बच्चों को जन्म दिया था तो सियार बच्चों को उठा ले गया था और उन्हें खा गया था। इस कारण बकरी बहुत दुःखी रहती थी।
कुछ दिन बाद बकरी ने फिर से दो बच्चों को जन्म दिया। अब बकरी को यह चिंता सताने लगी कि सियार फिर से उसके बच्चों को उठा ले जाने के लिए आएगा इसलिए उसने बकरे से कहा “सुनो जी, जल्दी ही कोई ऐसा तरीका सोचो कि जिस से सियार मेरे बच्चों को ना ले जा सके। में तो कहीं घास चरने भी नहीं जाउंगी, यहीं बैठ कर अपने बच्चों की पहरेदारी करुँगी।” बकरे ने सोचा कि इस तरह डर कर तो काम चलेगा नही। बकरे को एक तरकीब सूझी। उसने बकरी से कहा कि ऐसा करते हैं की मैं सामने के पहाड़ पर जाकर वहाँ से निगरानी करता हूँ, जैसे ही सियार आता हुआ दिखाई देगा तो मैं जोर से तुम्हे बोलूंगा “अरे बकरी ये बच्चे क्यों रो रहे हैं” तब तुम इन बच्चों को चूंटी काट देना जिस से ये बच्चे जोर जोर से रोने लगेंगे। फिर तुम कहना “मैं क्या करूँ, ये बच्चे कह रहे हैं कि हमें तो सियार का ताजा कलेजा खाना है। घर में बासी कलेजा तो रखा है पर इस समय मैं ताजा कलेजा कहाँ से लाऊँ।” फिर बकरा बोला मैं कहूंगा “अरे चुप हो जाओ, शोर मत करो, सामने से एक सियार आ रहा है मैं अभी बच्चों के लिए उसका कलेजा निकाल लेता हूँ।” इस तरह से बकरे ने बकरी को समझाया और बकरा पहाड़ की चोटी पर चढ़ गया।
कुछ देर के बाद बकरे को दूसरी ओर से सियार आता हुआ दिखाई दिया। सियार को आता देख कर अपनी योजना के अनुसार बकरा जोर से बोला “अरे बकरी ये बच्चे क्यों रो रहे हैं” बकरी ने बच्चों को चूंटी काट कर वैसा ही कहा जैसा बकरे ने उसे समझाया था। बकरा चिल्ला कर बोला “अरे चुप कराओ इन बच्चों को मैं अभी सियार का ताजा कलेजा निकल कर लाता हूँ।” सियार ने बकरे को यह कहते सुना तो वो दम दबाकर वहाँ से भागा। जब सियार भागा जा रहा था तो रास्ते में एक लंगूर ने उस से पूछा “सियार भाई कहाँ भागे जा रहे हो?” सियार ने लंगूर को बताया कि एक बकरा पीछे की पहाड़ी पर उसका कलेजा निकालने के लिए खड़ा है। यह सुनते ही लंगूर हँसते हँसते लोटपोट हो गया। लंगूर बोला “अरे भाई तुम्हारा दिमाग तो खराब नही हो गया है, भला कहीं बकरा भी सियार को मार सकता है क्या?” सियार बोला “नहीं दोस्त, ये बात मैंने अपने कानों से खुद सुनी है। वो बकरा अपनी पत्नी से कह रहा था कि मैं अभी सियार का कलेजा निकाल कर लाता हूँ, उसके बच्चे सियार का ताजा कलेजा खाना चाहते हैं।” लंगूर ने कहा “अच्छा, चलो जरा मैं भी देखूं कैसा है वो बकरा। तुम ऐसा करो कि अपनी पूँछ और मेरी पूँछ को कस कर बाँध लो और मैं तुम्हारी पीठ पर बैठ जाता हूँ।”
दोनों ने अपनी पूँछे आपस में बाँध लीं और सियार लंगूर को अपनी पीठ पर बैठाकर चल पड़ा। जब पहाड़ की चोटी से बकरे ने सियार और लंगूर को आते हुए देखा तो उसने फिर अपना दिमाग लगाया और जोर से कहने लगा “अरे बकरी इन बच्चों को चुप कराओ, देखो मेरा दोस्त लंगूर सियार को पूँछ से बाँध कर यहीं ला रहा है। अब तुम बिलकुल चिंता न करो। थोड़ी ही देर में मैं सियार का कलेजा निकाल कर ले आऊंगा।” सियार यह बात सुनकर हैरान रह गया। बकरे ने फिर कहा “अरे लंगूर तू तो बड़ा ही निकम्मा निकला, तू तो कह रहा था की मैं कई सियारों को लेकर आऊंगा, तू एक ही सियार को लेकर आ रहा है।” यह सब सुन कर सियार को लंगूर पर शक हो गया, अब तो उसने आँख बंद करके अपनी जान बचाने के लिए भागना शुरू कर दिया। सियार की पीठ से गिर कर लंगूर भी उसके पीछे पीछे घिसटता जा रहा था। भागते भागते सियार ने पहाड़ी से छलांग लगाई लेकिन लंगूर की पूँछ बंधी होने के कारण वो दोनों खाई में गिर पड़े और मर गए।
इस तरह अपनी सूझबूझ और समझदारी से बकरे ने अपने बच्चों की जान बचा ली।
शेख चिल्ली की खीर | Best Moral Stories In Hindi
शेख चिल्ली पूरा बेवक़ूफ़ था और हमेशा बेवकूफी भरी बातें ही करता था। शेख चिल्ली की माँ उसकी बेवकूफी भरी बातों से बहुत परेशान रहती थी। एक बार शेखचिल्ली ने अपनी माँ से पूछा कि माँ लोग मरते कैसे हैं? अब माँ सोचने लगी कि इस बेवक़ूफ़ को कैसे समझाया जाए कि लोग कैसे मरते हैं, माँ ने कहा कि बस आँखें बंद हो जाती हैं और लोग मर जाते हैं। शेखचिल्ली ने सोचा कि उसे एक बार मर कर देखना चाहिए। उसने गाँव के बाहर जाकर एक गड्ढा खोदा और उसमें आँखें बंद करके लेट गया।
रात होने पर उस रास्ते से दो चोर गुजरे। एक चोर ने दुसरे से कहा कि हमारे साथ एक साथी और होता तो कितना अच्छा होता, एक घर के आगे रहता दूसरा घर के पीछे रहता और तीसरा आराम से घर के अंदर चोरी करता। शेखचिल्ली यह बात सुन रहा था, वो अचानक बोल पड़ा “भाइयों मैं तो मर चुका हूँ, अगर जिन्दा होता तो तुम्हारी मदद कर देता।” चोर समझ गए कि यह बिलकुल बेवक़ूफ़ आदमी है। एक चोर शेखचिल्ली से बोला “भाई जरा इस गड्ढे में से बाहर निकल कर हमारी मदद कर दो, थोड़ी देर बाद आकर फिर मर जाना। मरने की ऐसी भी क्या जल्दी है।” शेखचिल्ली को गड्ढे में पड़े पड़े बहुत भूख लगने लगी थी और ठंड भी, उसने सोचा कि चलो चोरों की मदद ही कर दी जाए। तीनों ने मिल कर तय किया की शेखचिल्ली अंदर चोरी करने जाएगा, एक चोर घर के आगे खड़ा रहकर ध्यान रखेगा और दूसरा चोर घर के पीछे ध्यान रखेगा।
शेखचिल्ली को तो बहुत अधिक भूख लगी थी इसलिए वो चोरी करने के बजाय घर में कुछ खाने पीने की चीजें ढूंढने लगा। रसोई में शेखचिल्ली को दूध, चीनी और चावल रखे हुए मिल गए। “अरे वाह! क्यों न खीर बनाकर खाई जाए” – शेखचिल्ली ने सोचा और खीर बनानी शुरू कर दी। रसोई में ही एक बुढ़िया ठण्ड से सिकुड़ कर सोई हुई थी। जैसे ही बुढ़िया को चूल्हे से आँच लगनी शुरू हुई तो गर्मी महसूस होने पर सही से खुल कर सोने के लिए उसने अपने हाथ फैला दिए। शेखचिल्ली ने सोचा कि यह बुढ़िया खीर मांग रही है। शेखचिल्ली बोला – “अरी बुढ़िया मैं इतनी सारी खीर बना रहा हूँ, सारी अकेला थोड़े ही खा लूंगा, शांति रख, तुझे भी खिलाऊंगा।” लेकिन बुढ़िया को जैसे जैसे सेंक लगती रही तो वो और ज्यादा फ़ैल कर सोने लगी, उसने हाथ और भी ज़्यादा फैला दिए। शेखचिल्ली को लगा कि यह बुढ़िया खीर के लिए ही हाथ फैला रही है, उसने झुंझला कर गरम गरम खीर बुढ़िया के हाथ पर रख दी। बुढ़िया का हाथ जल गया। चीखती चिल्लाती बुढ़िया एकदम हड़बड़ा कर उठ गई और शेखचिल्ली पकड़ा गया। शेखचिल्ली बोला – “अरे मुझे पकड़ कर क्या करोगे, असली चोर तो बाहर हैं। मुझे बहुत भूख लगी थी, मैं तो अपने लिए खीर बना रहा था।” इस तरह शेखचिल्ली ने अपने साथ साथ असली चोरों को भी पकड़वा दिया।
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