अकबर के शहर फतेहपुर सिकरी में सर्दियों के दौरान काफी ठंड पड़ती थी। एक बार, बादशाह ने यह घोषणा करवा दी कि वह सोने के हजार सिक्के उसे देंगे जो शाही महल के बाहर स्थित ठंडी झील में पूरी रात खड़े होने की हिम्मत करेगा।
कई दिनों तक अकबर के पास कोई भी नहीं आया। फिर एक दिन एक गरीब ब्राह्मण दरबार में आया। अकबर उस गरीब आदमी को देखकर हैरान रह गए। वह बहुत कमजोर और बीमार था। अकबर ने पूछा, ”तुम काफी कमजोर और बीमार हो। तुम इस मुश्किल चुनौती को क्यों लेना चाहते हो?“
ब्राह्मण बोला, ”मेरे राजा, मैं एक गरीब आदमी हूं। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, जो भूखे हैं। मुझे पैसों की जरूरत है।“
अकबर राजी हो गए। ब्राह्मण को दो पहरेदार झील में लेकर गए। ब्राह्मण ने अपने सारे कपड़े उतारकर जल में प्रवेश किया और पहरेदारों की निगरानी में बर्फ जैसे ठंडे पानी में पूरी रात खड़ा रहा। अगली सुबह पहरेदार ब्राह्मण को दरबार में लेकर गए। अकबर ब्राह्मण की बहादुरी पर हैरान था। उसने पूछा, ”तुमने सारी रात ठंडे पानी में खड़े रहने के लिए प्रबंध कैसे किया? क्या तुम्हें ठंड नहीं लगी?“
ब्राह्मण ने कहा, ”जी महाराज! मुझे बहुत ठंड लग रही थी पर तभी मैंने उन दीपकों को देखा जो महल के मीनारों में चमक रहे थे। मैं सारी रात उन्हें देखता रहा और उन्होंने मुझे गर्म रखा।“
जब अकबर ने यह सुना तो वह ब्राह्मण से बोला, ”दीपकों ने सारी रात तुम्हें गर्म रखा है। यह तो धोखेबाजी है। तुमने अपना कार्य ईमानदारी से नहीं किया। तुम्हें कोई सोना नहीं मिलेगा।“ और उसने पहरेदारों को आदेश दिया किा वे ब्राह्मण को दरबार से बाहर निकाल दें।
गरीब ब्राह्मण बहुत परेशान था। वह जानता था कि बादशाह ने उसके साथ अन्याय किया है। लेकिन बादशाह के साथ तर्क कौन करता? वह दुखी होकर घर चला गया। जब वह सब हुआ, तब बीरबल दरबार में उपस्थित था। उसने सोचा, ”बादशाह बहुत मनमानी कर रहे हैं। मुझे उन्हें सबक सिखाना चाहिए, ताकि ब्राह्मण को वह सोना मिल सके जिसका वह हकदार है।“ बीरबल अकबर के पास गए और सम्मान के साथ झुककर कहा, ”जहांपनाह! मैंने अपने मित्रों के लिए एक दावत का आयोजन किया है। मैं आपको और सभी मंत्रियों को आमंत्रित करना चाहता हूं। कृपया आज शाम को दावत के लिए मेरे घर पर पधारें।“
अकबर यह सुनकर बहुत खुश हुआ। शाम को अकबर ने खबर भिजवाई कि वे आ रहे हैं। परंतु बीरबल ने कहला भेजा कि अभी खाना तैयार नहीं हुआ है। जब तैयार हो जायेगा तो खबर भेज दूंगा। जब बहुत देर तक खबर नहीं आयी तो अकबर स्वंय अपने मंत्रियों के साथ बीरबल के घर पहुंच गया पर जब उन्होंने बीरबल को घर के आंगन में देखा तो वे हैरान रह गए। बीरबल थोड़ी सी आग जलाकर उसके पास बैठा हुआ था जबकि जो बर्तन आग पर होना चाहिए था, वह एक पेड़ की एक शाखा पर ऊंचा लटक रहा था।
अकबर ने बीरबल से पूछा, ”तुम्हें क्या लगता है, कि तुम क्या कर रहे हो,“ बीरबल ने कहा, ”जिल्लेसुभानी! मैं हम सभी के लिए स्वादिष्ट खिचड़ी बना रहा हूं।“ इस बात पर बादशाह जोर से हंसने लगे। उन्होंने कहा, ”मूर्ख, तुम्हें क्या लगता है, आग गर्म खिचड़ी तक पहुंच जाएगी, तुमने बर्तन ऊंची शाखा पर रख दिया है?“
बीरबल ने कहा, ”महाराज! आग की गर्मी बर्तन तक उसी प्रकार पहुंच जाएगी, जिस प्रकार महल के मीनार के दीपकों से गर्मी उस दिन गरीब ब्राह्मण तक पहुंची थी।“ अकबर ने हंसना बन्द कर दिया। उन्हें एहसास हो गया कि बीरबल क्या कहना चाहता है। अगले दिन उन्होंनें ब्राह्मण को बुलाया और वादे के अनुसार उसे हजार सोने के सिक्के दिए। ब्राह्मण ने बादशाह का आभार व्यक्त किया और आशीर्वाद दिया। अकबर ने बीरबल को देखा तो बीरबल मुस्करा दिए।
अशुभ चेहरा
बहुत समय पहले, बादशाह अकबर के राज्य में यूसुफ नामक एक युवक रहता था। उसका कोई दोस्त नहीं था, क्योंकि सभी उससे नफरत करते थे। सभी उसका मजाक उड़ाते थे और जब वह सड़क पर चलता तो सब उस पर पत्थर फेंकते थे। यूसुफ का जीवन दयनीय था, सभी सोचते थे कि वह बहुत ही बदनसीब है। लोग तो यहां तक कहते थे कि यूसुफ के चेहरे पर एक नजर डालने से, देखने वाले व्यक्ति पर भी बदनसीबी आ सकती है।
इस प्रकार, भले ही लोग यूसुफ से नफरत करते थे, पर उसकी कहानी दूर-दराज तक प्रसिद्ध थी। वह अफवाहें अकबर के कानों तक भी पहुंची। वह जांचना चाहता था कि क्या लोगों का कहना सच है। उन्होंने यूसुफ को दरबार में बुलाया और उससे विनम्रता से बात की। लेकिन उसी वक्त एक दूत ने दरबार में आकर अकबर को सूचित किया कि बेगम गंभीर रूप से बीमार हैं। उस दूत ने कहा, ”जहांपनाह! आपसे अनुरोध है कि आप तुरंत रानी साहिबा के कक्ष में चलें। रानी साहिबा बेहोश हो गई हैं और चिकित्सकों को इसका कारण समझ नहीं आ रहा है।“
अकबर बेगम के पास भागे। वे पूरी दोपहर उनके बिस्तर के बगल में बैठे रहे। शाम को जब रानी साहिबा फिर से बेहतर महसूस करने लगी, तब अकबर दरबार में लौट आये। यूसुफ अभी भी उनका इंतजार कर रहा था।
यूसुफ को देखते ही अकबर को गुस्सा आ गया। वे गरजे, ”तो सारी अफवाहें सच हैं। तुम वास्तव में मनहूस हो। तुमने बेगम को बीमार बना दिया है।“ उसने जेल के पहरेदारों को यूसुफ को ले जाने का आदेश दे दिया।
बेचारे यूसुफ के पास और कोई चारा नहीं था। वह जोर से चिल्लाया और पहरेदारों से छोड़ने की विनती की। बादशाह का निर्णय बहुत अनुचित था। लेकिन दरबार में कोई भी सम्राट के विरोध में कुछ भी कहने की हिम्मत नहीं कर पाया।
अचानक बीरबल ( वहां गया, जहां यूसुफ खड़ा था, और उसके कान में कुछ फुसफुसाया। यूसुफ बादशाह के सामने झुककर बोला, ”जहांपनाह! मैं कैदखाने में जाने को तैयार हूं, पर आप मेरे एक सवाल का जवाब दीजिए, ”यदि मेरे चेहरे को देखकर रानी बीमार हो गई हैं, तो मेरा चेहरा आपने भी देखा है, तो आप बीमार क्यों नही हुए।“ अकबर को अपनी गलती का एहसास हो गया। उसने यूसुफ को जाने दिया और खजाने में से सोने का एक थैला उसे भेंट किया। एक बार फिर दरबार में बैठे लोगों ने बीरबल ( के ज्ञान और बुद्धि की प्रशंसा की।
तानसेन
तानसेन और बीरबल में किसी बात को लेकर विवाद हो गया। दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे। हल निकलता न देख दोनों बादशाह की शरण में गए। बादशाह अकबर को अपने दोनों रत्न प्रिय थे। वे किसी को भी नाराज नहीं करना चाहते थे, अतः उन्होंने स्वयं फैसला न देकर किसी और से फैसला कराने की सलाह दी।
"हुजूर, जब आपने किसी और से फैसला कराने को कहा है तो यह भी बता दें कि हम किस गणमान्य व्यक्ति से अपना फैसला करवाएं ?" बीरबल ने पूछा।
"तुम लोग महाराणा प्रताप से मिलो, मुझे यकीन है कि वे इस मामले में तुम्हारी मदद जरूर करेंगे।" बादशाह अकबर ने जवाब दिया।
अकबर की सलाह पर तानसेन और बीरबल महाराणा प्रताप से मिले और अपना-अपना पक्ष रखा। दोनों की बातें सुनकर महाराणा प्रताप कुछ सोचने लगे, तभी तानसेन ने मधुर रागिनी सुनानी शुरू कर दी। महाराणा मदहोश होने लगे। जब बीरबल ने देखा कि तानसेन अपनी रागिनी से महाराणा को अपने पक्ष में कर रहा है तो उससे रहा न गया, तुरन्त बोला- "महाराणाजी, अब मैं आपको एक सच्ची बात बताने जा रहा हूं, जब हम दोनों आपके पास आ रहे थे तो मैंने पुष्कर जी में जाकर प्रार्थना की थी कि मेरा पक्ष सही होगा तो सौ गाय दान करूंगा; और मियां तानसेन जी ने प्रार्थना कर यह मन्नत मांगी कि यदि वह सही होंगे तो सौ गायों की कुर्बानी देंगे। महाराणा जी अब सौ गायों की जिंदगी आपके हाथों में है। "
बीरबल की यह बात सुनकर महाराणा चौंक गए। भला एक हिंदू शासक होकर गो हत्या के बारे में सोच कैसे सकते थे। उन्होंने तुरन्त बीरबल के पक्ष को सही बताया।
जब बादशाह अकबर को यह बात पता चली तो वह बहुत हंसे।
सबसे उज्जवल क्या है?
समय-समय पर बादशाह अकबर अपने मंत्रियों और दरबारियों से प्रश्न पूछा करते थे. एक दिन उन्होंने पूछा –
सबसे उज्जवल क्या होता है?
इस प्रश्न का उत्तर किसी ने कपास दिया, तो किसी ने दूध. दोनों में ‘कपास’ को दरबारियों के अधिक मत मिले.
बीरबल शांत था. उसे शांत देख अकबर बोले, “बीरबल तुम्हारा क्या उत्तर है? कपास या दूध?”
बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मेरा उत्तर न कपास है न दूध. मेरे मतानुसार सबसे उज्जवल ‘प्रकाश’ होता है.”
बीरबल का उत्तर सुन अकबर बोले, “बीरबल! तुम्हें अपना उत्तर साबित करके दिखाना होगा.”
बीरबल ने हामी भर दी.
अगले दिन दोपहर को अकबर अपने कक्ष में आराम कर रहे थे. उसी समय बीरबल ने उनके कक्ष के दरवाज़े पर एक कटोरा दूध तथा कुछ कपास रख दिया. राजमहल के सभी दरवाज़े बंद होने के कारण उस स्थान पर प्रकाश नहीं आ पा रहा था.
आराम करने के बाद जब अकबर उठे और कमरे से बाहर जाने के लिए दरवाज़े से निकलने लगे, तो उनका पैर कटोरी पर पड़ा और उसमें रखा सारा दूध गिर पड़ा.
तब बाहर बैठे बीरबल ने महल के दूसरे दरवाज़े खुलवाए, ताकि प्रकाश अंदर आ सके. प्रकाश हुआ, तो बादशाह ने दूध का कटोरा, जमीन पर गिरा दूध और कपास ठीक दरवाज़े के सामने देखा. वे बड़े अचंभित हुए. बाहर बीरबल को बैठा देख उनके मन में विचार आया कि ये अवश्य बीरबल की कारस्तानी है. लेकिन क्यों ये उन्हें समझ नहीं आया.
उन्होंने बीरबल से कटोरा भरा दूध तथा कपास दरवाज़े पर रखने का कारण पूछा. यब बीरबल बोला, “जहाँपनाह! कल अपने दरबार में प्रश्न पूछा था कि सबसे उज्जवल क्या है. दरबारियों का उत्तर था कपास और दूध. मेरा उत्तर था प्रकाश. मैंने अपना उत्तर प्रमाणित कर दिया है.”
अकबर को उत्तर अब भी अस्पष्ट था. बीरबल अपनी बात स्पष्ट करते हुए बोला, “जहाँपनाह! दूध और कपास मैंने आपके कक्ष के दरवाज़े पर रख दिया था. इनकी उज्ज्वलता पर किसी को शक नहीं है. किंतु, बिना प्रकाश के ये चीज़ें दिखाई नहीं पड़ी. दरवाज़ा खोलते ही प्रकाश हुआ, तो ये चीज़ें दिखाई दीं. इससे स्पष्ट होता है कि प्रकाश सबसे उज्ज्वल है.”
अकबर बीरबल के उत्तर से संतुष्ट हो गए|
सब बह जायेंगे
एक दिन बादशाह अकबर अपने सैनिकों को लेकर शिकार के लिए गये. उनके साथ बीरबल भी था. दिन भर शिकार करने के बाद वे शाम होते-होते लौटने लगे. रास्ते में एक गाँव पड़ा. अकबर ने बीरबल से उस गाँव के बारे में जानकारी मांगी, तो बीरबल बोला, “जहाँपनाह! मैं भी पहली बार इस गाँव में आया हूँ. इसलिए इसके बारे में मैं कुछ नहीं जानता. किसी गाँव वाले से पूछकर मैं आपको इस गाँव की जानकारी देता हूँ.”
बीरबल का ये कहना था कि एक आदमी वहाँ से गुजरा, जिस पर बीरबल की दृष्टि पड़ गई और उसने उसे अपने पास बुला लिया. वह आदमी बादशाह अकबर और बीरबल को पहचान गया. पास आकर प्रणाम करके वह हाथ जोड़कर खड़ा हो गया.
बीरबल अकबर से बोला, “जहाँपनाह! इस आदमी से पूछ लीजिये, जो भी आपको पूछना हो.”
अकबर अपने राज्य के अंतर्गत आने वाले गाँव के बारे में और वहाँ की प्रजा की खैरियत जानना चाहते थे. उन्होंने पूछा, “इस गाँव में सब ठीक है ना, कोई परेशानी तो नहीं है?”
“जहाँपनाह! आपके राज में किसी को क्या परेशानी हो सकती है. सब कुशल मंगल है.” उस आदमी ने उत्तर दिया.
“ठीक है! क्या नाम है तुम्हारा?” अकबर ने पूछा.
“गंगा!”
“और पिता का नाम?”
“जमुना!”
“तो माँ का नाम सरस्वती होगा?” अकबर ने चुटकी ली.
“नहीं जहाँपनाह! नर्मदा!” वह आदमी झेंपते हुए बोला.
यह सुनकर बीरबल हँस पड़ा और बोला, “जहाँपनाह! बिना नाव के इस गाँव में प्रवेश नहीं किया जा सकता. अन्यथा इतनी नदियों में सब के सब बह जायेंगे.”
यह सुनकर अकबर ठहाके मारकर हँसने लगे.
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